फ्लैट बुक कराने से पहले बिल्डर्स से पूछ लें ये 5 बातें
इंडिया टीवी पैसा की टीम आज 5 बिंदुओं के बारे में बताने जा रही है, जो आपको फ्लैट लेते वक्त जरूर ध्यान में रखनी चाहिए।
नई दिल्ली। ऑनलाइन स्टोर से हम चाहें मोबाइल खरीदें या फिर सुपर मार्केट से राशन, हम छोटी से छोटी चीज को देख परख कर और उसके प्राइज कंपेयर कर खरीदते हैं। लेकिन जब हम अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी खरीदारी यानि कि घर खरीदते हैं तो लोगों की राय और बिल्डर की लुभावनी बातों पर यकीन कर जाते हैं। लेकिन इस वक्त हम कितनी बड़ी गलती कर रहे होते हैं, इसका अंदाजा हमें तभी लगता है जब हम अपने फ्लैट या मकान में रहने पहुंचते हैं। अक्सर देखा गया है कि बिल्डर जितना एरिया और नक्शा अपने ब्रॉशर में दिखाता है वह वास्तव में होता ही नहीं है। ऐसे में हमें बिल्डर से मकान खरीदते और पजेशन लेते वक्त कुछ खास बातें रखनी जरूरी हैं। इंडिया टीवी पैसा की टीम आज इन्हीं 5 बिंदुओं के बारे में बताने जा रही है, जो आपको मकान लेते वक्त जरूर ध्यान में रखनी चाहिए।
जमीन के कागजातों की पूरी तरह से करें पड़ताल
अक्सर हम बिल्डर की बातों में आकर निवेश कर जाते हैं, जबकि वास्तविक प्रोजेक्ट पेपर्स की पड़ताल ही नहीं करते। ऐसे में जरूरी है कि हम डेवलपर या बिल्डर से उस जमीन की रजिस्ट्री जरूर मांग लें जिस पर यह प्रोजेक्ट बनना है। अधिकतर मामलों में रजिस्ट्री से यह साफ पता चल जाता है कि जमीन पर विवाद तो नहीं है। बैंक केवल उन्ही जमीनों पर लोन देता है जिसपर किसी तरह का कोई विवाद न हो। इसके अलावा बिल्डर के प्रोजेक्ट में कितने टावर, कितने फ्लैट और कितने मंजिल को मंजूरी मिली है यह बात एथोरिटी की ओर से अप्रूव्ड लेआउट मैप भी जरूर देख लें। अक्सर ये बातें बिल्डर बताते नहीं हैं।
जमीन की लोकेशन और सैंपल फ्लैट जरूर देखें
बिल्डर के ब्रॉशर में जो दिखता है वह वास्तम में बहुत अलग होता है। ऐसे में ब्रॉशर पर नहीं खुद अपनी आंखों पर यकीन करें। जहां प्रोजेक्ट बन रहा है उस जगह को खुद जाकर विजिट करें। इससे जहां आप एक ओर आपके फ्लैट में इस्तेमाल होने वाले रॉ मैटेरियल को देख पाएंगे, वहीं दूसरी ओर आपको आसपास की लोकेशन जैसे हॉस्पिटल की दूरी, स्कूल, बाजार, रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड जैसी चीजों से अपने घर की दूरी को मापने में मदद मिलेगी।
आपके फ्लैट की सही माप की जानकारी लें
ग्राहक कई बार फ्लैट में लिखे सुपर एरिया को अपने फ्लैट का साइज मानकर फ्लैट की बुकिंग कर देते हैं। जबकि असल फ्लैट इससे काफी कम होता है। ऐसे में ग्राहकों को बिल्टअप, सुपर और कार्पेट एरिया का गणित भलिभांति समझ लेना चाहिए। कारपेट एरिया उस एरिया को कहते है जिस पर आप कारपेट बिछा सकें। इस एरिया में फ्लैट की दीवारें शामिल नहीं होती हैं। यह फ्लैट का अंदर का खाली स्थान होता है। बिल्टअप एरिया में फ्लैट की दीवारों को लेकर मापा जाता है, यानि इसमें कारपेट एरिया के साथ ही साथ पिलर, दीवारों और बालकनी की जगह शामिल होती है। वहीं सुपर एरिया उस एरिया को कहते हैं, जिसमें उस प्रोजेक्ट के अंदर कॉमन यूज की चीजें को शामिल किया जाता है जैसे जेनरेटर रूम, पार्क, जिम, स्वीमिंग पूल, लॉबी, टेनिस कोर्ट आदि। सभी बिल्डर्स फ्लैट को सुपर एरिया के आधार पर बेचते हैं।
पेनल्टी और पेमेंट क्लॉज को ध्यान से पढ़े
तय समय तक प्रोजेक्ट पर पजेशन न दे पाने पर डेवलपर्स ग्राहकों को पेनल्टी देने का प्रावधान रखते हैं। कई डेवलपर्स पजेशन तक ग्राहकों की ओर से भुगतान की जाने वाली किसी एक भी किश्त में देरी होने पर पनेल्टी न देने की शर्त रखते हैं। ऐसे में पेनल्टी क्लॉज को ध्यान से पढ़े, जरूरत हो तो एक्सपर्ट की राय भी लें। इसके अलावा आपको कैसे पेमेंट करना है इसकी भी जानकारी लें। आजकल 10% बुकिंग अमाउंट बाकी पजेशन पर, 12/24/42 महीनों के लिए ब्याज छूट, 20:80 स्कीम (बिना बैंक फंडिंग के), 20:80’ / ‘10:90’ / ‘8:92’ / ‘5:95’ जैसी स्कीमें काफी लोकप्रिय हैं। ग्राहक को प्रॉपर्टी खरीदने से पहले इन सभी की बारीकियों को सही से समझकर अपने लिए उचित पेमेंट स्कीम का चुनाव करना चाहिए।
हिडन चार्जेज का भी रखें ख्याल
बिल्डर बुकिंग के वक्त सफेद पन्ने पर सिर्फ अमाउंट और किश्तों की जानकारी देता है। लेकिन वह इनके पीछे कौन कौन से चार्ज जोड़ रहा है। इसकी जानकारी हमारे पास नहीं होती। हिडन चार्जेज में पार्किंग चार्ज, सोसाइटी चार्ज, पावर बैक-अप जैसे चार्जेज को शामिल किया जाता है। इन सभी चार्जेज के बारे में बुकिंग के समय पर ही डेवलपर से समझ लें। इसके अलावा ध्यान रखें कि बिल्डर प्राइस एस्केलेशन चार्ज की शर्त न लगाए। कई बार डेवलपर प्रोजेक्ट पर एक्सक्लेशन चार्जेज लगा देते हैं। जैसे सीमेंट, सरिया आदि कच्चे माल के दाम बढ़ने पर डेवलपर ग्राहकों के लिए फ्लैट की कीमत को बढ़ा देते हैं।
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