फारुख-अनुष्का के बीच ठंडा हुआ 'टी-कप' विवाद, अनुष्का के गुस्से पर फारुख ने कही ये बात
अनुष्का शर्मा ने ट्वीटर पर एक लम्बा-चौड़ा खत लिखा। जिसमें उन्होंने फारुख समेत तमाम लोगो को कई बाते सुनाई।
भारतीय टीम के पूर्व विकेटकीपर बल्लेबाज फारुख इंजीनियर और विराट कोहली की पत्नी अनुष्का शर्मा के बीच 'टी-कप' विवाद ने सोशल मीडिया पर जमकर तूल पकड़ा। पहले फारुख ने अनुष्का को अपरोक्ष रूप से आड़े हाथ लिया उसके बाद अनुष्का ने जब जमकर सुनाया तो उन्होंने मीडिया में सामने आकर अनुष्का को अपनी बेटी की तरह बताया और माफ़ी भी मांग ली। इस तरह जाकर सोशल मीडिया में फारुख और अनुष्का के बीच गर्म होती चाय आख़िरकार ठंडी होती नजर आ रही है।
दरअसल टाइम्स ऑफ़ इंडिया को दिए इंटरव्यू में भारतीय टीम के पूर्व विकेटकीपर बल्लेबाज फारुख इंजीनियर ने कहा, "हमारे पास मिकी माउस सेलेक्शन कमिटी है। टीम चयन कोई चुनौती नहीं है, क्योंकि इसमें कप्तान विराट कोहली की काफी चलती है। उन्ही में से कोई एक चयनकर्ता भारत का ब्लेजर पहन रखा था, तो पता चला कि यह एक सेलेक्टर है। वे सिर्फ विराट की पत्नी अनुष्का शर्मा को चाय के कप दे रहे थे।'
जिस पर तीखी नाराजगी जाहिर करते हुए अनुष्का शर्मा ने ट्वीटर पर एक लम्बा-चौड़ा खत लिखा। जिसमें उन्होंने फारुख समेत तमाम लोगो को कई बाते सुनाई। इसके साथ ही ये भी साफ़ किया की वो चाय नहीं बल्कि कॉफ़ी पीती हैं। जिस पर अब पूर्व खिलाड़ी ने माफ़ी मांग ली है।
अनुष्का ने पत्र में लिखा, "सबसे बड़ा झूठ है कि मुझे वर्ल्ड कप मैच के दौरान सलेक्टर्स द्वारा चाय परोसी गई थी। मैं वर्ल्ड कप का सिर्फ एक मैच देखने के लिए गई थी, ये मैच भी मैंने सलेक्टर्स बॉक्स में नहीं फैमिली बॉक्स में बैठकर देखा था। जब आपकी सुविधा पर सवाल उठें तो सच मायने रखता है। अगर आप सलेक्शन कमेटी पर सवाल उठाना चाहते हैं तो आप उसके लिए स्वतंत्र हैं। कृप्या अपने आरोप को सच साबित करने के लिए मेरा नाम न घसीटें। किसी को भी ऐसी चीजों में मेरा नाम इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं है।"
अनुष्का के इस पत्र के बाद फारुख ने रिपब्लिक मीडिया से कहा, "मेरे कमेंट को मुद्दे से बाहर समझा गया। अनुष्का मेरी बेटी की तरह है। मैं इस पर कटाक्ष नहीं करूंगा।"
इस तरह अब पूर्व खिलाड़ी द्वारा माफ़ी मांग लेने और अनुष्का को बेटी कह देने के बाद से मामले में सोशल मीडिया पर थोड़ी शांति छाई है। उनका इरादा अनुष्का को नुकसान पहुँचाना नहीं बल्कि चयनकर्ताओं को आडें हाथों लेना था।