अमेरिका के सिलिकॉन वैली बैंक के डूबने की खबर ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। अकाउंट होल्डर्स और निवेशकों की सारी पूंजी दांव पर लगी हुई है। क्या आप जानते हैं कि अगर भारत में कोई बैंक दिवालिया या डिफॉल्टर होता है तो लोगों के जमा पैसे का क्या होगा? उन्हें कितनी रकम वापस मिलेगी? और भारत में इसे लेकर क्या नियम बनाए गए है। आइए आज आपको इस बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं।
भारत सरकार ने साल 2020 में डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन (DICGC) नियम में बदलाव किया था। इस एक्ट के तहत बैंक पांच लाख रुपये तक की राशि की गारंटी देता है। इससे पहले अकाउंट होल्डर्स को अधिकतम एक लाख रुपये तक की गारंटी मिलती थी। ऐसे में अगर कोई बैंक डिफॉल्टर हो जाता है, तो लोगों की पांच लाख रुपये तक सुरक्षित है।
पांच लाख से ज्यादा रकम का क्या होगा?
बैंक डूबने की स्थिति में अकाउंट होल्डर्स के सिर्फ 5 लाख रुपये को इंश्योर्ड किया गया है। यानी बैंक में भले ही आपकी कितनी ही रकम जमा हो, आपको गारंटी सिर्फ 5 लाख रुपये तक की ही मिलेगी। अगर आपने एक ही बैंक की अलग-अलग ब्रांच में अपना पैसा रखा है, तो भी आपको कुल मिलाकर पांच लाख रुपये की रकम पर ही गारंटी मिलेगी। यह पैसा लोगों को 90 दिन के अंदर मिल जाता है।
DICGC लेता है लोगों के पैसे की जिम्मेदारी
वैसे तो कोई भी बैंक आसानी से डिफॉल्टर नहीं होता है। जब भी किसी बैंक पर ऐसा संकट मंडराने लगता है तो सरकार उसका बड़े बैंकों के साथ मर्जर कर देती है। ऐसे में बैंक डिफॉल्टर होने से बच जाते हैं। फिर भी अगर कोई बैंक डूब जाता है तो DICGC लोगों के पैसे की जिम्मेदारी लेता है। DICGC इस पैसे की गारंटी के लिए बैंकों से बदले में प्रीमियम लेता है।
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