राजस्थान के प्रतापगढ़ के लिलिया पंचायत के बैव गांव में 100 घरों की बस्ती, एक घड़े पानी के लिए महिलाएं और बच्चे पांच किलोमीटर दूर जाकर गड्ढे से लोटा-लोटा भरते हैं। बैव गांव में पीने के पानी के लिए ग्रामीणों को रोजाना इस तरह दुर्गम पहाड़ी से सफर करके जमीन खोदकर पानी एकत्र करना पड़ता है।
बैव गांव में पीने के पानी के लिए ग्रामीणों को रोजाना इस तरह दुर्गम पहाड़ी से सफर करके जमीन खोदकर पानी एकत्र करना पड़ता है। प्रतापगढ़ में हाल ही में जल जीवन मिशन में करीब 1650 करोड़ रुपए की योजना स्वीकृत हुई, लेकिन दूरस्थ गांव में राहत नहीं। प्रतापगढ़ जिले के दलोट पंचायत समिति की ग्राम पंचायत लिलिया के बैव गांव में 100 घरों की बस्ती है।
लोगों को हो रही है परेशानी- यहां के लोगों के लिए जल ही जीवन का मिशन है। राज्य बजट में इस बार जिले के लिए 1650 करोड़ रुपए की जल जीवन मिशन योजना स्वीकृत हुई है। लेकिन जल के लिए इनकी यह त्रासदी तो आजादी से पहले ही चल रही है। क्षेत्र में लगे 12 हैंडपंप खराब पड़े हैं। पानी लाने के लिए रोजाना पहाड़ी के दुर्गम रास्तों से होकर 5 किलोमीटर का सफर तय करते हैं।
इसके बाद जमीन में गड्ढा खोदकर लोटा-लोटा पानी एकत्र करके अपने बर्तन में भरते हैं। इस काम में रोजाना 4 घंटे लग जाते हैं। कई बार पानी भी इतना गंदा होता है कि इसे जानवर तक नहीं पिएं। लेकिन प्यास बुझाने के लिए इनकी तो मजबूरी है।
गांव के लोगों का कहना हैं कि बारिश के सीजन के दौरान लोग जंगल में झरने से पानी भरते हैं। यह पानी भी रिस-रिस कर आता है। गर्मियों के दौरान तो कभी इस पहाड़ तो कभी उस मैदान में जाकर गड्ढों से पानी एकत्र करना पड़ता है। यही पानी लोग भी पीते हैं और जानवर भी। बैव निवासी जगतु पुत्र मंगलिया ने बताया कि माही बांध बनने से विस्थापित होकर यहां आए। केशवराम, संतु मीणा, कालू, श्यामलाल, राकेश ने बताया कि कई अधिकारियों को समस्या बताई, लेकिन समाधान नहीं हुआ।