New financial year tips for better return: बेहतर रिटर्न के लिए लोग अलग-अलग जगह निवेश करते हैं। इसकी वजह से लोग निवेश पर पूरी तरह फोकस नहीं कर पाते हैं। यही वजह है कि खूब इन्वेस्टमेंट के बाद भी बेहतर रिटर्न ले पाना मुश्किल होता है। कई बार निवेशक घाटे में भी चले जाते हैं। आप एक जगह निवेश कर भी बेहतर रिटर्न ले सकते हैं। नए फाइनेंसियल ईयर की शुरूआत से ही आप निवेश की प्लानिंग शुरू कर दें। इससे आप निवेश के समय पुरानी गलतियों को दोहराने से बच सकते हैं। अगर आप भी करने वाले हैं निवेश तो इन गलतियों को करे नजरअंदाज।
1. मुनाफे को नहीं करें नजरअंदाज
निवेश बहुत हद तक मनोविज्ञान पर आधारित है। इसलिए कुछ समय के गैप पर हमें अपने निवेश पोर्टफोलियो को चेक करते रहना चाहिए। अपने निवेश पोर्टफोलियो को रिव्यु करने का सबसे अच्छा समय नए फाइनेंशियल ईयर होता है।
कुछ ऐसी गलतियां होती है, जो आमतौर पर नए निवेशक करते है। हम आपको उन गलतियों के बारे में बता रहे है। आशा हैं कि आप नए फाइनेंशियल ईयर से इन गलतियों को दोहराने से बचेंगे। जैसे मार्केट को टाइम करना, निवेश को स्टॉप करना और निवेश को दोबारा से चालू करना। ये कुछ ऐसी गलतियां हैं जो पोर्टफोलियो को हानि पहुंचा सकते हैं।
2. निवेश करते समय टैक्स पर भी दें ध्यान
एक निवेशक के तौर पर निवेश करते समय हमेशा यह देखना चाहिए कि निवेश से मिलने वाले मुनाफे पर टैक्स देनदारी कितनी है। नहीं तो निवेश से कोई फायदा नहीं होगा। क्योंकि आने वाली सारी आय टैक्स में चले जाना है। हमेशा कम से कम टैक्स देनदारी वाले विकल्प चुनें।
3. कहीं टैक्स में तो नहीं चला जा रहा रिटर्न
इन्वेस्टमेंट के बाद रिटर्न मिलने पर इसका आकलन करना जरूरी है। कई बार लोग इन्वेस्टमेंट से रिटर्न मिलने पर इसे टैक्स के रूप में ही गवा देते हैं। नए फाइनेंसियल ईयर में इन्वेस्ट करते समय टैक्स बचत के ऊपर भी ध्यान रखना जरूरी है। ब्याज आय और Maturity Amount को ध्यान से देखें।
4. लिक्विडिटी गैप को भरना है जरूरी
पोर्टफोलियो बनाते समय लिक्विडिटी का ध्यान रखना जरूरी है। लिक्विडिटी की कमी हो तो इसे जरूर भरें। निदेशकों को नए फाइनेंशियल ईयर में रिटर्न और सेफ्टी का खास ख्याल रखना चाहिए। जरूरत पड़ने पर पोर्टफोलियो से पैसे निकलना जरूरी है।
5. नए फाइनेंशियल ईयर में क्षमता से ज्यादा रिस्क लेने से बचें
नए फाइनेंशियल ईयर में निवेश करते समय जोखिम से बचना जरूरी है। रिस्क केवल इतना ही ले जितना कि आपकी क्षमता हो। म्यूचुअल फंड के मेंडेटेड बदलते रहते हैं। नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) में भी समय के अनुसार बदलाव देखने को मिलते हैं। डेट फंड में लिक्विडिटी के अलावा क्रेडिट प्रोफाइल गड़बड़ी का पता लगाना जरूरी है।
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