Step by Step Guide : ऐसे करें लाइफ इंश्योरेंस का क्लेम, नहीं काटने होंगे बीमा कंपनी के दफ्तर के चक्कर
जब लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसीधारक की मृत्यु हो जाती है तो उसके कानूनी दावेदारों को क्लेम लेने के लिए कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं।
नई दिल्ली। किसी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के प्रदर्शन को आंकने का सबसे सही पैमाना यह होता है कि वह कंपनी आपको कितनी जल्दी क्लेम देती है। कोई इंश्योरेंस कंपनी कितनी जल्दी इंश्योरेंस क्लेम देती है इसी आधार पर ग्राहक पॉलिसी की खरीदारी का फैसला करते हैं। लाइफ इंश्योरेंस लेने से मरने वाले व्यक्ति की कमी को तो नहीं पूरा किया जा सकता है लेकिन परिवार की वित्तीय जरूरतें अवश्य पूरी हो सकती हैं।
जब पॉलिसीधारक की मृत्यु हो जाती है तो उसके कानूनी दावेदारों को क्लेम लेने के लिए कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि क्लेम की प्रक्रिया को रफ्तार से पूरा किया जाए। नीचे लिखे तरीकों से क्लेम की प्रक्रिया को तेज बनाया जा सकता है।
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क्लेम इंटीमेशन
क्लेम की प्रक्रिया शुरू करने को क्लेम इंटीमेशन भी कहा जाता है। यह काम आप कंपनी के ब्रांच ऑफिस जाकर या कंपनी की वेबसाइट से भी कर सकते हैं। क्लेम इंटीमेशन में पॉलिसी नंबर, मृत्यु की तारीख, क्लेम करने वाले व्यक्ति का नाम और इंश्योर्ड के साथ संबंध की जानकारी उपलब्ध करानी होती है। यह केवल क्लेम इंटीमेशन है न कि क्लेम।
क्लेम के लिए जरूरी दस्तावेज
क्लेम करने की प्रक्रिया में मृतक के दावेदार को नगर पालिका या ग्राम पंचायत द्वारा जारी किए गए इंश्योर्ड के मृत्यु प्रमाण पत्र की जरूरत पड़ेगी। इसके अलावा भी कई दस्तावेजों की जरूरत पड़ती है। उदाहरण के तौर पर क्लेम करने वाले व्यक्ति को अपनी फोटो, एड्रेस प्रूफ और फोटो आइडेंटिटी प्रूफ देने की जरूरत होती है। इसके अलावा बीमा कंपनियां दावेदार से अतिरिक्त जानकारियां भी मांगती हैं।
यह जानने के लिए कि यह पैसा कानूनी दावेदार के खाते में गया है या नहीं, बीमा कंपनियां बैंक अकाउंट स्टेटमेंट की मांग भी करती हैं। कुछ इंश्योरेंस कंपनियां अतिरिक्त दस्तावेजों की मांग करती हैं। हालांकि यह मृत्यु की वजह, क्लेम के प्रकार पर भी निर्भर करता है। बीमा कंपनी यह आश्वस्त करती है कि इसमें इंडस्ट्री के दिशानिर्देशों का पालन किया गया है। यह सभी दस्तावेज वास्तविक होने चाहिए या फिर इनकी प्रति गजटेड ऑफिसर या इंश्योरेंस कंपनी के अधिकृत व्यक्ति द्वारा अटेस्टेड होनी चाहिए।
पॉलिसी धारक की मृत्यु के बाद के क्लेम के लिए जरूरी दस्तावेज
- पूरी तरह भरा हुआ क्लेम फॉर्म जो बीमा कंपनी द्वारा दिया गया है
- मृत्यु प्रमाणपत्र
- पॉलिसी दस्तावेज
- नॉमिनी नहीं है तो उत्तराधिकार का कानूनी सबूत
- मृत्यु की परिस्थिति के अनुसार मेडिकल अटेंडेंड का प्रमाणपत्र, अस्पताल का प्रमाणपत्र, नियोक्ता का प्रमाणपत्र, पुलिस तहकीकात रिपोर्ट, पोस्टमार्टम रिपोर्ट आदि।
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क्लेम जमा करने की समय सीमा
वैसे तो क्लेम के लिए कोई निश्चित सीमा नहीं है लेकिन अच्छा यही रहेगा कि परेशानी से बचने के लिए जल्द से जल्द क्लेम के लिए आवेदन किया जाए। क्लेम की प्रक्रिया में आपको जरूरी दस्तावेज कंपनी द्वारा बताई गई प्रक्रिया के अनुसार जमा करने पड़ते हैं। अगर यह दस्तावेज सही तरीके से जमा कराए जाते हैं तो क्लेम में देरी नहीं होगी। कानूनी दावेदार क्लेम की प्रोसेसिंग पर पॉलिसी नंबर के जरिए नजर रख सकता है। यह नंबर दरअसल क्लेम के लिए आवेदन जमा करते वक्त दिया जाता है।
क्लेम की प्रोसेसिंग
क्लेम प्रोसेसिंग की प्रक्रिया में मृत्यु के बताए गए कारणों का दोबारा सत्यापन किया जाता है। केवल सही और वाजिब दावों के लिए ही भुगतान किया जाए इसलिए सत्यापन जरूरी हो जाता है। बीमा नियामक ने क्लेम के सत्यापन हेतु 180 दिनों की सीमा तय की है और इंश्योरेंस कंपनियां समय-सीमा के अंदर यह काम पूरा करने की कोशिश करती हैं, जिससे जल्द से जल्द इसकी प्रोसेसिंग हो सके और ग्राहकों का भरोसा बरकरार रहे।
बीमा नियामक के दिशानिर्देशों के मुताबिक जरूरी दस्तावेज मिलने के बाद इंश्योरेंस कंपनियों को क्लेम देने की प्रक्रिया 30 दिन के अंदर पूरी करनी होती है। हालांकि कुछ कंपनियों के आंतरिक दिशानिर्देश भी होते हैं तो वे और पहले क्लेम दे देती हैं जो इंडस्ट्री के लिए एक उदाहरण है।
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मैच्योरिटी के बाद ऐसे करें क्लेम
जब लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी मैच्योर होने वाली होती है तो आम तौर पर बीमा कंपनियां पॉलिसी धारक को कम से कम दो-तीन महीने पहले डिस्चार्ज वाउचर के साथ इसकी जानकारी देती हैं। पॉलिसी धारक को इस बात की जानकारी भी दी जाती है कि उन्हें कितने पैसे मिलने वाले हैं। पॉलिसी धारक को डिस्चार्ज वाउचर पर हस्ताक्षर करने के बाद उस पर किसी दूसरे व्यक्ति के हस्ताक्षर गवाही के तौर पर लेने होते हैं। फिर इसे पॉलिसी बांड के साथ बीमा कंपनी को वापस भेजना होता है। अगर जीवन बीमा पॉलिसी किसी व्यक्ति या इकाई जैसे हाउसिंग फाइनेंस कंपनी या बैंक को असाइन की गई है तो बीमा की रकम का भुगतान उस संपत्ति-भागी को किया जाएगा जो डिस्चार्ज वाउचर पर हस्ताक्षर करता है।
क्लेम प्रक्रिया पर रहती है नियामक की निगाह
क्लेम हैंडलिंग की प्रक्रिया पर नियामक की नजर रहती है। इसके कुछ दिशानिर्देश मौजूद हैं और कंपनियों को इसका पालन करना होता है। इससे ग्राहक बड़ी आसानी से यह सूचना एक्सेस कर सकते हैं। हालांकि, ग्राहकों को भी अपनी तरफ से सतर्क रहना चाहिए। प्रपोजल फॉर्म में सही जानकारी भरना जरूरी होता है जिससे दावेदारों को क्लेम लेने में कोई दिक्कत न आए।