Pitru Paksha 2024 Pind Daan: पिंडदान का मतलब क्या होता है? जान लीजिए पितरों का पिंडदान किस विधि के साथ करना चाहिए
Pind Daan Vidhi: पितृ पक्ष में पितरों का पिंडदान करना बेहद ही जरूरी होता है। पिंडदान करने से घर परिवार पर पितरों की कृपा बनी रहती है। आचार्य इंदु प्रकाश से जानिए पितरों का पिंडदान किस विधि और मंत्र के साथ करना चाहिए।
Pitru Paksha 2024 Pind Daan Vidhi: श्राद्ध के दिन में पितरों के लिए खीर, पूड़ी, सब्जी और उनकी कोई मनपसंद चीज बनाई जाती है। इसके बार फिर इस भोजन को गोबर से बने उपले या कंडलों की कोर पर रखकर पितरों को भोग लगाया जाता है और सीधे हाथ से कोर के दाहिनी तरफ पानी छोड़ा जाता है। इसे ही पिंडदान कहा जाता है। लेकिन कुछ शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध-कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिश्रित करके पिंड बनाए जाते हैं और उसे सपिंडीकरण कहते हैं। यहां पिंड का अर्थ है- शरीर। श्राद्ध में पूर्वज़ों के निमित पिंड बनाकर उनसे अपने आने वाले जीवन की शुभेच्छा की प्रार्थना की जाती है। पिंडदान करने वाले को उसके पूर्वजों के आशीर्वाद से संतति, संपत्ति, विद्या और हर प्रकार की सुख-समृद्धि मिलती है।
बता दें कि हर पीढ़ी के भीतर मातृकुल और पितृकुल दोनों की पहले पीढ़ियों के गुणसूत्र उपस्थित होते हैं। चावल के पिंड जो पिता, दादा, परदादा और पितामह के शरीरों का प्रतीक हैं, उन्हें आपस में मिलाकर फिर अलग बांटते हैं। जिन-जिन लोगों के गुणसूत्र (जीन्स) श्राद्ध करने वाले की देह में हैं, उन सबकी तृप्ति के लिए यह अनुष्ठान किया जाता है। पिंडदान दाहिने हाथ में लेकर करना चाहिए और मंत्र के साथ पितृ तीर्थ मुद्रा से दक्षिणाभिमुख होकर पिंड किसी थाली या पत्तल में स्थापित करें। पितृतीर्थ मुद्रा में दक्षिण दिशा में मुख करके बायां घुटना मोड़कर बैठा जाता है। इस तरह सबसे पहला पिंड देवताओं के निमित निकालें। दूसरा पिंड ऋषियों के निमित तीसरा दिव्य मानवों के निमित, चौथा दिव्य पितरों के, पांचवां पिंड यम के, छठा मनुष्य-पितरों के नाम, सातवां मृतात्मा के नाम, आठवां पिंड पुत्रदारा रहितों के नाम, नौवां उच्छिन्न कुलवंश वालों के नाम, दसवां पिंड गर्भपात से मर जाने वालों के नाम, ग्यारहवां और बारहवां पिंड इस जन्म या अन्य जन्म के बन्धुओं के निमित।
इस तरह से बारह पिंड निकाले जाते हैं और उन पर क्रमशः दूध, दही और मधु चढ़ाकर पितरों से तृप्ति की प्रार्थना की जाती है और मंत्र का जप किया जाता है। मंत्र है- ऊं पयः पृथ्वियां पय ओषधीय, पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम। गरुण पुराण के हवाले से श्री कृष्ण का वचन उद्घृत है - कुर्वीत समये श्राद्धं कुले कश्चिन्न सीदति। आयुः पुत्रान्यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।। पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्। देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते।। देवताभ्यः पितृणां हिपूर्वमाप्यायनं शुभम्।।
समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुःखी नहीं रहता। पितरों की पूजा से मनुष्य आयु, पुत्र, यश, कीर्ति, स्वर्ग, पुष्टि, बल, श्री, सुख-सौभाग्य और धन-धान्य प्राप्त करता है। देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्व है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है।
(आचार्य इंदु प्रकाश देश के जाने-माने ज्योतिषी हैं, जिन्हें वास्तु, सामुद्रिक शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र का लंबा अनुभव है। इंडिया टीवी पर आप इन्हें हर सुबह 7.30 बजे भविष्यवाणी में देखते हैं।)
ये भी पढ़ें-
गया में पिंडदान का क्यों है इतना महत्व, पितरों की आत्मा के लिए कैसे ये नगरी बन गई मुक्ति का मार्ग?