नयी दिल्ली: देश के खेल पदाधिकारियों के प्रति अमूमन धारणा मुंह बिचकाने वाली ही होती है। वजह भी है, खेलों का इन महानुभावों ने बेड़ा ग़र्क जो किया हुआ है। लेकिन कुछ ऐसे अपवाद भी इसी देश में हैं जिनको खिलाड़ी और खेल प्रेमियों से समान आदर और प्यार मिला है। बताने की जरूरत नहीं कि बीसीसीआई के सदर जगमोहन डालमिया उन विरल शख़्सियतों में एक रहे है।
डालमिया का देहावसान भारतीय क्रिकेट के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं। भयावह अस्वस्थता के बावजूद पिछले दिनों बीसीसीआई के दोबारा सर्वसम्मति मुखिया निर्वाचित होने वाले जग्गू दादा ने 33 बरस पहले देश में क्रिकेट संचालित करने वाली इकाई में प्रवेश के साथ ही भारतीय क्रिकेट का चेहरा बदलने और उसे आर्थिक रूप से सबल बनाने के लिए जो अंशदान किया उसे कोई जल्दी भूल नहीं सकेगा।
बोर्ड को रंक से राजा बनाने और उसे दुनिया की सबसे समृद्ध राष्ट्रीय खेल इकाई के रूप में स्थापित करने वाले इस मारवाड़ी उद्योगपति को ही इसका भी श्रेय दिया जाएगा कि उन्होंने खिलाड़ियों के हितों का भी उतना ही ध्यान रखा।
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