Somvar Katha: हिंदू धर्म में महादेव सर्वाधिक पूज्यनीय देवताओं में से एक हैं। उनकी महिमा भी उनके नाम की तरह विख्यात है। हर सोमवार लोग महादेव की पूजा-आराधना करते हैं वहीं इस दिन ग्रहों में चंद्र देव की भी पूजा होती है। आपने अक्सर भगवान शिव की हर प्रतिमा में उनको अपने मस्तक पर चंद्रमा धारण किए हुए देखा होगा। शास्त्रों में भी उनकी छवि में यह बात समाहित की गई है कि भोलेनाथ नें अपने मस्तक पर चंद्रमा को विराजमान किया है। लेकिन ऐसा क्यों है इसके पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है जिसे आज हम आपको बताने जा रहे हैं तो यह जानने के लिए इस पूरी पौराणिक कथा को अवश्य पढ़िएगा।
चंद्र देव को दक्ष प्रजापित ने दिया था श्राप
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है जब दक्ष प्रजापित की 27 कन्याओं से चंद्र देव का विवाह हुआ था। दरअसल ये वही 27 कन्याएं है जिन्हें नक्षत्र कहा जाता है। जिसमें से वह सबसे ज्यादा रोहणी को पसंद करते थे। इस वजह से बकी की 26 कन्याओं ने अपने पिता दक्ष से यह बात बताते हुए अपना कष्ट प्रकट किया। यह बात जानकर दक्ष प्रजापति के गुस्से का ठिकाना न रहा और उन्होंने चंद्र देव को श्राप दे डाला। दक्ष प्रजापति ने अपना श्राप वापिस नहीं लिया और जिस कारण चंद्र देव को क्षीण रोग हो गया और उसके कारण 16 कलाएं धीरे-धीरे खत्म होने लगी।
नारद जी ने दिया महादेव की स्तुति की सलाह
यह बात जानकर नारद जी ने उन्हें भोलेनाथ की शरण में जाने का उपाय बताया और शिव स्तुति करने को कहा। चंद्र देव ने वैसा ही किया जैसा नारद जी ने बताया था। चंद्र देव की आराधना करने से महादेव प्रसन्न हुए और उनको प्रदोष काल के दौरान जीवित होने का वरदान देते हुए अपने मस्तक पर विराजित कर लिया। इस प्रकार वह पुनः नए जीवन को प्राप्त हुए और पूर्णिमा तक फिर से उदय होने लगे। इस प्रकार चंद्र देव को शिव जी की कृपा प्राप्त हुई और दक्ष प्रजापति के श्राप से छुटकारा मिला।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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