Mahakumbh 2025: क्या नागा साधुओं का भी होता है गोत्र? जानें कैसे मिलता है ये
माना जाता है कि बाह्मण कुल में जन्म लिए हर एक ब्राह्मण का गोत्र होता है। ऐसे में जो साधु-संत या नागा साधु बन जाते हैं, वे अपने कुल, गोत्र आदि का त्याग कर देते हैं, ऐसे में इनका भी एक गोत्र होता है।
भारत में जन्म लिए हर आदमी का कोई न कोई कुल, गोत्र आदि जरूर होता है। सनातन धर्म में गोत्र का काफी महत्व है, गोत्र का अर्थ है इंद्रिय अघात से रक्षा करने वाले यानी ऋषि है। सामान्यत: गोत्र को ऋषि परंपरा से संबंधित माना गया है। वहीं, बाह्मणों के लिए गोत्र विशेष रूप से अधिक महत्व रखता है, क्योंकि माना जाता है कि हर एक ब्राह्मण का संबंध ऋषिकुल से होता है। जानकारी के मुताबिक, गोत्र परंपरा प्राचीन काल के 4 ऋषियों से शुरू हुई, जिनमें अंगिरा, कश्यप, वशिष्ट और भगु ऋषि शामिल हैं। इनके कुछ समय बाद जमदग्नि, अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त मुनि भी इसमें शामिल हो गए। अगर इसे ऐसे समझें तो गोत्र का मतलब एक तरह से पहचान है।
कुछ समय बाद इसी वर्ण व्यवस्था ने जाति व्यवस्था का रूप ले लिया तब से यह जाति व्यवस्था पहचान के रूप में शामिल हो गई। ये तो हुई आम लोगों के गोत्र की बात, लेकिन क्या आप जानते हैं कि नागा साधुओं का भी एक गोत्र होता है, जबकि ये अपना सबकुछ त्याग देते हैं। आइए जानते हैं क्या है उसका नाम और कैसे तय होता है ये?
क्या होता है नागा साधुओं का गोत्र?
पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी ने यूट्यूब चैनल को जानकारी देते हुए बताया कि जो सन्त-महात्मा होते हैं, परम्परा की मानें तो उनका भी एक गोत्र होता है। जबकि इस सांसारिक मोह-माया का वह त्याग कर चुके होते हैं। आगे उन्होंने बताया कि श्रीमद्भागवत के चतुर्थ स्कंद के अनुसार, साधु,संत जो अपना सबकुछ त्यागकर चुके होते हैं, ऐसे में उनका गोत्र अच्युत होता है, क्योंकि मोह-माया त्याग करने के बाद वे सीधे भगवान् से ही वे जुड़े जाते हैं।
चूंकि नागा साधु भी भगवान शिव के उपासक होते हैं और वे सबकुछ अपना त्याग चुके होते हैं और सिर्फ प्रभु की भक्ति में लीन होते हैं। ऐसे में उनका गोत्र भी अच्युत होता है।
अगर किसी अपना गोत्र नहीं पता होता तो?
मान लीजिए किसी बाह्मण को अपना गोत्र नहीं पता तो वे कश्यप गोत्र का उच्चारण कर सकते हैं क्योंकि कश्यप ऋषि के एक से अधिक विवाह हुए थे और उनके कई पुत्र थे, जिनके मुताबिक उनके गोत्र हैं। अनेक पुत्र होने की दशा में ऐसे शख्स जिसे अपना गोत्र नहीं पता वे कश्यप ऋषि के कुल का मान लिया जाता है। साधु संत अक्सर लोगों को यह गोत्र देते हैं, जिसके बाद व्यक्ति विधि-विधान से पूजा संपन्न कर पाता है।