रात के अंधेरे में निकाली जाती है किन्नरों की शव यात्रा, कोई देख लें तो हो सकता है ये अनर्थ!
Kinner Community: किन्नरों समाज शव यात्रा के दौरान क्यों मनाते हैं जश्न और रात में ही क्यों किया दफनाया जाता है? यहां जानिए किन्नर समुदाय से जुड़ी बातों के बारे में।
आज जमाना बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है लेकिन अब हमारे समाज में किन्नरों की दुआ और बद्दुआ मायने रखता है। आज भी लोग किन्नरों से भयभीत रहते हैं कि वो कहीं उन्हें कोई बद्दुआ न दे दें। दरअसल, किन्नर समुदाय को लेकर लोगों के बीच मान्यता प्रचलित है कि उनके द्वारा दिया गया आशीर्वाद और शाप दोनों सच साबित होता है। वहीं किन्नरों को लेकर लोगों के मन में कई सवाल रहते हैं जिनमें से एक है कि किन्नरों की शव यात्रा आखिर रात में ही क्यों निकाली जाती है और उसे कोई देख लें तो क्या होता है। तो आइए आज जानते हैं किन्नरों से जुड़ी अहम बातों के बारे में।
... इसलिए निकाली जाती है रात में किन्नरों की शव यात्रा
जब किसी किन्नर की मृत्यु होती है तो उसकी शव यात्रा दिन में नहीं बल्कि रात के अंधेर में निकाली जाती है। इसे लेकर मान्यता है कि अगर कोई गैर किन्नर उस शव को देख लेता है उसे अगले जन्म में किन्नर बनना पड़ता है। यही वजह है किन्नर समाज नहीं चाहता है कि कोई दूसरा किन्नर बने, इसलिए रात में गुपचुप तरीके से शव यात्रा निकाली जाती है। वहीं किन्नर समाज शव को जलाता नहीं है बल्कि उसे दफनाता है।
मौत पर मातम नहीं खुशी मनाता है किन्नर समाज
आमतौर पर जब किसी की मौत होती है तो मातम मनाया जाता है लेकिन किन्नर समाज में किसी की मौत होने पर जश्न मनाया जाता है। दरअसल, किन्नर बनकर जीवन बिताना किसी नरक से कम नहीं होता है, इसलिए उस नरक से मुक्ति पाने के लिए जश्न मनाया जाता है। इसके अलावा किन्नरों की मौत पर दान पुण्य करने की भी परंपरा है।
किन्नर समाज से जुड़ी बातें
- पुरानी मान्यताओं के अनुसार शिखंडी को किन्नर माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि शिखंडी की वजह से ही अर्जुन ने भीष्म को युद्ध में हरा दिया था। मालूम हो कि महाभारत में जब पांडव एक वर्ष का अज्ञात वास जंगल में काट रहे थे, तब अर्जुन एक वर्ष तक किन्नर वृहन्नला बनकर रहे थे।
- जब भी घर में कोई शुभ काम हो जैसे कि शादी, मुंडन, तीज-त्यौहार, बच्चे का जन्म आदि सभी में किन्नरों को बुलाया जाता है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है। माना जाता है कि किन्नरों द्वारा कही गई बातें ईश्वर तक जल्दी पहुंचती है।
- नए किन्नर को शामिल करने से पहले नाच-गाना और सामूहिक भोज होता है। किसी नए वयक्ति को किन्नर समाज में शामिल करने से पहले बहुत से रीती-रिवाज का पालन किया जाता है।
- किन्नर अपने आराध्य देव अरावन से साल में एक बार विवाह करते हैं । हालांकि यह विवाह मात्र एक दिन के लिए होता है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। इंडिया टीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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