राजस्थान में गांव से जीती तो शहर में हार गई कांग्रेस, संगठन किसे मान रहा जिम्मेदार?
कांग्रेस ग्रामीण क्षेत्रों में लीड लेने में कामयाब हुई, तो वहीं शहरी क्षेत्र में 9 हजार से अधिक वोटों से निर्दलीय प्रत्याशी को बढ़त मिली। शहरी क्षेत्र में कांग्रेस की हार राजनीतिक हलके में चर्चा का विषय बनी हुई है।
राजस्थान में विधानसभा चुनाव पूरे हो चुके हैं और बीजेपी की स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बन रही है। हालांकि, इन सबके बीच पूरे प्रदेश में हॉट सीट बनी चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय पर इस बार इतिहास बना है। चित्तौड़गढ़ जिले में पांच विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें से चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय की सीट पर अब तक के इतिहास में पहली बार कोई निर्दलीय नहीं जीता है। पहली बार जिला मुख्यालय से कोई निर्दलीय जीता है। वहीं, इससे पहले 56 साल पहले जिले की बेंगु विधानसभा सीट से हरी सिंह निर्दलीय चुनाव जीते थे। वहीं, निर्दलीय चुनाव लड़कर चंद्रभान सिंह ने लगातार तीसरा चुनाव जीतने का इतिहास बनाया है। इन सबके बीच चित्तौड़गढ़ की जिला मुख्यालय सीट से कांग्रेस की हार चर्चा का विषय बनी हुई है, क्योंकि कांग्रेस की सीधी हार ग्रामीण क्षेत्र की बजाय शहर में हुई है।
ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस लीड लेने में कामयाब हुई, तो शहरी क्षेत्र में 9 हजार से अधिक वोटों से निर्दलीय प्रत्याशी को बढ़त मिली। शहरी क्षेत्र में कांग्रेस की हार राजनीतिक हलके में चर्चा का विषय बनी हुई है। कांग्रेस की इस तीसरी हार के साथ ही कांग्रेस के कद्दावर और मुख्यमंत्री गहलोत के करीबी रहे सुरेंद्र सिंह का राजनीतिक भविष्य भी लगभग तय रूप से समाप्त माना जा रहा है। हार के कारणों की बात की जाए तो सीधे तौर पर कांग्रेस की हर शहरी क्षेत्र में हुई है, जहां नगर परिषद पर कांग्रेस का कब्जा है और सभापति संदीप शर्मा कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह के बेहद करीबी माने जाते हैं। ऐसे में कांग्रेस के संगठन के लोग भी अंदर खाने इस हार के लिए सभापति संदीप शर्मा को जिम्मेदार मान रहे हैं।
सभापति संदीप शर्मा के क्षेत्र में हार गई कांग्रेस
वैसे तो कांग्रेस को शहरी क्षेत्र में लगभग 20 से ज्यादा बूथ पर करारी शिकस्त मिली है, लेकिन सभापति के खुद के वार्ड में भी कांग्रेस बढ़त बनाने में कामयाब नहीं हुई। साल 2018 में हुए स्थानीय निकाय के चुनाव के बाद कांग्रेस में सामान्य श्रेणी के लिए आरक्षित सभापति पद के लिए वरिष्ठ पार्षद महेंद्र सिंह मेड़तिया, पूर्व में अध्यक्ष रहे रमेश नाथ, महिला कांग्रेस की जिला अध्यक्ष नीतू कंवर भाटी, बालमुकुंद मालीवाल जैसे नाम को दरकिनार करते हुए संदीप शर्मा को सुरेंद्र सिंह जाड़ावत ने सभापति बनाया। जाड़ावत को उम्मीद थी कि नए चेहरे पर विकास की नई इबारत लिखी जाएगी, लेकिन इसके उलट हुआ। शहर के मूलभूत सुविधाओं के मुद्दे विधानसभा चुनाव में भारी पड़े और सभापति संदीप शर्मा का विकास का विजन कांग्रेस के लिए और खास तौर पर कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह के लिए राह का रोड़ा साबित हो गया। शहर में कांग्रेस बुरी तरह से फिसड्डी साबित हुई। त्रिकोणीय मुकाबले में भी कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह अपनी सीट नहीं बचा पाए। कांग्रेस में अंदरखाने चर्चा यह भी है कि समान रूप से कांग्रेस के सभी पार्षदों को सभापति संदीप शर्मा के कार्यकाल में तवज्जो नहीं मिली, जिसका परिणाम हुआ कि शहर के वार्डों में समान रूप से विकास कार्य नहीं हुए और इसी के चलते कांग्रेस शहरी क्षेत्र में बुरी तरह से पिछड़ गई। जिस वार्ड से सभापति संदीप शर्मा पार्षद का चुनाव लड़े थे उसी वार्ड में कांग्रेस निर्दलीय प्रत्याशी से पीछे रह गई। ऐसे में जहां कांग्रेस ने ग्रामीण क्षेत्रों में निर्दलीय प्रत्याशी चंद्रभान को मजबूती से टक्कर दी, वहीं शहरी क्षेत्र में कांग्रेस कुछ भी नहीं कर पाई।
टिकट कटने की संभावना पर विरोध में आगे
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट वितरण के दौरान पार्टी द्वारा चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय सीट पर नए चेहरे पर विचार करने की जानकारी सामने आने के साथ ही सभापति संदीप शर्मा ने सुरेंद्र सिंह के पक्ष में मोर्चा खोल दिया था। अपने खुद के होटल में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को एकत्रित कर एकमात्र नेता बताते हुए इस्तीफा देने का अभियान शुरू किया था। उसके बाद कार्यकर्ता सम्मेलन के जरिए शक्ति प्रदर्शन में भी सभापति की पूरी भूमिका रही थी। कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह ने सभापति संदीप शर्मा अत्यधिक विश्वास जताते हुए विधानसभा चुनाव प्रभारी बनाया, लेकिन अपने इसी विश्वस्त्र सिपहसालार की बदौलत सुरेंद्र सिंह जाड़ावत के नाम लगातार तीसरी हार का रिकॉर्ड दर्ज हो गया। शहरी क्षेत्र में विकास को लेकर की गई अनदेखी कांग्रेस पर सीधे तौर पर भारी पड़ी।
रिकॉर्ड विकास कार्य भी नहीं दिला पाए वोट
चित्तौड़गढ़ विधानसभा में कांग्रेस के प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह जाड़ावत के लगातार दूसरी बार चुनाव हारने के बाद भी अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री बनने के साथ उनका रुतबा कांग्रेस में बेहद बढ़ गया और हार के बावजूद अशोक गहलोत ने उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा देते हुए धरोहर संरक्षण प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया। वहीं, चित्तौड़गढ़ विधानसभा में मेडिकल कॉलेज, डिग्री कॉलेज, लॉ कॉलेज, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जैसे कई कार्य करवाने के बावजूद जनता का समर्थन उन्हें नहीं मिल पाया। ग्रामीण क्षेत्रों में हुए विकास कार्यों का फायदा तो उन्हें मिल गया, लेकिन शहरी क्षेत्र में टूटी सड़कें, गंदी नालियां, बंद रोड, लाइट और पट्टा वितरण में मनमानी के मामले कांग्रेस को ले डूबे, इसका नतीजा यह हुआ कि शहरी क्षेत्र में कांग्रेस 9000 अधिक मतों से हार गई।
- सुभाष बैरागी की रिपोर्ट