Always Share: हॉस्पिटलाइजेशन के बाद इंश्योरेंस कंपनी को दें ये जानकारी, नहीं अटकेगा हेल्थ पॉलिसी का क्लेम
अक्सर हेल्थ पॉलिसी होने के बावजूद उसका फायदा नहीं उठा पाते, यहां कुछ खास जानकारी दी जा रही है, जो आपको हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम दिलवाने में मदद करेगी।
नई दिल्ली। दिल्ली में रहने वाले कार्तिक अपने काम के सिलसिले में पिछले महीने मुंबई गए थे। वहां अचानक उन्हें पेट में दर्द उठा। जिसके बाद उनके सहयोगियों ने उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट कराया। कार्तिक का एपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ। उन्हें एक हफ्ते एडमिट करना पड़ा। कार्तिक ने अपने परिवार के लिए फैमिली फ्लोटर हेल्थ प्लान लिया था। लेकिन उनके मित्रों को उसकी जानकारी नहीं थी। जिसके चलते उन्हें कैशलैस फैसिलिटी नहीं मिल सकती। इसके बाद भी कार्तिक की ओर से इंश्योरेंस कंपनी को कोई सूचना नहीं दी गई। करीब 15 दिन बाद जब कार्तिक दिल्ली लौटे और उन्होंने इंश्योरेंस कंपनी में क्लेम के लिए अप्लाई किया, तो उनका क्लेम रिजेक्ट हो गया। कार्तिक की तरह ही हम भी अक्सर हेल्थ पॉलिसी होने के बावजूद उसका फायदा नहीं उठा पाते। यही ध्यान में रखते हुए इंडिया टीवी पैसा की टीम आपको बताने जा रही है कुछ खास बातों के बारे में जो आपको क्लेम दिलवाने में मदद करेंगी।
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बीमा कंपनी को सूचित करें
अगर आपके साथ भी ऐसी कोई दिक्कत हो तो इन सबके बीच बीमारी एवं इलाज के संबंध में अपनी बीमा कंपनी को अवश्य सूचित करें। यदि आप कैशलेस सुविधा ले रहे हैं तो अस्पताल में जाने से पहले एक बार अपनी बीमा कंपनी को भी सूचित कर दें। यह सूचना ईमेल के अलावा फोन पर भी दी जा सकती है। यदि आपको बीमा कंपनी के दायरे में आने वाले अस्पताल की बिल्कुल भी जानकारी नहीं है एवं आपके घर के नजदीक कई अस्पताल हैं जिनमें आपातकालीन सेवा ली जा सकती है तो इस बारे में अपनी बीमा कंपनी से पूछना न भूलें। उसे तुरंत फोन कर यह सुनिश्चित कर लें कि क्या संबंधित अस्पताल उसके नेटवर्क में आता है? अपनी बीमा कंपनी का डायरेक्ट हेल्पलाइन नंबर हमेशा अपने पास रखें।
क्लेम सेट्लमेंट के तरीके
क्लेम सेट्लमेंट दो तरीके से होता है पहला टीपीए के जरिए और दूसरा इन हाउस सेट्लमेंट के जरिए। आपका क्लेम इस बात पर निर्भर करता है कि आपने कौन सी पॉलिसी ले रखी है अर्थात कैशलेस पॉलिसी है या फिर उसमें इन हाउस क्लेम सेट्लमेंट किया जाएगा। यदि आपके पास कैशलेस पॉलिसी नहीं है या फिर आप उस अस्पताल में नहीं जा पाते हैं जो संबंधित बीमा कंपनी के नेट में है तो फिर इलाज के बाद क्लेम करना होता है। इसके लिए संबंधित बीमा कंपनी के दफ्तर में जाना होगा। वहां बीमा कंपनी आपसे कई तरह के कागजात मांगेगी, मसलन वास्तविक बिल, डॉक्टर की रिपोर्ट, डिस्चार्ज लेटर, जांच की रिपोर्ट आदि। बीमा कंपनी जो फॉर्म आपको देती है उसमें अलग-अलग कॉलम बने होते हैं जिसमें इलाज पर होने वाले खर्चों को श्रेणीबद्ध तरीके से दर्ज करना होता है। बीमा कंपनी यह जांच करती है कि किस खर्च पर क्लेम मिले एवं किस पर नहीं? आमतौर पर कंपनियां जांच एवं मरीज के भर्ती होने से पहले हुए खर्चों को कवर नहीं करतीं। किस रोग को कवर किया जाएगा एवं किसे नहीं इसका जिक्र बीमा खरीदते वक्त पॉलिसी डॉक्युमेंट में किया गया होता है।
कैशलैस सुविधा का जरूर उठाएं फायदा
जब आप कैशलेस सुविधा का फायदा ले रहे होते हैं तो इन सब प्रक्रियाओं से दो चार होने की जरूरत नहीं होती। साथ ही आपको इलाज के लिए अचानक पैसे के इंतजाम की जरूरत भी नहीं होती। क्लेम सेट्लमेंट भी आमतौर पर कुछ घंटों में (आमतौर पर 6 घंटे हालांकि कुछ बीमा कंपनियों ने इसे कम कर 4 घंटा करने का दावा किया है) हो जाता है। इसका सबसे बड़ा फायदा उन ग्राहकों को होता है जिनके पास उस वक्त इलाज के लिए पर्याप्त पैसे नहीं होते। आपको बीमा कंपनी के दायरे के अंतर्गत आने वाले किसी अस्पताल में जाकर टीपीए डेस्क को अपना कार्ड (जिसे कंपनी जारी करती है) दिखाना होता है। उसके बाद टीपीए डेस्क ही सारी प्रक्रियाओं को पूरा करता है।
क्लेम की समय सीमा
एक बीमा धारक को ध्यान रखना होता है कि हर बीमारी की सूरत में क्लेम करने की अलग-अलग सीमा निर्धारित की गई है। ऐसा नहीं है कि आपको जब समय मिले क्लेम हेतु आवेदन कर दिया। एक ही परिस्थिति में अलग-अलग बीमा कंपनियों एवं अलग-अलग पॉलिसी के आधार पर भिन्नता होती है। मसलन ओरिएंटल हेल्थ इंश्योरेंस अपने बीमा धारकों को प्रेगनेंसी संबंधी मामले में क्लेम के लिए एक महीने का समय देता है। क्लेम की यह समय सीमा इंडिविजुअल पॉलिसी एवं समूह पॉलिसी के मामले में भी भिन्न होती है।
टीपीए की भूमिका
कैशलेस सुविधा का लाभ लेने के लिए टीपीए की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। सारे खर्चों के संबंध में ग्राहक की तरफ से वही प्रक्रिया को अंजाम देता है। आपने जिस बीमा कंपनी से कैशलेस प्लान खरीदा है उसका एक टीपीए डेस्क अस्पताल में होगा (यदि वह अस्पताल उसके नेट में आता है)। उस डेस्क पर आपको एक फॉर्म भरना होगा। उसके बाद टीपीए की भूमिका शुरू हो जाती है। टीपीए सभी कागजात, रिपोर्ट, खर्च आदि का ब्यौरा (हालांकि इसके लिए मरीज का अस्पताल में भर्ती होना जरूरी है) तैयार करता है। कहने का मतलब है कि टीपीए संबंधित अस्पताल एवं बीमा कंपनी के बीच एक मध्यस्थ की भूमिका अदा करता है।