जोधपुर। वेब डिजाइनिंग का काम करने वाले जोधपुर निवासी सागर व्यास के शरीर में एक ऐसी बीमारी लगी कि धीरे-धीरे उनका शरीर काम करना बंद कर रहा है। इस बीमारी के चलते उनके शरीर का 80 फीसदी हिस्सा काम नहीं करता, लेकिन सागर ने अपनी परिस्थितियों के आगे कभी हार नहीं मानी और अपनी ही तरह के लोगों के लिए एक एनजीओ शुरू किया "द राह", यह एनजीओ उनके जैसे लोगों को ना केवल हौसला देता है बल्कि उन्हें काम भी देता है। सागर का एक सपना था कि वह पैरासेलिंग कर यह देखे कि आसमान से धरती कैसी दिखती है? सागर के सपने को उनके दोस्तों ने मिलकर साल 2020 के विदा होने से पहले पूरा कर दिया।
जैसलमेर लेकर गए दोस्त व्हीलचेयर सहित करवा दी पैरासेलिंग
सागर के इस सपने को पूरा करने के लिए उसके दोस्त श्याम, रमेश, मुकेश और नवीन चौहान उसे जैसलमेर लेकर गए और वहां एक इवेंट के दौरान मेजर आनंद की मदद से सागर को पैरासेलिंग करवाई गई। मेजर आनंद ने सागर को पैरासेलिंग कराने की तैयारियों के दौरान यह महसूस किया कि सागर को व्हीलचेयर के साथ ही पैरासेलिंग करानी पड़ेगी। जिसके बाद उन्होंने सागर को बेल्ट और जैक्स की मदद से अच्छे से बांधा और उसके बाद उनकी व्हीलचेयर को भी बेल्ट और जैक्स की मदद से बांधकर उन्हें पैरासेलिंग कराई गई।
नही मानी हार, करते हैं दिव्यांगों की मदद
सागर इस बीमारी से ग्रसित होने के बाद धीरे-धीरे अपने शरीर को खो रहे थे, लेकिन उनका आत्मबल लगातार बढ़ता जा रहा था। उन्होंने एक एनजीओ "द राह" की स्थापना की और अपने ही जैसे लोगों की मदद के लिए हाथ आगे बढ़ा दिया। सागर इस एनजीओ के माध्यम से ना केवल ऐसे लोगों का हौसला बढ़ाते हैं बल्कि उन्हें घर बैठे काम भी देते हैं ताकि वे जीवन से निराश ना हो और ऐसे लोग आत्मनिर्भर बन सके।
क्या है मस्कुलर डिस्ट्राफी बीमारी
दरअसल, करीब 20 साल के बाद या बीमारी सामने आती है इस बीमारी में मरीज की मांस पेशियां सिकुड़ना शुरू हो जाती है और धीरे-धीरे प्रतिवर्ष 2 से 5 फ़ीसदी शरीर काम करना बंद कर देता है। इस बीमारी के चलते सागर का 80 फ़ीसदी शरीर निष्क्रिय हो चुका है यानी काम करना बंद कर चुका है।
क्या इस बीमारी का इलाज नहीं है?
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के इलाज की देशभर में विशेष व्यवस्था नहीं है, लेकिन मांसपेशियों को सिकुड़ने से रोकने के लिए कुछ दवाइयां दी जाती हैं। इसके अलावा विकलांगों के उपकरणों का उपयोग कर मरीज के जीवन को आसान बनाने का प्रयास किया जाता है। कुछ मामलों में ऑपरेशन किए जाते हैं लेकिन वे कारगर नहीं है, हालांकि स्टेम सेल थैरेपी से इस बीमारी को कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। स्टेम सेल थैरेपी की सुविधा देश के मुंबई, पूना, बेंगलूर तथा चेन्नई में इक्के-दुक्के बड़े निजी अस्पतालों में ही उपलब्ध है। साथ ही यह थैरेपी काफी महंगी होती है, जो आमजन की पहुंच से काफी दूर होती है। वैसे माना जाता है कि आयुर्वेद में पंचकर्म के तहत इस बीमारी के रोगी को थोड़ी राहत मिल सकती है।
सागर के दोस्तों ने दोस्ती की मिशाल की कायम
सागर की जिंदादिली पैरासेलिंग के दौरान साफ दिखती है। उनके इस जज्बे और हौसले से यह सीख मिलती है कि जिंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं, यानी जिंदगी के जितने दिन हमारे पास हैं उसे जिंदादिली से जीना ही जिंदगी है।