Plan Your Future: सैलरी का पहला चेक मिलते ही शुरू करें फाइनेंशियल प्लानिंग, ये 5 स्टेप्स होंगे मददगार
इंडियाटीवी पैसा की टीम युवा रीडर्स को बनाने जा रही है फाइनेंशियल प्लानिंग की ऐसी खास बातें, जिन पर पहली सैलरी से ही अमल करना जरूरी होता है।
नई दिल्ली। मैनेजमेंट कॉलेज से पढ़ाई कंप्लीट करने के बाद 3 साल पहले कार्तिक ने गुड़गांव स्थित एक रिसर्च फर्म में पहली नौकरी जॉइन की थी। हमेशा से ब्राइट स्टूडेंट रहे कार्तिक को पहली जॉब में ही काफी अच्छा पैकेज भी मिला। अपनी स्टूडेंट लाइफ से ही कार्तिक ने अपने लिए कुछ लक्ष्य तय किए थे, जैसे नई कार, खुद का मकान, विदेश में छुट्टियां। इसके लिए पहला सैलरी चेक मिलते ही उसने फाइनेंशियल प्लानिंग पर अमल करना शुरू कर दिया। आज तीन साल बाद कार्तिक की अपनी कार है, जल्द ही वह ग्रेटर नोएडा में मकान भी तलाश कर रहा है। फाइनेंशियल एक्सपर्ट भी मानते हैं कि जितनी जल्दी हम निवेश की प्लानिंग शुरू कर दें, हमारे लिए उतना ही अच्छा होता है। लेकिन बहुत से लोग देर से जागते हैं, शायद तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। यही ध्यान में रखते हुए इंडियाटीवी पैसा की टीम युवा रीडर्स को बताने जा रही है फाइनेंशियल प्लानिंग की ऐसी खास बातें, जिन पर पहली जॉब से ही अमल करना जरूरी होता है।
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पहली सैलरी मिलते ही हो प्लानिंग पर अमल
अक्सर हम बेहतर भविष्य के ख्वाब तो बुनते हैं लेकिन उन पर अमल करने में पीछे रह जाते हैं। फाइनेंशियल एडवाइजर्स की मानें तो जैसे ही आप कमाना शुरू करते हैं उसी वक्त से कुछ फाइनेंशियल प्लान्स की योजना बहुत अहम होती है। ताकि भविष्य में आप आर्थिक रूप से सुरक्षित हो सकें। जल्दी बचत करने से आपके पास अपना कॉर्पस इकठ्ठा करने के लिए समय भी ज्यादा होता है। उदाहरण के तौर पर अगर 25 वर्षीय व्यक्ति 5000 रुपए प्रति महीना 10 फीसदी की दर से बचत करता है, तो 50 से 60 साल के बीच उसका कॉर्पस 1 करोड़ रुपए का हो सकता है। वहीं दूसरी ओर अगर 30 वर्ष की उम्र में 5000 रुपए प्रति महीना बचत करने पर 60 साल की उम्र तक कॉर्पस 60 लाख की ही होगा। यानि 5 साल की देरी पर 40 लाख का नुकसान हुआ। इसलिए उचित है कि बचत और निवेश अपने जीवन में जल्दी से जल्दी शुरू कर देनी चाहिए।
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बजट बनाकर उस पर अमल करें
फाइनेंशियल प्लान के लिए सबसे पहला स्टेप होता है बजट बनाना। आपका बजट आपकी चालू और अनुमानित आय व खर्चों पर आधारित होना चाहिए। अपने कैश फ्लो मॉनिटर करते रहना बहुत जरूरी है। इससे आपको पता चलता है कि आपका पैसा कहां ज्यादा खर्च हो रहा है। अपनी आय को ध्यान में रखते हुए आपको यह पता होना चाहिए कि आपके आय स्त्रोत कब तक का है। अपने बजट में महंगाई का भी ध्यान रखें। यदि आपकी आय आपके खर्चों से ज्यादा बढ़ जाती हैं तो आपका फाइनेंशियल प्लान आपके लिए काम कर रहा है और अगर इसका उलटा होता है तो आपको प्लान दोबारा बनाने की जरूरत है।
लक्ष्य तय करें और उन्हें हासिल करने का प्रयास करें
अपका अगला कदम अपना लक्ष्य तय करना होना चाहिए जैसे कि घर खरीदना, शादी आदि। इसके बाद इन्हें छोटे, मध्य और लंबी अवधि के लक्ष्यों में बांट लें। अपने निवेश का विश्लेषण करें और देखें कि आप कितना जोखिम उठाने में सक्षम है। आपका फाइनेंशियल इन दो चीजों पर ही निर्भर करता है। यह फाइनेंशियल प्लान आपको बता पाएगा कि आपको किस समय कितनी राशि की जरूरत होगी और इसके आधार पर अपना निवेश प्लान यानि कि छोटी, मध्य और लंबी अवधि के लक्ष्यों को तय करें। निवेश करने के लिए कई विकल्प होते हैं जैसे कि म्युचुअल फंड्स, रियल एस्टेट, डेट आदि। अपने निवेश विकल्प का चुनाव यह देखकर होना चाहिए कि आपके लिए क्या ज्यादा बेहतर है। जैसे कि किस विकल्प में टैक्स बच सकता है और भविष्य में कौन बेहतर रिटर्न्स देने में सक्षम है।
बचत के साथ निवेश पर भी हो फोकस
सबसे उचित होता है अगर आप मासिक रुप से सिस्टेमेटिक इंवेस्टमेंट प्लान या सिस्टेमेंटिक ट्रांस्फर प्लान के जरिए निवेश करना शुरु कर दें। ऐसा करने से आपको अपने सामान्य निवेश पर दो गुना लाभ मिल सकता है। वास्तव में आपोक यह प्रक्रिया ऑटोमेट कर देनी चाहिए। यह आप म्युचुअल फंड/ रिकरिंग डिपॉजिट आदि के लिए सीधा बैंक ट्रांस्फर के विकल्प का चयन कर सकते हैं। ऐसा करने से आप अपने बचत करने के लक्ष्य कभी भी चूक नहीं पाएंगे। सामान्य तौर पर आपकी आय आपके निवेश का 10 गुना होना चाहिए। उदाहरण के तौर पर अगर आपकी आय 10 लाख रुपए साल है तो आपका न्यूनतम इंश्योरेंस कवर 1 करोड़ रुपए तक का होना चाहिए।
टैक्स प्लानिंग पर भी दें ध्यान
पूंजी बढ़ाने के लिए सबसे जरूरी है टैक्स प्लानिंग है। टैक्स बचाने के लिए आपको किसी टैक्स एक्सपर्ट की राय लेनी चाहिए ताकि आप अच्छे से निवेश और बचत कर सकें। सेक्शन 80 सी के तहत एक लाख रुपए तक की लिमिट पर सरकार की ओर से दी गई कई स्कीम्स पर भी टैक्स बचाया जा सकता है जैसे कि बच्चों की ट्यूशन फी, आश्रित माता पिता के दवा के खर्चे, हाउस लोन पर ब्याज और घर को रेनोवेशन पर ब्याज आदि कर कटौती के योग्य होते है।