अकाल मृत्यु को भी मात देने वाले महामृत्युंजय मंत्र की कैसे हुई थी रचना? पढ़ें इसकी रहस्यमयी कथा
आज सोमवार का दिन है इस दिन महादेव के भक्त उनकी उपासना करते हैं। शिव की महिमा तो अनादि है। आज हम आपको मार्कण्डेय पुराण के अनुसार एक कथा बताने जा रहे हैं जिसमें अकाल मृत्यु को टालने वाले महामृत्युंजय मंत्र की रचना के बारे में बताया गया है। आइए जानते है इस मंत्र की कैसे हुई थी शुरुआत।
Mahamrityunjay Mantra: आज सोमवार का दिन है। यह दिन देवों के देव महादेव को अति प्रिय है। आज के दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है। ये तो सभी जानते हैं कि महादेव की महिमा अपरंपार है। देवता हों या दानव सभी उनके अधीन रहते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत है और वहीं वो ध्यान योग में रहते हैं। वैसे शिव जी अपने भक्तों से बहुत प्रेम करते हैं।
उनकी हर मनोकामना भी पूरी कर देते हैं यदि आप में सच्ची श्रद्धा है तो आप भगवान को अपने अधीन कर सकते हैं। यह बात सच है और एक ऐसी ही पौराणिक घटना आज हम आपको बताने जा रहे हैं। आप सब ने महामृत्युंजय मंत्र के बारे में तो सुना ही होगा कि यह अकाल मृत्यु को टालने की शक्ति रखता है। आखिर इस मंत्र की शुरुआत कहां से हुई और किसने कि आज हम आपको इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा बताने जा रहे हैं।
16 वर्ष तक की आयु थी ऋषि मार्कण्डेय की सुनिश्चित
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है जब ऋषि मृगशृंग और उनकी अर्धांगनी सुव्रता को संतान नहीं प्राप्त हो रही थी। तब दोनों शिव जी की शरण में आए और घोर तप के बाद उनको भोलेनाथ की कृपा से एक संतान प्राप्त हुई। जिसका नाम उन्होंने मार्कण्डेय रखा भगवान शिव ने उनको पुत्र रत्न देते समय यह बताया कि मार्कण्डेय की आयु बहुत कम होगी और कुल 16 वर्ष की आयु में यह संसार छोड़ देंगे। इस पर उनके माता-पिता चिंतित हो गए। मार्कंडेय के जन्म के बाद उनकी शिक्षा-दीक्षा गुरुकुल में हुई और बचपन से ही उनके अंदर शिव भक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी। जब उनकी 16 वर्ष की आयु निकट आने लगी तो उनके मात-पिता अपने पुत्र को मृत्यु के निकट आता देख दुःखी हुए। तब मार्कण्डेय को उनके मात-पिता ने सारी बात बताई।
महामृत्युंजय मंत्र की स्तुति से टाली अकाल मृत्यु
शिव भक्ति के कारण उन्होंने यह ठाना कि वह अपनी घोर तपस्या से शिव जो को प्रसन्न कर के अपने ऊपर चल रहे मृत्यु संकट को टाल देंगे और अपने माता-पिता को चिंतित नहीं होने देंगे। उनकी मृत्यु जब निकट आई तब वह शिव की आराधना में लीन थे और महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर रहे थे। जब मृत्यु के देवता यमराज बालक मार्कण्डेय को मृत्यु लोक के लिए लेने उनके पास आए। तभी वहां शिव जी प्रकट हो गए और यमराज से वापस जाने के लिए कहा, यमराज ने कहा है प्रभु ये विधि का विधान है इसे टाला नहीं जा सकता।
महादेव ने दिया मार्कण्डेय को अमर तत्व का वर्दान
भगवान शिव ने यमराज से कहा में बालक और मेरे प्रिय भक्त मार्कण्डेय की तपस्या और भक्ति से प्रसन्न हूं आप कृप्या यहां से जाएं। यमराज नें भगवान शिव को प्रणाम किया और वह यमपुरी चले गए। तब शिव जी ने मार्कण्डेय को वरदान दिया की आगे चलके आप शव भक्ति के कारण संसार में पूज्यनीय होंगे और आपके नाम की पुराण लोग पढ़ेंगे। आप को मैं अमर होने को वरदान देता हूं साथ ही में यह भी कहता हूं की आज से जो भी पूर्ण विधि से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करेगा। उसकी अकाल मृ्त्यु का संकट टल जाएगा। तो इस प्रकार मार्कण्डय ऋषि चिरंजिवी हुए। इस प्रकार से यह संपूर्ण कथ मार्कण्डेय पुराण में विस्तार पूर्वक लिखी हुई है।
महामृत्युनजय मंत्र इस प्रकार से -
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!
इस मंत्र का पूर्ण विधि विधान से संकल्प लेने के बाद इसका नियमित जाप करना चाहिए। इस मंत्र का लाभ पाने के लिए पूर्ण रूप से इसके जाप का अनुष्ठान कराना चाहिए।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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