Diwali Puja: हर साल दीपावली का इंतजार लोगों को काफी बेसब्री से रहता हैं। देश प्रत्येक कोने-कोन में बड़े ही धूमधाम से इस त्योहार को मनाया जाता है। भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में इस त्योहार को सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। हिंदू अपने घर और मंदिरों में दीपक जलाते हैं। आज इसी त्योहार से जुड़ी ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में जानकार आप हैरान हो जाएंगे।
आखिर भारत में ऐसा कौन सा जगह है, जहां पर दीपावली नहीं मनाया जाता है। और भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा नहीं की जाती है। यहां तक दीपक भी उस जगह पर नहीं जलाया जाता है। आइए जानते है कि उस स्थान पर दीपावली क्यों नहीं मनाई जाती हैं और इसके पीछे की असली कहानी क्या है?
पहले जान लेते हैं ये
घार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, भगवान श्री राम लंका के राजा रावण का वध करके जब वापस अयोध्या लौटे थे तभी उनके भव्य स्वागत में अयोध्या नगरी को दीपों और फूलों से सजा दिया गया था। उनके आने की खुशी में अयोध्यावासियों ने पूरी अयोध्या को दुल्हन की तरह संवार दिया था। तब से देश में हर साल कार्तिक अमावस्या के दिन दीपावली मनाया जाता है। अब इसी पंरपरा को बीजेपी सरकार बनने के बाद हर साल अयोध्या को दीपों से सजाने के कार्यक्रम का शुरुआत किया। इस साल भी अयोध्या को दीपों से सजाने की काम शुरु हो चुकी है।
यहां पर नहीं मनाई जाती है दिवाली
अब जान लेते हैं आपके मन में चल रहे सवाल का जवाब, भारत के केरल राज्य में दिवाली की आयोजन नहीं की जाती है। इस प्रदेश के सिर्फ कोच्चि शहर में ही धूमधाम से दीपावली को मनाया जाता है। अब आपके मन में फिर एक सवाल ने जन्म ले लिया होगा। हमे पता है क्या? आप सोच रहे होंगे कि आखिर इन जगहों पर रहने वाले लोग दिवाली क्यों नहीं मनाते हैं। तो चलिए इसके बारे में आपको बता देते हैं। यहां दिवाली नहीं मनाने के पीछ एक कारण छिपा है। इस प्रदेश के लोगों की मान्यता है कि केरल के राजा महाबली की दीपावली के दिन ही मृत्यु हुई थी। इसके कारण से केरल के लोग के लिए दिवाली का दिन शोक का दिन माना जाता है।
साइंस का भी है लॉजिक
वहीं दूसरी बात करें तो यहां पर हिंदुओं की संख्या भी कम है। साइंस के मुताबिक, राज्य में इस समय बारिश नहीं होती है जिसके कारण लोग पटाखे और दीपक नहीं जलाते हैं। केरल के अलावा तमिलनाड़ु के कुछ हिस्सों में दिवाली नहीं मनाई जाती है। उस जगह पर रहने वाले लोग नरक चतुदर्श का त्योहार मनाते हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया था। इन जगहों पर रहने वाले लोग इसे छोटी दिवाली मानकर मनाते हैं।