डीडीसीए अध्यक्ष को लेकर लोकपाल के अंतरिम आदेश का पालन करें: हाईकोर्ट
17 नवंबर को डीडीसीए के लोकपाल जस्टिस (रि) बदर दुरेज़ अहमद ने रजत शर्मा को अगले आदेश तक संघ के अध्यक्ष के तौर पर काम जारी रखने को कहा था।
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को निर्देश दिया कि दिल्ली एंड डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन (डीडीसीए) के लोकपाल के उस आदेश का पालन होना चाहिए जिसके तहत रजत शर्मा को डीडीसीए अध्यक्ष के रूप में काम करते रहने के लिए कहा गया है।
17 नवंबर को डीडीसीए के लोकपाल जस्टिस (रि) बदर दुरेज़ अहमद ने रजत शर्मा को अगले आदेश तक संघ के अध्यक्ष के तौर पर काम जारी रखने को कहा था। उल्लेखनीय है कि रजत शर्मा ने 16 नवंबर को डीडीसीए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
केंद्र सरकार, डीडीसीए और इसके निदेशकों को लोकपाल के आदेश को लागू करने की मांग को लेकर डीडीसीए के एक सदस्य द्वारा याचिका दाखिल की गई थी जिसे जस्टिस जयंत नाथ ने खारिज कर दिया और कहा कि डीडीएसीए के सदस्यों को लोकपाल के उक्त आदेश का पालन करना चाहिए।
डीडीसीए के सदस्य और पूर्व क्रिकेटर सिद्धार्थ साहिब सिंह ने यह याचिका दाखिल की थी और दावा किया था कि वे डीडीसीए के कुछ निदेशकों के गैरकानूनी कार्य से दुखी है। उन्होंने 17 नवंबर को लोकपाल तक अपनी शिकायत पहुंचाई थी।
डीडीसीए के कुछ सद्स्यों और सिद्धार्थ साहिब सिंह की तरफ से मिली शिकायत पर लोकपाल ने एक अंतरिम आदेश जारी कर एसोसिएशन के प्रबंधन और कामकाज को नुकसान से बचाने के लिए एक अंतरिम आदेश पारित किया और कुछ निदेशकों द्वारा पारित तीन प्रस्तावों पर रोक लगा दी।
लोकपाल ने निर्देश दिया कि जिन लोगों ने अपना इस्तीफा दिया है वे क्रिकेट के हित में अपने अपने कर्तव्यों का निर्वहन जारी रखेंगे और इस संबंध में कोई और प्रस्ताव लोकपाल की इजाजत के बगैर और उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना एपेक्स काउंसिल के सदस्यों द्वारा पारित नहीं किया जाएगा। लोकपाल के सामने इन शिकायतों की सुनवाई 27 नवंबर को होगी।
दिल्ली हाईकोर्ट में यह याचिका अधिवक्ता टी सिंहदेव के माध्यम से दाखिल की गई थी जिसमें कहा था कि लोकपाल द्वारा आदेश पारित करने के बाद भी उसकी पूरी तरह से अवहेलना की जा रही है और कुछ निदेशक गलत तरीके से और अपनी मर्जी के मुताबिक काम कर रहे हैं।
याचिका में कहा गया है कि इन निदेशकों ने गैरकानूनी तरीके से 19 नवंबर को एपेक्स काउंसिल की बैठक बुलाई जिसमें उस एजेंडे पर चर्चा की गई जिसे लोकपाल ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था।
याचिका में कोर्ट से यह निर्देश मांगा गया था कि इन निदेशकों को लोकपाल के आदेश के विपरीत काम करने से रोका जाए और 17 नवंबर के उनके आदेश का सच्ची भावना के साथ पालन किया जाए।
याचिका में कहा गया, "भ्रम और अराजकता की स्थिति बनी हुई है क्योंकि आदेशों की अवहेलना करने वाले निदेशकों ने डीडीसीए पर कब्जा कर लिया है और अध्य़क्ष और अन्य अधिकारियों को लोकपाल द्वारा पारित 17 नवंबर के आदेश के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करने की अनुमति नहीं दे रहे हैं।'
याचिका में यह भी कहा गया कि "डीडीसीए की कार्यप्रणाली पूरी तरह से टूट रही है और न ही केंद्र सरकार, न ही रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज या कोई अन्य प्राधिकरण ने इस संबंध में कोई कार्रवाई की है या इस मामले में दखल दिया है। इस तरह से एक ऐसी स्थिति बन गई है जहां सुप्रीम कोर्ट और इस कोर्ट की तरफ से नियुक्त अथॉरिटी के आदेश का अनुपालन नहीं किया जा रहा है।"