नई दिल्ली। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के प्रशासनिक शुल्क में कटौती के निर्णय से पांच लाख से अधिक नियोक्ताओं को संयुक्त रूप से सालाना 900 करोड़ रुपए की बचत होगी। यह निर्णय 1 जून 2018 से प्रभावी होगा। EPFO के न्यासियों ने 21 फरवरी को हुई बैठक में प्रशासनिक शुल्क को नियोक्ताओं द्वारा दिया जाने वाले कुल वेतन भुगतान का 0.65 प्रतिशत से घटाकर 0.50 प्रतिशत करने का फैसला किया था।
EPFO के केंद्रीय भविष्य निधि आयुक्त वी पी जॉय ने कहा कि श्रम मंत्रालय ने प्रशासनिक शुल्क कम करने के निर्णय को अधिसूचित किया है। यह 1 जून 2018 से प्रभाव में आएगा। इससे नियोक्ता अपने कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के दायरे में लाकर औपचारिक वेतन रजिस्टर में उनका नाम शामिल करने के लिए प्रोत्साहित होंगे।
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने अपना कामकाज बढ़ाने तथा तथा ऐसे शुल्क की वसूली में वृद्धि के लिए यह कदम उठाया है। ईपीएफओ के अनुमान के अनुसार नियोक्ताओं को इससे संयुक्त रूप से सालाना कुल 900 करोड़ रुपए की बचत होगी।
पिछले वित्त वर्ष के दौरान ईपीएफओ ने सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को चलाने के लिये प्रशासनिक शुल्क के रूप में नियोक्ताओं से 3,800 करोड़ रुपए की वसूली की। ईपीएफओ ने प्रशासनिक शुल्क के जरिये 20,000 करोड़ रुपए का अधिशेष जमा किया है। इस पर ब्याज के रूप में सालाना 1,600 करोड़ रुपए से अधिक प्राप्त होता है।
प्रशासनिक शुल्क में कटौती के कारण के बारे में बताते हुए जॉय ने कहा कि ईपीएफओ प्रशासनिक शुल्क में कटौती से प्रभावित नहीं होगा क्योंकि इससे अंशधारकों का योगदान आधार बढ़ेगा। प्रशासनिक शुल्क कर्मचारियों के कुल वेतन के उस हिस्से पर आनुपातिक रूप से लगाया जाता है जिस पर नियोक्ता अपना योगदान देता है।
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