Dussehra 2022: नवरात्रि का त्यौहार नौ दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें हर दिन माता दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। नौ दिन पूरे होने के बाद दसवें दिन लोग बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा मनाते हैं जिसमें रावण के पुतले को जलाया जाता है। विजयादशमी के दिन यूं तो हर जगह रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतलों का दहन होता है, लेकिन क्या आपको पता है कि देश में कई इलाके ऐसे भी हैं जिनमें विजयादशमी पर रावण की पूजा होती है। उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में कई ऐसे शहर और इलाके हैं जहां रावण को विजयादशमी के मौके पर पूजा जाता है। आइए जानते हैं क्यों होती है रावण की पूजा।
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मंदसौर में होती है रावण की पूजा
मध्य प्रदेश के मंदसौर के खानपुरा में लगभग 400 से अधिक वर्ष पुरानी रावण की प्रतिमा है। यहां हर वर्ष एक समाज के लोग रावण को जमाई (दामाद) मान कर दशहरा पर पूजा-अर्चना करते हैं। यहां ऐसी मान्यता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका मंदसौर के खानपुरा क्षेत्र में था। जिस वजह से रावण यहां के दामाद हुए। मंदोदरी के कारण ही यहां का नाम मंदसौर है। हालांकि इसका कहीं कोई प्रमाणिक तथ्य नहीं है जिस वजह से इतिहासकार और धार्मिक क्षेत्र से जुड़े लोग इस बात को नहीं मानते हैं।
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विदिशा में होती है रावण की पूजा
विदिशा जिले के नटेरन तहसील में रावण गांव है, यहां रावण को पूजा जाता है। इस गांव में ब्राह्मण जाति के कान्यकुब्ज परिवारों का निवास है, ये लोग खुद को रावण का वंशज मानते हैं और रावण की पूजा-अर्चना करते हैं। इस इलाके में किसी भी नए काम की शुरुआत से पहले रावण की पूजा होती है। मान्यता है कि रावण की पूजा के बगैर यहां काम सफल नहीं होता है।
कानपुर के मंदिर में रावण की पूजा
कानपुर के शिवाला स्थित मंदिर में रावण की पूजा होती है। यह एकलौता रावण मंदिर हैं है जो साल में सिर्फ विजयदशमी के दिन खुलता है और जहां लोग आकर दशानन की पूजा करते हैं। मान्यता है कि यहां तेल का दिया जलाकर मन्नत मांगने से सब मिल जाता है। दशहरा के दिन मंदिर के कपाट खुलने के बाद रावण का श्रृंगार किया जाता है। जानकारी के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण 100 वर्ष पूर्व महाराज प्रसाद शुक्ल ने कराया था।
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इसके अलावा भारत में कोलार और मालवल्ली के अलावा हिमाचल प्रदेश, जोधपुर की कुछ जगहों पर भी रावण दहन नहीं किया जाता है।
रावण को क्यों पूजते हैं लोग
त्रेतायुग के अंतिम चरण के आरम्भ में जन्मे रावण के 10 शीश थे. रावण संहिता में उल्लेख है कि रावण ने अपने भाइयों (कुम्भकर्ण और विभीषण) के साथ ब्रह्माजी की 10 हजार वर्षों तक तपस्या की. हर 1,000वें वर्ष में उसने अपने 1 शीश की आहुति दी, इसी तरह जब वह अपना 10वां शीश चढ़ाने लगा तो ब्रह्माजी प्रकट हुए और रावण से वर मांगने को कहा। रावण ने ब्रह्माजी से मांगा कि मुझे देव, दानव, दैत्य, राक्षस, गंधर्व, नाग, किन्नर, यक्ष इत्यादि कोई न मार पाए। तब ब्रह्माजी ने कहा- तथास्तु।”
कहा जाता है कि रावण को चारों वेदों और 6 उपनिषदों का ज्ञान था। ज्ञान और बुद्धि के बल पर ही रावण का सम्मान उसके शत्रु भी करते थे। कहा जाता है कि रावण के राज्य में उसकी प्रजा कभी दुखी नहीं रही। रावण एक कुशल राजा था जो अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखता था।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इंडिया टीवी इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।)