संतान सुख से अभी भी वंचित है आप? गोवत्स द्वादशी का व्रत करते ही सूनी गोद में गूंजेगी किलकारियां
गोवत्स द्वादशी के दिन गाय और बछड़े का पूजन करने का विधान है। इस दिन गाय-बछड़े का पूजन करने से, साथ ही व्रत करने से व्यक्ति को हर तरह के सुख की प्राप्ति होती है । विशेषकर उन लोगों को जिनकी संतान अभी तक नहीं हुई है।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। 9 नवम्बर को गोवत्स द्वादशी मनाया जायेगा। इसे बच्छ दुआ, बछ बारस और वसु द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। गोवत्स द्वादशी के दिन गाय और बछड़े का पूजन करने का विधान है। इस दिन गाय-बछड़े का पूजन करने से, साथ ही व्रत करने से व्यक्ति को हर तरह के सुख की प्राप्ति होती है । विशेषकर उन लोगों को जिनकी संतान अभी तक नहीं हुई है। कहते हैं भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद पहली बार यशोदा मइया ने कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी को ही गौमाता के दर्शन किये थे और विधि-विधान से उनका पूजन किया था। अतः संतान सुख की कामना रखने वाले लोगों के लिए ये दिन बहुत ही खास है । इस दिन व्रत और विधि-पूर्वक गाय-बछड़े का पूजन करके आप भी संतान सुख पा सकते हैं। साथ ही अपने जीवन को समृद्ध करके खुशियों से भर सकते हैं और सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद पा सकते हैं, विशेषकर श्री विष्णु भगवान का।
फिलहाल कार्तिक महीना चल रहा है और इस दौरान किये गये धार्मिक कार्यों से विष्णु भगवान का आशीर्वाद अवश्य ही मिलता है । लिहाजा आज कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के आशीर्वाद से इन सब चीज़ों का लाभ पाने के लिये गाय-बछड़े की पूजा किस प्रकार करनी चाहिए चलिए आपको बताते हैं।
ऐसे करें पूजा
गाय-बछड़ा का पूजा करने के लिए स्नान कर, साफ कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद गाय-बछड़े का पूजन करें। पूजन के लिये पहले दोनों को साफ पानी से नहलाएं। फिर कपड़े से पोंछकर दोनों को नया वस्त्र ओढ़ायें और गले में फूलों की माला पहनाएं। फिर उनके माथे पर सिंदूर या चन्दन का तिलक लगाएं और सींगों पर गेरु लगाएं । फिर एक पात्र में जल, अक्षत, थोड़ी-सी गंध, तिल और फूल डालकर मंत्र बोलते हुए उनके अगले पैरों में जल चढ़ाएं। मंत्र है–
क्षीरोदार्णव सम्भूते सुरासुर नमस्कृते |
सर्वदेवमये मातर् गृहाणार्घ्य नमो नम: ||
अर्थात् समुद्र मंथन के समय क्षीर सागर से उत्पन्न सुर तथा असुरों द्वारा स्कार की गई देव स्वरूपिणी माता, आपको बार-बार नमस्कार है। मेरे द्वारा ए गए इस अर्घ्य को आप स्वीकार करें। इस प्रकार जल चढ़ाने के बाद गऊ माता और बछड़े को भोग लगाया जाता है। इसके बाद घी के दीपक से दोनों की आरती करके उनका आशीर्वाद लें और अपने रिवार की खुशियों के लिये प्रार्थना करें।
इस प्रकार पूजा आदि करके व्रत किया ता है और शाम को फलाहार करके व्रत का पारण किया जाता है कुछ लोग लाहार रहकर इस व्रत को तीन दिन तक भी करते हैं। आज गोवत्स द्वादशी के दिन गाय के दूध से बनी चीज़ों का उपयोग वर्जित होता है।
(आचार्य इंदु प्रकाश देश के जाने-माने ज्योतिषी हैं, जिन्हें वास्तु, सामुद्रिक शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र का लंबा अनुभव है। इंडिया टीवी पर आप इन्हें हर सुबह 7.30 बजे भविष्यवाणी में देखते हैं।)
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