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Hindi News धर्म Kailash Kund Yatra 2024: इस दिन से शुरू होगी कैलाश कुंड की यात्रा, जानें क्या है यहां स्थित वासुकीनाथ मंदिर का इतिहास

Kailash Kund Yatra 2024: इस दिन से शुरू होगी कैलाश कुंड की यात्रा, जानें क्या है यहां स्थित वासुकीनाथ मंदिर का इतिहास

Kailash Yatra Bhaderwah 2024 Date: हिंदू धर्म में कैलाश कुंड यात्रा का विशेष महत्व बताया गया है। कहते हैं कि कैलाश कुंड में नागराज वासुकी का वास है। तो आइए जानते हैं कि इस साल कैलाश कुंड यात्रा कब से शुरू होगी।

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Kailash Yatra Bhaderwah 2024: इस साल पवित्र कैलाश कुंड वासुकी नाग यात्रा 29 अगस्त से शुरू होने वाली है। प्रत्येक वर्ष इस यात्रा में हजारों की संख्या में भक्त सम्मिलित होते हैं। मुख्य रूप से भद्रवाह के गाठा में भगवान वासुकी नाग मंदिर से चलने वाली यात्रा में उधमपुर के डुडू बसंतगढ़ समेत बिलावर, बसोहली और बनी के इलाकों से भी बड़ी संख्या में यात्राएं आकर शामिल होती हैं। सरोवर में पवित्र स्नान के बाद यह यात्राएं वापस लौट जाती हैं। लेकिन इन यात्राओं को भद्रवाह से कैलाश कुंड तक, उधमपुर से कैलाश कुंड तक और बनी से भी कैलाश कुंड तक कई जंगलों को पार करना पड़ता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक,  कैलाश कुंड में नागराज वासुकी का वास है।

कैलाश कुंड का इतिहास क्या है?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, बसोहली के राजा भूपतपाल, जिनका राज्य भद्रवाह तक फैला था। वे भद्रवाह से वापस आ रहे थे, रास्ते में पड़ने वाले कैलाश कुंड को पार करने के लिए वे कुंड में घुस गए। जब वे कुंड के बीच में पहुंचे तो उन्हें कुंड पर रहने वाले नागों ने चारों तरफ से घेर लिया। राजा को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने अपने कानों में पहने स्वर्ण कुंडल वहां भेंट कर अपनी गलती की क्षमा मांगी। तब नागों ने उन्हें जीवित कुंड से बाहर जाने दिया।

कुंड से निकलने के बाद राजा ने आगे का सफर शुरू करने से पहले वहां निकलने वाले झरने से अपनी प्यास बुझाने लगे तो पानी के साथ उनके स्वर्ण कुंडल भी उनके हाथ में आ गए। इसके बाद राजा ने वहां वासुकीनाथ का मंदिर निर्माण करने का प्रण लिया। माना जाता है कि राजा अपने साथ प्रतीक के तौर उस स्थान से एक पत्थर अपने साथ बसोहली ले जाने के लिए उठा लिया और आगे के सफर पर निकल गए। अभी वह पनियालग के पास पहुंचे थे कि किसी काम से उन्होंने वह पत्थर वहीं जमीन पर रख दिया और फिर जब उसे उठाने का प्रयास किया तो हर संभव प्रयत्न के बाद भी वह उसे उठा नहीं सके। इसके बाद राजा ने पनियालग और कैलाश कुंड में वासुकीनाथ के मंदिरों का निर्माण करवाया। माना जाता है कि इसके बाद से ही यात्रा शुरू हुई है जो अब तक जारी है। 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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