आज भी है होलिका दहन, जानें शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और महत्व
फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन और उसके दूसरे दिन होली खेलने का उत्सव मनाया जाता है। इस बार होलिका दहन कल मनाया गया कर कई जगहों पर आज भी मनाया जायेगा
हिंदू धर्म में होली का विशेष महत्व है। खुशियों और रंगों का यह त्योहार फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन और उसके दूसरे दिन होली खेलने का उत्सव मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के दिन स्नान-दान कर उपवास रखने से मनुष्य के दुखों का नाश होता है और उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है। साथ ही बुराई पर अच्छाई का दिन भी है यानि कि इस दिन होलिका दहन किया जायेगा। लेकिन इस साल पूर्णिमा के दिन भद्राकाल होने की वजह से होलिका दहन की तिथि को लेकर उलझन है। दिल्ली से लेकर राजस्थान और उत्तर प्रदेश से लेकर मध्यप्रदेश और बिहार समेत पूरे उत्तर भारत में कई जगह कल शाम को होलिका दहन किया गया। लेकिन कई जहां पर आज होलिका दहन मनाया जाएगा।
होलिका दहन मुहूर्त
06 मार्च यानी कल शाम 04 बजकर 17 मिनट पर शुरू हो चुका है और इसका समापन 07 मार्च यानी आज शाम 04 बजकर 17 मिनट तक रहेगा। आज शाम 04 बजकर 17 मिनट तक रहेगा। आज शाम 06 बजकर 12 मिनट से लेकर रात 08 बजकर 39 मिनट तक होलिका दहन का शुभ मुहूर्त है। इसी अवधि में होलिका दहन करना ज्यादा उत्तम माना जा रहा है। होलिका दहन के लिए आज सिर्फ 02 घंटे 27 मिनट का ही समय मिलेगा। 6 मार्च को शाम 4 बजकर 17 मिनट से 7 मार्च को सुबह 5 बजकर 13 मिनट तक भद्रा रहेगी। ऐसे में आज का पूरा दिन प्रदोष भद्रा से दूषित है। वहीं 7 मार्च को पूर्णिमा साढ़े तीन प्रहर से भी अधिक यानि चौथे प्रहर के काफी भाग तक है और प्रतिपदा यहां पूर्णिमा के मान से कम मान वाली है।
पहले दिन भद्रा यहां निशीथ के काफी बाद तक है। ऐसी स्थिति में पहले ही दिन भद्रा के मुख को छोड़कर भद्रा के पुच्छ में एवं भद्रा के पुच्छ में भी समय न मिले तो भद्रा में ही ‘होलिका दहन’ किया जायेगा। 6 मार्च को भद्रा मुख अर्धरात्रि के बाद यानि देर रात 1 बजकर 59 मिनट से देर रात 2 बजकर 41 मिनट तक रहेगा। भद्रापुच्छ भी अर्धरात्रि के बाद ही रात 12 बजकर 41 मिनट से देर रात 1 बजकर 59 मिनट तक रहेगा। लिहाजा यह स्पष्ट है कि ऐसी स्थिति में भद्रा में ही प्रदोष के समय होलिका दहन आज ही किया जायेगा।
प्रदोष काल में 7 मार्च को होलिका दहन
वहीं, भारत के कुछ पूर्वी प्रदेशों में दूसरे दिन यानि 7 मार्च 2023 को भी पूर्णिमा प्रदोष को स्पर्श कर रही है और वहां भद्रा का पूर्णतः अभाव भी है। अतः उन पूर्वी प्रदेशों में, जहां सूर्यास्त शाम 6 बजकर 10 मिनट से पहले होगा। वहां यह होलिका दहन 7 मार्च 2023 को ही प्रदोष में होगा।
पूजा विधि
होलिका दहन से पहले होली पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन सभी कामों को करके स्नान कर लें। इसके बाद होलिका पूजन वाले स्थान में पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके बैठ जाएं। अब पूजन में गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की मूर्ति बनाएं। साथ ही रोली, अक्षत, फूल, कच्चा सूत, हल्दी, मूंग, मीठे बताशे, गुलाल, रंग, सात प्रकार के अनाज, गेंहू की बालियां, होली पर बनने वाले पकवान, कच्चा सूत, एक लोटा जल मिष्ठान आदि के साथ होलिका का पूजा करें। साथ में भगवान नरसिंह की भी पूजा करें। पूजा के बाद होली की परिक्रमा करनी चाहिए साथ में होली में जौ या गेहूं की बाली, चना, मूंग, चावल, नारियल, गन्ना, बताशे आदि चीजे डालनी चाहिए।
होलिका दहन का महत्व
होलिका दहन के समय ऐसी परंपरा भी है कि होली का जो डंडा गाडा जाता है, उसे प्रहलाद के प्रतीक स्वरुप होली जलने के बीच में ही निकाल लिया जाता है। होली की बुझी हुई राख को घर लाना चाहिए। आज लकड़ियों के ढेर के साथ ही गोबर के उपले या कंडे जलाने की भी प्रथा है। यहां गौर करने की बात ये है कि- हमारे शास्त्रों में या हमारी परम्पराओं में हर चीज़ बड़ी ही सोच-समझकर बनायी गयी है। इन सबसे हमें कहीं-न-कहीं फायदा जरूर होता है। इसी तरह से आज गोबर के उपलों को जलाने के पीछे भी हमारी ही भलाई छिपी हुई है । दरअसल इस समय ये जो मौसम चल रहा है, इसमें वायुमंडल की स्थिति कुछ ऐसी होती है कि इसमें आस-पास बहुत से कीटाणु पनपने लगते हैं और ये कीटाणु डायरेक्ट या इनडायरेक्ट रूप से हमारी सेहत को इफेक्ट करते हैं और गोबर के अंदर कुछ ऐसी प्रॉपर्टीज़ होती हैं, जिससे उन्हें जलाने पर हमारे आस-पास मौजूद कीटाणु मर जाते हैं, साथ ही हमारी सेहत भी अच्छी होती है।
(आचार्य इंदु प्रकाश देश के जाने-माने ज्योतिषी हैं, जिन्हें वास्तु, सामुद्रिक शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र का लंबा अनुभव है। इंडिया टीवी पर आप इन्हें हर सुबह 7.30 बजे भविष्यवाणी में देखते हैं)
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