Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य कोई साधारण व्यक्तियों में से नहीं थे। उनकी बुद्धि और सोचने की क्षमता आम लोगों से बिल्कुल परे थी। ऐसे ही नहीं उन्होंने मौर्य साम्राज्य को स्थापित किया। उनकी तारकिक सोच-विचार ने उन्हें भारत के एक महान दार्शनिक गुरु की उपाधी दिलाई।
यहां तक कि चाणक्य ने अपनी नीतियों के दम पर साधारण से बालक चंद्रगुप्त को आगे चल कर एक सम्राट बनाया। एक राजा के पूरे साम्राज्य को भी धूल चटा दी थी। इसलिए आज भी लोग सफल होने के लिए उनकी नीतियों को पढ़ते हैं और जानना चाहते हैं कि आखिर चाणक्य ने अपनी नीतियों में और कौन-कौन सी बातें बताई है। आइए जानते हैं चाणक्य ने लोगों को अपने पास रखी चीजों से संतुष्ट रहने की सलह क्यों दी।
आचार्य चाणकय की नीति इस प्रकार से
यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवं परिषेवते । ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुम नष्टमेव च ॥
वो अपनी इस नीति में कहते हैं कि वो लोग मूर्ख हैं जो पास में सुविधाजनक चीजों के होते हुए भी उससे श्रेष्ठ वस्तुओं की लालसा रखकर पास में रखी वस्तु को छोड़ कर उससे बहतर देखते हैं। जिसका मिलना निश्चित नहीं होता है। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ज्यादा बेहतर की तलाश में व्यक्ति हाथ आई हुई चीज को ठुकराने के बाद उसका पछतावा करता है। जो संसाधन पास होते हुए भी उससे बहतर की तलाश में इधर-उधर भटकते हैं उनके हाथ से पास में उपल्बध अनमोल वस्तुएं भी छिन जाते हैं।
जितनी चादर उतना ही पैर फैलाना चाहिए
आचार्य चाणक्य का इस नीति के द्वारा यही कहने का मतलब है कि मनुष्य को चाहिए कि पैसा, सुख सुविधाएं, खाने-पीने की चीजें जब उसके पास हैं। तो पहले उन्ही चीजों का का भोग करना चाहिए। उसके बाद ही आगे कुछ बहतर तलाशना चाहिए। इस विषय में एक मुहावरा इस प्रकास से - कही भी गई है कि आधि छोड़ सारी को धावें, आधी रहे न सारी पावे।
जो हो उसी में संतुष्ट रहना बेहतर है
कुल मिलाकर चाणक्य अपनी नीति से यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वो लोग जो दूसरों के पास खुद से बहतर चीजें देख कर मन में ये विचार बनाते हैं कि मैं भी इन सब चीजों को प्राप्त कर लूं तो वह मूर्ख हैं। अपनी सुविधाओं को छोड़ कर दूसरों की चीजों को देखने वाले और इधर-उधर भटकने वालों के पास रखी चीज भी उनसे दूर हो जाती है। बहतर है कि हमें अपनी चीजों में ही संतुष्ट होना चाहिए। चाणक्य का कुल मिलाकर यही कहना है जो लोग निश्चित को छोड़ कर अनिश्चित के पीछे भागते हैं। उनका निश्चित कार्य तो नष्ट होता ही है और जिसे चीज को पाने की लालसा लगाए बैठे रहते हैं वो भी उन्हे नसीब नहीं होती है। इसलिए मनुष्य को अपनी चीजों से संतुष्ट रहना चाहिए।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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