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Hindi News धर्म त्योहार Makar Sankranti 2024: आखिर मकर संक्रांति के दिन ही क्यों भीष्म पितामह ने त्यागे थे अपने प्राण? ये है इसके पीछे की वजह

Makar Sankranti 2024: आखिर मकर संक्रांति के दिन ही क्यों भीष्म पितामह ने त्यागे थे अपने प्राण? ये है इसके पीछे की वजह

मकर संक्रांति का पर्व बहुत पुण्य कमाने वाला माना जाता है। महाभारत के अनुसार इस दिन को भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए चुना था। ऐसा क्या खास है इस दिन में जो भीष्म पितामह ने इसका चयन किया, आइए जानते हैं इसके पीछे आखिर क्या वजह थी।

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Makar Sankranti 2024: मकर संक्रांति का दिन अब पास आने वाला है तिल और गुड़ की मिठास के साथ यह पर्व देश भर में मनाया जाएगा। वहीं इस पर्व का धार्मिक महत्व भी बहुत अधिक है। जगत को प्रकाशित करने वाले ग्रहों के राजा सूर्य देव की वंदना से इस दिन अनेक लाभ मिलते हैं। वहीं इससे जुड़ी एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि इस दिन महाभारत के भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन को चुना था। क्या खास वजह थी जो भीष्म पितामाह ने सूर्य के उत्तरायण होने तक अपने प्राणों को रोक कर रखा और जैसे ही सूर्य उत्तरायण हुए उन्होंने बाण की शैय्या पर पड़े हुए अपने प्राण त्याग दिए। आइए जानते हैं एक पौराणिक कथा के अनुसार इसके पीछे क्या वजह थी।

कौन थे भीष्म पितामह

महाभारत के सबसे मुख्य पात्रों में से भीष्म पितामह का नाम आता है। वह भगवान कृष्ण के परम भक्त थे। भीष्म पितामाह शांतुन के औरस पुत्र थे। उनका जन्म गंगा देवी के गर्भ से हुआ था। उनके पिता शांतनु उनसे प्रसन्न होकर उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था। इस वरदान से वह मृत्यु के समय अपनी इच्छा के अनुसार प्राण त्याग सकते थे। भीष्म पितामाह एक महान योध्या, दृढ़ प्रतिज्ञा लेने वाले और बहुत ज्ञानी थे। 

सूर्य के उत्तरायण में प्राण त्यागने की वजह

महाभारत युद्ध के दौरान शिखंडी के सामने उन्होंने बाण नहीं चलाया था। इस कारण वह उसके बाणों के जाल में फंस कर शैय्या पर गिर पड़े थे। उनकी मृत्यु निकट आ गई थी और उनके शरीर में बाण ही बाण लगे हुए थे। उनकी जब अंतिम सांसे चल रही थी तो वह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे और श्री कृष्ण के नाम का जाप करते रहे। क्योंकि श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि उत्तरायण में जो ज्ञानी पुरुष प्राण त्यागते हैं। वह मोक्ष को प्राप्त होते हैं और भीष्ण पितामह यह बात जानते थे। उनको मिले वरदान के कारण उन्होंने बाण की शैय्या पर अपने प्राण उत्तरायण तक इसलिए रोक कर रखे हुए थे। सूर्य के उत्तरायण होते ही उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए और अंत में मोक्ष को प्राप्त किया।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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