नई दिल्ली। कहते हैं न कि लंबे समय के लिए शेयरों में किया निवेश बेहतर रिटर्न देता है। हालांकि, यह बात तभी सार्थक होती है जब आपके निवेश में डाइवर्सिफिकेशन हो, आपने एक ही नहीं विभिन्न सेक्टर के शेयरों में निवेश किया हो। अब सरकारी बैंकों के शेयरों का ही हाल देखिए। आश्चर्य होगा, लेकिन सच्चाई यही है कि पिछले 10 साल में सरकारी बैंकों के शेयरों की तुलना में उन बैंकों के फिक्स्ड डिपॉजिट के रिटर्न कहीं बेहतर रहे हैं। अगर आपने साल 2008 में सरकारी बैंकों के शेयरों में निवेश किया होता और आज की तारीख में पैसे निकालने जाते तो कई बैंकों के मामले में नुकसान ही सहना होता। मतलब, यहां पारंपरिक निवेश फिक्स्ड डिपॉजिट का प्रदर्शन बेहतर रहा है। आपको याद दिला दें कि सरकारी बैंकों के FD की ब्याज दरें 6.50 से 9.25 फीसदी तक थीं।
अब आप देश के सबसे बड़े बैंक, भारतीय स्टेट बैंक का ही उदाहरण लीजिए। 20 फरवरी 2008 को इसके एक शेयर की कीमत थी 220.58 रुपए और 20 फरवरी 2018 को इसकी कीमत 269.65 रुपए थी। रिटर्न के नजरिए से देखें तो SBI के शेयर ने सिर्फ 2% CAGR दिया है। हालांकि, बैंक ऑफ बड़ौदा और इंडियन बैंक को छोड़ दें, जिसने SBI से बेहतर रिटर्न दिया है तो ज्यादातर सरकारी बैंकों ने शेयरों में निवेश करने वालों को निराश ही किया है।
अब बात करते हैं घोटाला मामले में चर्चित पंजाब नेशनल बैंक की। इसके शेयर की कीमतों में पिछले 10 साल के दौरान 4% की गिरावट दर्ज की गई है। 20 फरवरी 2008 को इस शेयर की कीमत 122.51 रुपए थी जो 20 फरवरी 2018 को 116.55 रुपए पर देखी गई।
कुल मिलाकर देखें तो पिछले 10 वर्षों में सरकारी बैंकों में लगाए निवेशकों के पैसे 90 फीसदी कम हो गए। इंडियन ओवरसीज बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और देना बैंक में तो 89% तक की गिरावट देखी गई। वहीं बैंक ऑफ इंडिया, ओरिएंटल बैंक, कॉरपोरेशन बैंक, इलाहाबाद बैंक और आंध्रा बैंक के शेयरों में 45 से 65 तक की गिरावट दर्ज की गई।
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