नई दिल्ली। सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (सिप) निवेश का एक सरल आइडिया है, यदि आप इसे जटिल बनाते हैं, तो वास्तव में आप अपने रिटर्न को खराब करेंगे। सिप के लिए कई भ्रांतियां हैं। सिप को अभी भी लोग पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं और वे इसका गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। कई निवेशक सिप के जरिये किए जाने वाले निवेश को शेयर बाजार से लिंक करते हैं। जो कि बिल्कुल भी सही नहीं है।
सामान्य तौर पर जो लोग निवेश के लिए सिप का रास्ता अपनाते हैं लेकिन वे इसे बाजार के समय के साथ जोड़ देते हैं। हम 2010 में जाते हैं, मुझे याद है कि निवेशकों ने दावा किया था कि सिप अच्छा नहीं है और उस समय वह इससे बाहर निकल गए थे। यह वह लोग थे जिन्होंने 2008 की भारी गिरावट के बाद अपने सिप को बंद कर दिया था और इसे दोबारा 2009 की रिकवरी के बाद शुरू किया था।
लांग टर्म में संपत्ति बनाने के लिए अनुशासन में रहकर सिप में निवेश करते रहना होगा। चूंकि इक्विटी मार्केट में शॉर्ट और मीडियम टर्म में काफी उतार-चढ़ाव आते हैं, ऐसे में लगातार निवेश करते रहना बहुत अहम है। इसमें निवेशक कम रकम में ज्यादा और ज्यादा रकम में कम यूनिट्स खरीदता है, जो कि निवेशक के लिए फायदेमंद रहता है। सिप को अपने किसी भी वित्तीय लक्ष्य जैसे बच्चे की शादी, रिटायरमेंट फंड के साथ आसानी से जोड़ा जा सकता है।
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आमतौर पर निवेशकों को सिप की सही अहमियत की ज्यादा समझ नहीं होती। सिप के पीछे सोच दरअसल शॉर्ट टर्म में बाजार के उतार-चढ़ाव की अनदेखी करने की है, लेकिन वास्तविक जीवन में इस पर अमल करना बहुत मुश्किल है। निवेशक सामान्यत: अपने निर्णय शॉर्ट टर्म में सिप से मिले रिटर्न के आधार पर करते हैं। यदि पिछले एक वर्ष में रिटर्न अच्छे मिले हैं तो वे सिप की रकम बढ़ाने लगते हैं और इसके उलट यदि रिटर्न खराब रहे हैं तो वे सिप खाता ही बंद कर देते हैं। हकीकत में ये दोनों ही गलत हैं। बाजार की तेजी के दौर में अच्छे रिटर्न के लिए सिप में इजाफा करने का सीधा अर्थ है कि वह महंगे दाम पर ज्यादा यूनिट्स खरीद रहा है, वहीं इसके उलट जब बाजार कमजोर होता है और शॉर्ट टर्म में सिप से निगेटिव रिटर्न मिलते हैं तो निवेशक आमतौर पर सिप बंद कर देते हैं, जबकि सिप का वास्तविक लाभ तब मिलता है जब सस्ते दाम पर ज्यादा यूनिट्स खरीदता है और निवेशक बाजार में रिकवरी का इंतजार करता है।
Source: Value reserch
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