Bhai Dooj 2023: रक्षा बंधन से कैसे अलग है भाई दूज, इन दोनों त्योहार के बीच है बस इतना सा अंतर
दीपावली बीतने के बाद त्योहारों का कारवा अभी रुका नहीं है। अब भाई दूज का पर्व मनाया जाएगा। यह पर्व भाई-बहन के स्नेह से तो बंधा है। इसी तरह रक्षा बंधन भी भाई-बहन के अटूट स्नहे का प्रतीक है। तो फिर इन दोनों त्योहारों में आखिर अंतर क्या है? आइये आज हम आपको इन दो त्योहारों के बीच का अंतर बाता रहे हैं।
Bhai Dooj 2023: भाई दूज दीपावली के ठीक दो दिन बाद मनाया जाता है। यह त्योहार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाएगा। यह पर्व भाई-बहन के रिश्तों का पर्व है। इस दिन बहनें अपने भाईयों को तिलक लगाती हैं और उनकी रक्षा के लिए मंगलकामना करती हैं। इस त्योहार को देखा जाए तो एक इससे जुड़ा बहुत महत्वपूर्ण त्योहार ध्यान में आता है। जिसे हम रक्षा बंधन कहते हैं।
जी हां, रक्षा बंधन भी भाई बहन के अटूट प्रेम को दर्शाता है। तो फिर दोनों त्योहार में अंतर कैसा? यह दोनों त्योहार हैं तो भाई-बहन के रिश्ते से जुड़े, लेकिन दोनो त्योहारों के बीच काफी अंतर है। आइये जानते हैं दोनों त्योहार एक दूसरे से कैसे अलग है और इनके बीच कितना अंतर है।
भाई दूज और रक्षा बंधन में अंतर जानें
- भाई दूज का त्योहार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाईयों को तिलक लगा कर उनकी रक्षा और दीर्घायु की कामना करती हैं।
- भाई दूज में बहनें भाईयों के हाथों में राखी नहीं बांधती हैं। जबकी रक्षा बंधन में बहनें अपने भाईयों के हाथों में रक्षा सूत्र के तौर पर राखी बांधती हैं। रक्षा बंधन को लेकर यह मान्यता है कि, राखी एक तरह से भाईयों के लिए रक्षा सूत्र के तौर पर काम करती है, क्योंकि राखी कलावे का ही रूप होता है।
- माना जाता है कि यदि भाई के उपर कोई संकट मंडराए तो हाथ में बंधी राखी रक्षा सूत्र की तरह भाई के संकट को रोक देती है। इसी तरह भाई दूज पर बहनें अपने भाईयों को तिलक लगाती हैं। जो विजय प्राप्ति में सहायक होता है और मान्यता है कि ऐसा करने से भाई की आयु लंबी होती है।
- हिंदू वैदिक पंचांग के अनुसार भाई दूज जहां कार्तिक मास में मनाया जाता है, वहीं रक्षा बंधन का त्योहार श्रावण मास में लोग मनाते हैं।
रक्षा बंधन से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार जब बलि भगवान विष्णु के वामन अवतार को तीन पग भूमि दान करने के बाद पाताल लोक पहुंचे। तो वह भगवान विष्णु की लीला समझ गए थे और तब उन्होनें भगवान विष्णु से कहा कि है प्रभु आप यहां से कहीं न जाएं। तब भगवान विष्णु ने बलि की उदारशीलता को देखते हुए उनकी यह प्राथना स्वीकार की। इस कारण जगत का संचालन रुकने लगा था। फिर मां लक्ष्मी ने बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र के तौर पर कलावा बांधा और भाई के बंधन में बांधने के बाद लक्ष्मी जी ने कहा पाताल लोक में अब तुम्होरे उपर कोई संकट नहीं आएगा और उन्होनें बलि से कहा भगवान विष्णु का स्वर्ग लोक में जाना अति आवश्यक है। इस पर बलि ने उन दोनों को वहां से प्रणाम कर जानें दिया। तब से रक्षा बंधन की प्रथा प्रचलित हो गई।
भाई दूज की पौराणिक मान्यता
बात करें भाई दूज की तो इसके पीछे की एक पौराणिक कथा के अनुसार यमराज अपनी बहन यमुना जी से बहुत स्नेह करते थे। यमुना जी ने एक बार यमराज जी को घर आने का निमंत्रण दिया। बहन के बुलाने पर यमराज देवता कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन यमुना जी के घर उनसे मिलने पहुंचे। यमुना जी उनके लिए उस दिन पकवान बनाया और उनके आने पर उनका सतकार किया। जब मृत्यु के देवता यमराज वहां से जाने लगे तो यमुना जी ने उनको तिलक लगाया और उनसे कहा आप इसी तरह आते रहा करियेगा। यमराज देव अपनी बहन के आदर सतकार से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होनें कहा जो भी बहनें अपने भाईयों को कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन तिलक लगाएंगी। उनके भाईयों की रक्षा करना मेरा कर्तव्य होगा और उन भाईयों को दीर्घायु का आशीर्वाद मिलेगा। तब से इस पर्व को भाई दूज के नाम से जाना गया। इस तरह से यह दोनों कथाएं एक दूसरे से अलग तो हैं, लेकिन दोनों भाई-बहन के नाते से जुड़ी हुई हैं।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। । इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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