नए वित्त वर्ष में इनकम टैक्स का नया या पुराना विकल्प कौन सा चुनना होगा सही, जानें अभी
नए टैक्स स्लैब में 2.5 लाख तक सालाना आय पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। वहीं 2.5 लाख से 5 लाख तक की सालाना आय पर 5 प्रतिशत टैक्स लगेगा।
नई दिल्ली। नए वित्त वर्ष 2020-21 की शुरुआत हो चुकी है और हर नौकरी करने वालों को टैक्स बचाने के लिए अपने सेविंग्स और निवेश की जानकारी टैक्स डेक्लेरेशन फॉर्म भरकर देनी होती है, ताकि उनकी सैलरी में से सही टीडीएस रकम कट सके। लेकिन हम में से ऐसे कई लोग हैं जो अपनी सैलरी से कम टीडीएस कटे इसके लिए बिना सोचे समझे टैक्स डेक्लेरेशन में कुछ भी भर देते हैं और निवेश की गलत जानकारी दे देते हैं। ज्यादातर लोग तो निवेश करने का सोचकर फॉर्म भरते हैं लेकिन साल के अंत में किसी कारण वर्ष निवेश न कर पाने के कारण अंत में मजबूरन भारी टैक्स भरते हैं। इस बार दो करदाताओं के पास दो टैक्स विकल्प हैं तो आइए जानते हैं आपके लिए कौन सा विकल्प चुनना सही होगा।
नए वित्त वर्ष में करदाताओं को पुराना या नया टैक्स विकल्प चुनना होगा। करदाता जो विकल्प चुनेंगे, कंपनियां उसी के अनुसार टीडीएस काटेंगी। नए टैक्स विकल्प में टैक्सपेयर के लिए दरें कम रखी गईं हैं लेकिन सभी तरह की टैक्स छूट खत्म कर दी गई हैं। वहीं पुराने विकल्प में एचआरए, होम लोन इनटरेस्ट, एलआईसी में निवेश की छूट के साथ धारा 80C, 80D और 80DD में निवेश करने पर भी टैक्स छूट का लाभ मिलता है।
जानिए नए टैक्स की दरें:
ज्यादातर टैक्स सलाहकारों का मानना है कि नए टैक्स के विकल्प से लोगों को लंबे समय पर होने वाले निवेश का फायदा नहीं मिलेगा। वर्तमान में बेशक लोग निवेश न करने पर सैलरी ज्यादा ले पाएंगे। लेकिन, लंबी अवधि के लिए निवेश पर टैक्स पर मिलने वाले छूट से वंचित हो जाएंगे। आइये नीचे दिए गए टैक्स के उद्धारण से समझते हैं कि टैक्स विकल्पों में कौन सा विकल्प सही है।
नए टैक्स स्लैब में 2.5 लाख तक सालाना आय पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। वहीं 2.5 लाख से 5 लाख तक की सालाना आय पर 5 प्रतिशत टैक्स लगेगा। 5 से 7.5 लाख की आय पर 10 प्रतिशत, 7.5 से 10 लाख तक की आय पर 15 प्रतिशत, 10 से 12.5 लाख तक की सालाना आय पर 20 प्रतिशत, 15 लाख तक की आय पर 25 प्रतिशत और 15 लाख से अधिक की आय पर 30 प्रतिशत टैक्स लगेगा।
जानकारों की सलाह:
पैसाबाज़ार डॉट कॉम के सीआओ और सह-संस्थापक नवीन कुकरेजा का मानना है कि नई टैक्स व्यवस्था का चुनाव टैक्स धारकों के आर्थिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। इसलिए टैक्स धारकों को पुरानी टैक्स व्यवस्था के साथ ही रहना चाहिए और नई व्यवस्था का चुनाव नहीं करना चाहिए। नई टैक्स व्यवस्था में ज़्यादातर टैक्स छूट विकल्प उपलब्ध नहीं हैं। आयकर धारा 80 C और 80 D जैसी विभिन्न टैक्स छूट कानूनों ने टैक्स धारकों को निवेश के लिए प्रोत्साहित करने का काम किया है, विशेष रूप से उन लोगों को जिनमें आर्थिक अनुशासन की कमी है, इन लोगों ने टैक्स बचत के लिए ईएलएसएस, यूलिप, टर्म बीमा योजना, पेंशन योजना, मेडिकल बीमा, रिटायर्मेंट योजना आदि में निवेश किया है। पूराने टैक्स स्लैब के जरिये लोग कम से कम निवेश तो करते हैं, जिसका फायदा उन्हें बाद में मिलता है।
टैक्सपैनर डॉट कॉम के संस्थापक सुधीर कौशिक का कहना है कि नए टैक्स स्लैब के मुकाबले पुराना टैक्स स्लैब विकल्प ही सही है क्योंकि, वो आपके 15 लाख के सीटीसी पर सभी छूट और डिडक्शन को लेने के बाद जीरो टैक्स भरने में मदद करता है। साथ ही आपके मेहनत से कमाए हुए पैसों को आपके परिवार के आर्थिक मदद में बदलकर पूरा करने में सहयोग करता है। वहीं ज्यादा टैक्स भरने से आपके और आपके परिवार को इसकी कोई मदद नहीं होती।
पूराने टैक्स विकल्प के फायदे:
कुकरेजा का ये भी मानना है कि ये टैक्स छूट टैक्स धारकों और उनके परिवारों की आर्थिक सुरक्षा को बढ़ाने में मदद करती हैं। टर्म बीमा योजना व्यक्ति का निधन हो जाने की स्तिथि में उसके परिवार को आर्थिक सुरक्षा देता है, मेडिकल बीमा व्यक्ति को कोई गंभीर बीमारी या दुर्घटना हो जाने की स्तिथि में उसके इलाज के लिए खर्च सुनिश्चित करता है और ईएलएसएस लोगों को बीमा के लाभ के साथ निवेश विकल्प भी प्रदान करता है। साथ ही नए टैक्स व्यवस्था में टैक्स छूट के ये नियम ना होने पर, आर्थिक अनुशासन की कमी वाले टैक्स धारक नई टैक्स व्यवस्था का लाभ उठाने के लिए अपने लम्बे समय की आर्थिक सुरक्षा के लिए निवेश करना बंद कर सकते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण बात है कि अगर आपको लगता है कि आपके पास ज्यादा निवेश करने से कैश या लिक्विडिटी की दिक्कत होती है, तो आप अपने खर्च के हिसाब से ही निवेश करें और सालाना जो टैक्स बनता है उसका भुगतान करें। आप अपने टैक्स सलाहकार या सीए की मदद लें और अपने आय को कैलकुलेट करके फैसला लें कि आपको कौन सा टैक्स स्लैब जंचेगा।