पीएम मोदी ने जिस मेडिटेशन सेंटर स्वर्वेद मंदिर का किया उद्घाटन, जानिए उसकी 10 बड़ी विशेषताएं
आज सोमवार को पीएम मोदी ने दुनिया के सबसे बड़े मेडिटेशन संटर स्वर्वेद मंदिर का लोकार्पण महादेव की नगरी काशी में जाकर किया। इस योग संस्थान के प्रेरणा स्त्रोत संत सदाफल महाराज थे। आइए जानते हैं इस मंदिर की 10 प्रमुख्य विशेषताएं।
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के दो दिवसीय दौर पर हैं और उन्होंने आज दुनिया के सबसे बड़े मेडिटेशन सेंटर स्वर्वेद मंदिर का उद्घाटन सुबह लगभग 11:30 बजे कर दिया है। यह स्वर्वेद मंदिर दुनिया के सबसे बड़े योग और मेडिटेशन सेंटर के तौर पर देखा जा रहा है। इसके प्रेरणा स्त्रोत संत सदाफल महाराज है जिनके भारत सहित विदेशों में भी सैकड़ों आश्रम हैं। इस मंदिर के निर्माण में लगभग 1000 करोड़ रुपये की लागत का खर्च आया है। आइए जानते हैं इस मंदिर की 10 बड़ी विशेषताएं कौन-कौन सी हैं।
स्वर्वेद मंदिर की प्रमुख विशेषताएं
- ध्यान साधना के लिए इस स्वर्वेद मंदिर में तकरीबन 20000 लोगों के बैठने की जगह है। इसी के साथ इस मंदिर की शोभा को 125 पंखुड़ियों वाले कमल के शिखर ने भव्य आकृति दी है जो इसे मनमोहक बनाता है।
- स्वर्वेद मंदिर वाराणसी शहर से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर उमराह क्षेत्र में स्थित है, यह मंदिर तकरीबन 300000 वर्ग फुट के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक इस मंदिर को बनाने में लगभग 600 श्रमिकों और 15 इंजीनियरों का इसमे योगदान रहा है।
- स्वर्वेद महामंदिर की नींव 2004 में सद्गुरु आचार्य स्वतंत्र देव और संत प्रवर विज्ञान देव ने रखी थी।
- इस मंदिर के प्रांगण में तकरीबन 101 फव्वारों के साथ ही साथ सागौन की लकड़ी से बनी मंदिर की छत पर सुंदर कालाकृतियां उकेरी गई हैं जो इसे और मनोरम बनाती है।
- महा योगी और और आध्यात्मिक गुरु श्री सदाफल देवजी महारजा ने स्वर्वेद ग्रंथ की रचना की थी। जिसके आधार पर इस मंदिर का नाम स्वर्वेद रखा गया है।
- लोगों की आकर्षण का केंद्र बना स्वर्वेद मंदिर में 7 मंजिलें हैं और यह लगभग 180 फीट ऊंचा है। मंदिर में मकराना मार्बल का प्रयोग किया गया है। जिस पर तकरीबन 3137 स्वर्वेद ग्रंथ के दोहे लिखे हुए हैं।
- स्वर्वेद दो शब्दों से मिलकर बना है स्वः और वेद। स्वः का अर्थ है अंतरमन की आत्मा जो परमात्मा का स्वरूप है और वेद का मतलब ब्रह्म ज्ञान। मतलब जिसके द्वारा आत्मा और परमात्मा का ज्ञान प्राप्त किया जा सके उसे स्वर्वेद कहा जाता है। मंदिर के प्रेरणा स्त्रोत संत सदाफल महारज ने 17 वर्षों तक हिमालय की चोटियों में कड़ी तपस्या कर गहन ध्यान लगाया। जहां से उन्हें इस दिव्य ग्रंथ को लिखने की प्रेरणा मिली। जिसके नाम पर इस मंदिर का नाम रखा गया है।
- इसी के साथ बताया जा रह है कि इस मंदिर की बाहरी दीवार पर लगभग 138 महाभारत, रामायण, वेद उपनिषद, गीता, आदिके दृश्य चित्रों के माध्यम से बनाए गए हैं।
- स्वर्वेद मंदिर के अंदर जड़ी-बूटीयों और औषधीयों से रहित एक बगीचा भी बनाया गया है। जिसका उद्देश्य है स्वस्थ्य जीवन को प्रेरित करना।
- इस मंदिर की दीवारों पर गुलबी बलुआ पत्थर लगें है जो स्वर्वेद मंदिर की शोभा को और भव्य बनाता है।