Chitrakoot: ये हैं चित्रकूट के दिव्य धाम, श्री राम ने बिताया था यहां वनवास, दर्शन मात्र से मिट जातें हैं पाप
चित्रकूट से भगवान श्री राम का पुराना नाता है, इसलिए अयोध्या की तरह चित्रकूट धाम को भी महत्व दिया जाता है। चित्रकूट की तीर्थयात्रा में इन दिव्य स्थानों के दर्शन मात्र से जीवन के समस्त कष्ट मिट जाते हैं। आइए जानते हैं चित्रकूट के वो प्रमुख स्थान जहां पर भगवान राम ने लगभग 11 वर्ष वनवास के बिताए थे।
Chitrakoot: भगवान राम की सबसे प्रिय नगरी अयोध्या धाम है, परंतु चित्रकूट धाम का कण-कण उनकी समृतियों से भरा हुआ है। जी हां, भगवान राम को जब 14 वर्ष का वनवास मिला था। तब उन्होंने 11 वर्ष अपनी अर्धांगनी सीता जी और भाई लक्ष्मण के साथ चित्रकूट में बिताया था। उनके वनवास का सबसे लंबा समय चित्रकूट में बीता। रामायण के अनुसार भगवान राम को चित्रकूट बहुत भाया था। जिस तरह अयोध्या के कण-कण में श्री राम बसते हैं उसी तरह चित्रकूट के कण-कण में रघुनाथ की समृतियां बसती हैं।
चित्रकूट धाम में भगवान राम से जुड़े कई आलौकिक स्थान है जिनका इतिहास त्रेतायुग के रामायणकाल के समय से विद्यमान है। यहां प्रत्येक वर्ष लाखों राम भक्त दर्शन करने आते हैं, यदि आप भी इस दिव्य धाम के दर्शन करने आते हैं तो इन जगहों पर अवश्य जाएं तभी आपकी चित्रकूट की तीर्थयात्रा पूर्ण मानी जाएगी। यहां के दर्शन मात्र से जीवन के समस्त कष्ट और पाप मिट जाते हैं।
पर्णकुटी मंदिर- चित्रकूट में भगवान राम ने घास-फूस और तिनकों से अपने रहने के लिए कुटियां का निर्माण किया था, इसी को पर्णकुटी कहा जाता है। यह कुटिया आज भी यहां स्थापित है और लाखों भक्त इस स्थान के दर्शन कर पुण्य प्राप्त करते हैं। वर्तमान समय में यहां एक मंदिर भी है, मान्यता है कि इस कुटिया के दर्शन करने से जीवन के समस्त कष्टों को सहन करने की दिव्या ऊर्जा मिलती है, क्योंकि श्री राम ने यहां अपना जीवन एक तपस्वी की भाति बिताया था।
स्फटिक शिला- चित्रकूट की मंदाकनी नदी के किनार यह शिला स्थापित है। इसी स्फटिक शिला पर भगवान राम और मां जानकी बैठा करते थे और चित्रकूट की प्राकृतिक सुंदरता देखा करते थे। इस स्फटिक शिला पर एक विशाल पैर के निशान हैं जिसे भगवान राम और मां सीता जी के पैरों का निशान बताया जाता है। दर्शन करने वाले श्रद्धालु इस स्फटिक शिला को प्रणाम कर उसका स्पर्श कर अपने जीवन को धन्य मानते हैं।
हनुमान धारा- चित्रकूट के इस धाम को लेकर मान्यता है, कि जब हनुमान जी लंका दहन कर के वापस आए तो उनके शरीर में अग्नि का ताप अत्याधिक तेज था जिसे वह सहन नहीं कर पा रहे थे। तब उन्होंने चित्रकूट के इसी स्थान पर वास किया। हनुमान जी को अग्नि के ताप से राहत प्रदान करने के लिए श्री राम ने विंध्याचल पर्वत पर बाण छोड़ा जिसके बाद पर्वत से जल की धारा बहने लगी और बजरंगबली के ऊपर ये धारा गिरी तब जाकर उनको राहत प्राप्त हुई और अग्नि का तेज शांत हुआ। यहां वर्तमान समय में पहाड़ों के बीच हनुमान जी की एक प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। जहां से निरंतर यह जलधारा बहती है जिसे हनुमान जल धारा कहा जाता है। मान्यता है कि इस जल की धारा को ग्रहण करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जीती हैं। साथ ही हनुमान जी संग भगवान राम की कृपा प्राप्त होती है।
इसके अलावा मध्य प्रदेश के चित्रकूट में कामदगिरी पर्वत, रामघाट, जानकी कुंड, गुप्त गोदावरी समेत सती अनुसुइया आश्रम आदि दिव्य स्थान और मंदिर भी हैं। इनके दर्शन मात्र से जीवन धन्य हो जाता है और चित्रकूट के यह दिव्य धाम पापनाशक माने जाते हैं।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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