Decade of Indian Test cricket: पिछले एक दशक में इन कमियों को दूर कर टीम इंडिया ने हासिल की टेस्ट में 'बादशाहत'
विराट कोहली की टीम इंडिया ना सिर्फ टेस्ट क्रिकेट में नंबर एक स्थान पर है बल्कि वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप में भी 360 अंको के साथ टॉप पर है।
साल 2019 के साथ-साथ एक दशक ( 2010-19 ) का भी अंत हो रहा है। जिसके अंत में क्रिकेट के असली खेल 'टेस्ट क्रिकेट' में भारतीय टेस्ट टीम ने अपनी बादशाहत कायम रखी है। दिन प्रति दिन बुलंदियों को छूने वाली विराट कोहली की टीम इंडिया ना सिर्फ टेस्ट क्रिकेट में नंबर एक स्थान पर है बल्कि वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप में भी 360 अंको के साथ टॉप पर है। इस दशक में भारतीय टेस्ट टीम नेऑस्ट्रेलिया को क्रिकेट इतिहास में पहली बार उसके घर में सीरीज हरा कर तिरंगा लहराया। जबकि गेंदबाजों ने भारतीय क्रिकेट के इतिहास की परिभाषा ही बदल कर रख दी। जिस टीम को एक दशक पहले अपनी धाकड़ बल्लेबाजी के लिए जाना जाता था उसे अब पूरे विश्व में घातक गेंदबाजी के लिए जाना जाता है।
इस दशक के अंतिम डे-नाईट टेस्ट मैच में टीम इंडिया ने बांग्लादेश को कोलकाता के ईडन गार्डन में महज दो दिन और 45 मिनट में हराया। जिसके बाद जीत और हार के अनुपात की बात करें तो उसमें टीम इंडिया का स्थान सर्वोपरि है। साल 2010 की शुरुआत से टीम इंडिया ने पिछले 10 सालों में 106 टेस्ट मैच खेले जिसमें उन्होंने 55 टेस्ट मैचों में जीत तो 29 में उसे हार का सामना करना पड़ा। इस तरह इनका जीत-हार अनुपात 1.90 का रहा। जबकि इसके बाद साउथ अफ्रीका का जीत-हार अनुपात 1.76 का है।
जीत-हार के अनुपात से पिछले दशक की टॉप 5 टेस्ट टीम
टीम | मैच खेले | जीत | हार | अनुपात |
भारत | 106 | 55 | 29 | 1.90 |
साउथ अफ्रीका | 89 | 44 | 25 | 1.76 |
ऑस्ट्रेलिया | 108 | 53 | 38 | 1.39 |
इंग्लैंड | 123 | 57 | 44 | 1.30 |
न्यूजीलैंड | 79 | 31 | 29 | 1.07 |
साल 1877 में जब पहली बार क्रिकेट इतिहास में टेस्ट मैच ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच खेला गया था। तबसे लेकर कई सालों तक इन दो टीमों ने टेस्ट क्रिकेट पर राज किया। जिसके बाद 1980 के समय कैरिबियाई क्रिकेट की जड़ें इस खेल में काफी मजबूत हो चुकी थी। जिसके चलते वेस्टइंडीज टीम ने भी राज किया। हालांकि वेस्टइंडीज के बाद एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया ने 1990 के दशक में रिकी पोंटिंग और स्टीव वॉ जैसे खिलाड़ियों के दमपर टेस्ट क्रिकेट में बादशाहत हासिल की।
दूसरी तरफ जैसे-जैसे क्रिकेट अपनी आधुनिकता की और बढ़ रहा था वैसे-वैसे भारतीय क्रिकेट का भी उदय हो रहा था। साल 2014 में कब भारतीय कप्तान विराट कोहली ने कप्तानी थामी तब टीम 7वें पायदान पर थी ऐसे में दो साल के भीतर फर्श से अर्श तक का सफर टीम इंडिया ने तय किया और विराट कोहली की कप्तानी में टीम इंडिया ने आधुनिक क्रिकेट के इतिहास में बादशाहत 2016 में हासिल की। जिसके चार साल बाद भी टीम इंडिया इसी सिंघासन पर विराजमान है। ऐसे में पिछले 10 सालों में टीम इंडिया के टेस्ट क्रिकेट में क्या बदला, ऐसा क्या हुआ कि टीम इंडिया आगे बढती चली गई और बाकी देश देखते रह गए। आइए जानते हैं इसके पीछे के कारण:-
2014 के बाद हुई 'कोहली युग' की शुरुआत
वैसे तो विराट कोहली ने साल 2011 में टेस्ट क्रिकेट में अपना पदार्पण किया था मगर इनका असली रंग साल 2014 में कप्तानी की जिम्मेदारी के बाद निखर कर सामने आया। कोहली की कप्तानी से पहले यानी साल 2010 से नवंबर 2014 तक भारत ने कुल 38 टेस्ट मैच खेले जिसमें उसे 14 में जीत जबकि 16 टेस्ट मैचों में हार का सामना करना पड़ा। इस तरह अपनी कप्तानी में कुछ ना बनता देख महेंद्र सिंह धोनी ने साल 2014 में अचानक कप्तानी के साथ-साथ टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया। जिसके बाद विराट कोहली ने टीम इंडिया की लगाम पकड़ी। कोहली ने कप्तानी में आते ही सबसे पहले 'फिटनेस' नाम की घुट्टी हर एक खिलाड़ी को पिलाना शुरू कर दी। जिसके बाद नतीजे खुद बखुद सामने आने लगे। कोहली की कप्तानी में टीम इंडिया ने 22 साल बाद श्रीलंका को उसके घर में हराया, जबकि ऑस्ट्रेलिया को उसके घर में टेस्ट सीरीज हराना भारतीय क्रिकेट का इस दशक में सबसे सुनहरे पल में से एक है। इतना ही नहीं इसके बाद साउथ अफ्रीका का घर में क्लीन स्वीप भी किया।
'गेंदबाजी' ने पलटा इतिहास
भारतीय क्रिकेट के इतिहास में कप्तान विराट कोहली के पास सबसे बेहतरीन तेज गेंदबाजी आक्रमण बताया जा रहा है। तीन धाकड़ तेज गेंदबाजों ( इशांत शर्मा, मोहम्मद शमी और जसप्रीत बुम्राह ) के बाद दो अनुभवी स्पिनर ( आर। अश्विन और रविंद्र जडेजा ) का संयोजन टीम इंडिया को दुनिया की किसी भी पिच पर जीत दिलाने का माद्दा रखता है। विराट कोहली की कप्तानी में सबसे ख़ास चीज टीम इंडिया की तेज गेंदबाजी में निरंतर बढ़ता पैना-पन रहा है। जिसके चलते उन्होंने घर में ही नहीं बल्कि विदेशी पिचों पर भी खंता गाड़ा है।
जसप्रीत बुमराह ने साल 2018 की शुरुआत में साउथ अफ्रीका की सरजमीं पर डेब्यू करते हुए अफ्रीकी बल्लेबाजों को अपनी कहर बरपाती गेंदबाजी से बैकफुट आर धकेल दिया था। इतना ही नहीं इसके बाद बुमराह ने इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, और वेस्टइंडीज में भी अपनी गेंदबाजी से बल्लेबाजों को पानी पिला दिया। इन सभी देशों में 5 विकेट हॉल लेने वाले बुमराह एशिया के पहले गेंदबाज बने। जबकि एशिया से बाहर प्रदर्शन करने के मामले में अनिल कुंबले के बाद इशांत सबसे सफल भारतीय तेज गेंदबाज बने। वहीं शमी इस साल सबसे ज्यादा 76 विकेट लेने वाले विश्व में दूसरे गेंदबाज बने।
टीम इंडिया की कातिलाना गेंदबाजी का असर फैंस पर भी पड़ा। हालांकि इन गेंदबाजो के साथ उमेश यादव और भुवनेश्वर कुमार का भी नाम आता है। एक दशक पहले जब टीम इंडिया के बल्लेबाजों की तूंती बोलती थी तो गेंदबाजी के समय फैंस इतना ध्यान नहीं देते थे। उस समय सचिन, गांगुली, सहवाग और लक्ष्मण को देखने के लिए लोगो का हुजूम स्टैंड्स भर देता था ठीक उसी तरह अब इशांत, शमी और बुमराह का उत्साह वर्धन करने और उन्हें देखने के लिए फैंस स्टैंड्स में जमा रहते हैं। जिसके चलते इन गेंदबाजों ने एक दशक में बल्लेबाजी के लिए मशहूर भारतीय क्रिकेट के इतिहास को पलट कर रख दिया है।
विदेश में जीत की नींव
भारतीय फैंस का हमेशा से एक ही सपना रहा है कि टीम इंडिया कब विदेशी सरजमीं पर जीतना शुरू करेगी। कोच रवि शास्त्री और कप्तान विराट कोहली की टेस्ट टीम ने इसे साकार करके दिखाया। ऑस्ट्रेलिया को उसके घर में टेस्ट सीरीज हराने के बाद इस टीम को भारतीय क्रिकेट के इतिहास में अब तक कि सबसे बहतरीन टीम माना जा रहा है। क्योंकि पिछले 5 सालों में टीम इंडिया ने विदेशी सरजमीं पर 13 टेस्ट मैचों में जीत जबकि 10 मैचों में उसे हार का सामना करना पड़ा है। हलांकि साल 2018 में कड़ी टक्कर देने के बाद साउथ अफ्रीका और इंग्लैंड के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा था। इस तरह पिछले एक दशक में विदेशी सरजमीं पर जीत की नींव रखने वाली कप्तान विराट कोहली की टीम इंडिया से फैंस को भविष्य में साउथ अफ्रीका और इंग्लैंड में भी जीत की उम्मीद रहेगी।
भारत के टॉप 4 बल्लेबाजों की कमी को पूरा करना
साल 2010 से पहले की बात करे तो भारतीय बल्लेबाजी में सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण की तूंती विश्व क्रिकेट में बोलती थी। इन चारों के स्थान को विराट कोहली, चेतेश्वर पुजारा, अजिंक्य रहाणे के साथ अन्य बल्लेबाजों ने बखूबी भरा है। जबकि ओपनिंग में मयंक अग्रवाल क साथ रोहित शर्मा ने शानदार शुरुआत तो दिलाई है लेकिन फिर भी ये टेस्ट क्रिकेट नें नंबर वन वाली टीम इंडिया का कमज़ोर पक्ष माना जा रहा है। इस तरह 5 नंबर के बाद छठे नंबर पर हनुमा विहारी, रविन्द्र जडेजा और फिर अंत में हाल ही के मैचों में तेजी से बल्लेबाजी करने वाले उमेश यादव ने भी विरोधियों को डरा कर रखा है। जिनके बारे में साउथ अफ्रीका के कप्तान फाफ डू प्लेसिस अच्छे से बता सकते हैं। इस तरह पिछले एक दशक में टीम इंडिया ने भारत के चारों धाकड़ बल्लेबाजों की अच्छी से भरपाई कर ली है। जिसके चलते बल्लेबाजी में संतुलन बना हुआ है।
वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप होगा अगला लक्ष्य
इन सब कारणों की वजह से टीम इंडिया पिछले 36 महीनों से टेस्ट क्रिकेट के शिखर पर विराजमान है। टीम इंडिया के पूर्व कैप्टन कुल महेंद्र सिंह धोनी के टेस्ट क्रिकेट से जाने के ठीक दो साल बाद कप्तान कोहली ने टीम इंडिया को टेस्ट क्रिकेट में बादशाहत का दर्जा दिलवाया। जिसके बाद से टीम इंडिया ने लगातार अपना वर्चस्व लाल गेंद से खेले जाने वाले टेस्ट क्रिकेट में कायम रखा है। इतना ही नहीं जिस तरह की शानदार फॉर्म के साथ टीम इंडिया इन दिनों खेल रही है, उसे देखकर ये कयास लगाए जा सकते हैं की टीम इंडिया साल 2021 में वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप के ख़िताब को भी अपने नाम कर सकती है।