Ramayan: संजीवनी बूटी ले जाते समय हनुमान जी को लगा था तीर, अयोध्या में गिरे थे इस जगह पर, जानिए फिर क्या हुआ
हनुमान जी श्रीराम के परम सेवक और दूत हैं। वह उनकी सेवा में निरंतर लगे रहते हैं। जब लक्ष्मण जी के प्राण संकट में थे। तब बजरंगबली द्रोणागिरी पर्वत समेत संजीवनी बूटी लेकर अयोध्या नगरी के ऊपर से वापस लौट रहे थे। उसी समय उनको बाण लगा और वह नीचे मूर्छित होकर गिर पड़े। आइए जानते हैं उसके बाद क्या हुआ।
Ramayan: यह तो आप सभी जानते हैं कि हनुमान जी प्रभु राम के परम दूत हैं और सदैव उनकी सेवा में तत्पर रहते हैं। रामायण में मेघनाथ से युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण जी को शक्ति बाण लगा था। तो वह मूर्छित होकर गिर पड़े थे और उनके प्राण संकट में आ गए थे।
तब हनुमान जी सुषेण वेद्य द्वारा बताई गई संजीवनी बूटी लेने गए थे। बजरंगबली जब संजीवनी बूटी लेकर लौट रहे थे तब वह अयोध्या के ऊपर आकाश मार्ग से उड़ते हुए जा रहे थे। तभी उनके ऊपर पर बाण से प्रहार हुआ और वो वहीं गिर पड़े। यह बाण उनको क्यों लगा और किसने चलाया था। इस बात का वर्णन रामचरितमान में तुलसीदास जी ने किया है।
अयोध्या में बाण लगते ही गिरे थे हनुमान
देखा भरत बिसाल अति निसिचर मन अनुमानि।
बिनु फर सायक मारेउ चाप श्रवन लगि तानि॥
अयोध्या से भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास जाने के बाद उनके भाई भरत ने अयोध्या का राजपाट श्री राम की अनुमति से संचालित किए रखा था। भगवान राम के वनवास काल के दौरान अयोध्या का राज भरत जी ने 14 वर्षों तक नंदीग्राम से एक तपस्वी की भाती संचालित किया था। बजरंगबली जब लक्ष्मण जी के लिए संजीवनी बूटी लेकर वापस लौट रहे थे तो वह अयोध्या के ऊपर से उड़ते हुए जा रहे थे। भरत उस दौरान नंदीग्राम में अपनी तपस्या में लीन थे। रात का समय होने के कारण दूर से वह स्पष्ट देख न सके और हनुमान जी को राक्षस समझ बैठे। उन्हें संदेह हुआ कि यह कोई राक्षस है। जो अयोध्या पर आक्रमण करने की योजना बना रहा है। उन्होंने तुरंत धनुष बाण चला दिया और वह हनुमान जी को जा लगा। इस बात का वर्णन तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में किया है।
परेउ मुरुछि महि लागत सायक। सुमिरत राम राम रघुनायक।
सुनि प्रिय बचन भरत तब धाए। कपि समीप अति आतुर आए॥
लक्ष्मण जी के बाण लगते ही हनुमान जी अयोध्या स्थित नंदीग्राम में मूर्छित होकर गिर पड़े। जैसे ही वह गिरे उन्होंने अपने आराध्या श्री राम का नाम लेना शुरू कर दिया। राम का नाम सुनेत ही भरत जी को लगा यह राक्षस नहीं बल्कि कोई राम सेवक है। वह हनुमान जी के पास दौड़े चले आए।
बिकल बिलोकि कीस उर लावा। जागत नहिं बहु भांति जगावा।
मुख मलीन मन भए दुखारी। कहत बचन भरि लोचन बारी॥
भरत जी में तप से बहुत तेज उत्पन्न हो गया था और बाण का प्रहार इतना था कि हनुमान जी को कई बार जगाने पर भी वह नहीं जागे। तब भरत जी ने कहा यदि राम के प्रति मेरी आस्था निष्कपट है और उनकी कृपा मुझ पर है। तो मूर्छित पड़े हुए इस राम सेवक की पीड़ा शीघ्र ही दूर हो जाए। तब हनुमान जी तुरंत उठ बैठे।
उठने के बाद पहुंचे संजीवनी बूटी लेकर
हनुमान जी ने भरत जी को सारा वृतांत बताया। तब भरत जी को यह जानकर ग्लानी हुए और उन्होंने हनुमान जी से क्षमा मांगी। इसके बाद भरत जी पवन पुत्र से कहते हैं, आप कहें तो मैं इसी बाण से आपको अभी लक्ष्मण जी तक भेज सकता हूं। हनुमान जी ने भरत जी की सहायता न लेते हुए उन्हें प्रणाम किया और उनकी अनुमति लेकर वहां से लक्ष्मण जी के पास संजीवनी बूटी का पहाड़ लेकर चल दिए।
भरत कुंड (नंदीग्राम), अयोध्या में यहीं हुआ था भरत मिलाप
अयोध्या के लिए जो भक्त दर्शन करने आते हैं। वह भरत कुंड नंदीग्राम अवश्य जाते हैं। नंदीग्राम अयोध्या से लगभग 15 से 20 किलोमीटर की दूरी पर है। यह वही जगह है जहां से भरत जी ने भगवान राम के 14 वर्ष वनवास काल के दौरान अयोध्या का राजपाट उनकी खड़ाऊ को सिंहासन पर रख कर चलाया था। भगवान राम जब वनवास से लौटे थे तो सबसे पहले भरत जी से यहीं मिले थे। यही है भरत मिलाप स्थान। यहां भरत जी की एक प्राचीन गुफा है और भगवान राम और मां जानकी का मंदिर भी है। यहां जो भी भक्त सच्चे मन से दर्शन करने आते हैं। उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। लोक मान्यता के अनुसार यहां भरत जी ने निरंतर 14 वर्षों तक राम वियोग में तप किया थी। यहां का वातावरण आज भी बहुत सकारात्मक है। यहीं पर हनुमान जी का एक मंदिर भी है जहां वह मूर्छित हो कर भरत जी के बाण से गिरे थे। इसके अलावा यहां एक कुआं भी है जिसमें भरत जी ने 27 तीर्थों का पवित्र जल डाला था। जिसे यहां आने वाले भक्त प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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