भगवान राम का क्या है रामेश्वरम से संबंध? रामचरितमानस में मिलता है इसका जिक्र
भगवान राम ने पूरे 14 वर्षों का वनवास बिताया था। इस दौरान उन्होंने कई जगह समय बिताया लेकिन दक्षिण भारत का रामेश्वरम आखिर क्यों उनके नाम से प्रसिद्ध हुआ। आइए जानते हैं इसके बारे में तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में क्या कुछ बताया है।
Rameshwaram: मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम नें 14 वर्ष तक वनवास काटा था। इस दौरान वह कई जगह रहे और रावण द्वारा मां सीता का हरण हो जाने के बाद वह उनकी खोज में लंका तक गए। लंका जाने के लिए उनके साथ पूरी वानर सेना ने रामसेतु पुल बनाने में अपना योगदान दिया था। शास्त्रों के अनुसार भगवान राम के आराध्य शिव और शिव के आराध्य श्री राम हैं।
भगवान राम कोई भी कार्य करने से पहले भगवान शिव की आराधना करते थे। आइए जानते हैं रामचरितमानस के अनुसार लंका जानें से पहले भगवान राम ने रामेश्वर में ऐसा क्या किया था जो आज यह धाम उनके नाम से प्रसिद्ध है।
श्रीराम के लंका जाने से पहले शिव भक्ति
रामचरितमानस के अनुसार रामेश्वरम के बारे में कुछ इस प्रकार बताया गया है-
परम रम्य उत्तम यह धरनी। महिमा अमित जाइ नहिं बरनी।
करिहउँ इहाँ संभु थापना। मोरे हृदयँ परम कलपना॥
भगवान राम जब वानर सेना के साथ लंका जा रहे थे तो उन्होंने कहा यह भूमि अति पावन है। इसकी महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता। मैं यहां भगवान शिव की स्थापना करने का संकल्प लेता हूं।
सुनि कपीस बहु दूत पठाए। मुनिबर सकल बोलि लै आए।
लिंग थापि बिधिवत करि पूजा। सिव समान प्रिय मोहि न दूजा।।
शिव लिंग की स्थापना करने के बाद भगवान राम ने उसका पूजन किया और कहा भगवान शिव के समान मुझे कोई दूसरा नहीं प्रिय है।
सिव द्रोही मम भगत कहावा। सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा।
संकर बिमुख भगति चह मोरी। सो नारकी मूढ़ मति थोरी॥
श्रीराम कहते हैं जो शिव से द्रोह रखता है और मेरी भक्ति करता है। वह मुझे कभी भी नहीं प्राप्त कर सकता है। शिव से विमुख होकर मेरी भक्ति जो करता है वह नरकगामी है।
जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं। ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं।
जो गंगाजलु आनि चढ़ाइहि। सो साजुज्य मुक्ति नर पाइहि॥
प्रभु राम शिवलिंग स्थापित करते हुए कहते हैं कि जो व्यक्ति मेरे द्वारा स्थापित किए हुए भगवान रामेश्वर के दर्शन करेगा, वह प्राण त्यागने के बाद मेरे लोक को प्राप्त होगा। भगवान आगे कहते हैं रामेश्वर महादेव पर जो गंगा जल से इनका अभिषेक करेगा वह मुक्ति प्राप्त करेगा।
होइ अकाम जो छल तजि सेइहि। भगति मोरि तेहि संकर देइहि।
मम कृत सेतु जो दरसनु करिही। सो बिनु श्रम भवसागर तरिही॥
जो प्राणी छल कपट त्याग कर निष्काम हो कर रामेश्वर भगवान की सेवा करेगा। उन्हें भोलेनाथ मेरी परम भक्ति प्रदान करने की कृपा करेंगे और मेरे द्वारा बनाए हुए सेतु का जो दर्शन करेगा। वह बिना किसी प्रियत्न के इस संसार रूपी समुद्र से तर जाएगा।
रामेश्वरम मंदिर की विशेषताएं
- भगवान राम से इस जगह का जुड़ाव होने के कारण इस तीर्थ को रामेश्वरम नाम से जाना जाने लगा।
- दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले के पास रामेश्वरम तीर्थस्थल है। ये तीर्थ हिंदू धर्म के चार धामों में से एक और भगवान शिव का 11वां ज्योतिर्लिंग है।
- रामेश्वरम मंदिर दक्षिण भारत का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है और यह भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का 11वां ज्योतिर्लिंग स्थापित है। मंदिर के इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान राम ने की थी।
- भगवान राम ने लंका विजय की कामना से पहले इस जगह पर अपने आराध्या भगवान शिव की पूजा की थी। उन्होंने इस जगह पर महादेव के शिवलिंग की स्थापना कर इसकी पूजा अर्चना की थी। भगवान राम के नाम से ही इस जगह का नाम रामेश्वरम पड़ गया।
- त्रेतायुगा के बाद समय-सयम पर रामेश्वरम मंदिर का जीर्णोधार होता गया। इस मंदिर का नव निर्माण आदित्यवर्मन प्रथम, राजेंद्र चोल प्रथम,राजराजा चोल प्रथम और कृष्णदेव राय जैसे कई राजाओं ने करवाया था।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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