क्या होती है GDP, जानिए आम जनता से लेकर पूरे देश के लिए यह क्यों है इतनी महत्वपूर्ण
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को ही कोवडि-19 को एक दैवीय घटना बताते हुए कहा था कि इसका असर अर्थव्यवस्था पर साफ दिखाई देगा और चालू वित्त वर्ष में इसमें बड़ा संकुचन आएगा।
नई दिल्ली। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय सोमवार को चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े जारी करेगा। इस बार के जीडीपी आंकड़े बहुत अहम होंगे, क्योंकि इससे ही पता चलेगा कि आगे देश का भविष्य क्या होगा। कोरोना वायरस के कारण इस साल अप्रैल से जून के दौरान पूरे देश में लॉकडाउन लागू किया गया था। इस दौरान सारी आर्थिक गतिविधियां और विनिर्माण ठप था। उल्लेखनीय है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को ही कोवडि-19 को एक दैवीय घटना बताते हुए कहा था कि इसका असर अर्थव्यवस्था पर साफ दिखाई देगा और चालू वित्त वर्ष में इसमें बड़ा संकुचन आएगा।
क्या होते हैं जीडीपी आंकड़ें
ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) किसी एक साल में देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं का कुल मूल्य होता है। रेटिंग्स एजेंसी केयर रेटिंग्स के अर्थशास्त्री सुशांत हेगड़े के मुताबिक जीडीपी ठीक वैसी ही है, जैसे किसी छात्र की मार्कशीट होती है।
जिस तरह मार्कशीट से पता चलता है कि छात्र ने सालभर में कैसा प्रदर्शन किया है और किन विषयों में वह मज़बूत या कमज़ोर रहा है, उसी तरह जीडीपी आर्थिक गतिविधियों के स्तर को दिखाता है और इससे यह पता चलता है कि किन सेक्टर्स की वजह से इसमें तेज़ी या गिरावट आई है।
इससे पता चलता है कि सालभर में अर्थव्यवस्था ने कितना अच्छा या ख़राब प्रदर्शन किया है। अगर जीडीपी डेटा सुस्ती को दिखाता है, तो इसका मतलब है कि देश की अर्थव्यवस्था सुस्त हो रही है और देश ने इससे पिछले साल के मुक़ाबले पर्याप्त सामान का उत्पादन नहीं किया और सेवा क्षेत्र में भी गिरावट रही। भारत में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) साल में चार बार जीडीपी का आकलन करता है। हर साल यह सालाना जीडीपी ग्रोथ के आंकड़े जारी करता है।
कैसे किया जाता है इसका आकलन
चार अहम घटकों के ज़रिए जीडीपी का आकलन किया जाता है। पहला घटक उपभोग खर्च है। यह गुड्स और सर्विसेज को ख़रीदने के लिए लोगों का कुल खर्च होता है। दूसरा, सरकारी खर्च, तीसरा निवेश खर्च और चौथा है शुद्ध निर्यात। जीडीपी का आकलन नॉमिनल और रियल टर्म में होता है। नॉमिनल टर्म्स में यह सभी वस्तुओं और सेवाओं की मौजूदा क़ीमतों पर वैल्यू है।
जब किसी आधार वर्ष के संबंध में इसे महंगाई के सापेक्ष एडजस्ट किया जाता है, तो हमें रियल जीडीपी मिलती है। रियल जीडीपी को ही हम आमतौर पर अर्थव्यवस्था की ग्रोथ के तौर पर मानते हैं।
जीडीपी के डेटा को आठ सेक्टरों से इकट्ठा किया जाता है। इनमें कृषि, विनिर्माण, ऊर्जा, गैस आपूर्ति, खनन, वानिकी और मत्स्य, होटल, कंस्ट्रक्शन, ट्रेड और कम्युनिकेशन, फ़ाइनेंसिंग, रियल एस्टेट और इंश्योरेंस, बिजनेस सर्विसेज़ और कम्युनिटी, सोशल और सार्वजनिक सेवाए शामिल हैं।
आम जनता के लिए यह क्यों अहम है
आम जनता के लिए यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सरकार और लोगों के लिए फ़ैसले करने का एक अहम फ़ैक्टर साबित होता है। अगर जीडीपी बढ़ रही है, तो इसका मतलब यह है कि देश आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में अच्छा काम कर रहा है और सरकारी नीतियां ज़मीनी स्तर पर प्रभावी साबित हो रही हैं और देश सही दिशा में जा रहा है।
अगर जीडीपी सुस्त हो रही है या निगेटिव दायरे में जा रही है, तो इसका मतलब यह है कि सरकार को अपनी नीतियों पर काम करने की ज़रूरत है ताकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मदद की जा सके। सरकार के अलावा कारोबारी, स्टॉक मार्केट इनवेस्टर और अलग-अलग नीति निर्धारक जीडीपी डेटा का इस्तेमाल सही फ़ैसले करने में करते हैं।
जब अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन करती है, तो कारोबारी और ज़्यादा पैसा निवेश करते हैं और उत्पादन को बढ़ाते हैं क्योंकि भविष्य को लेकर वे आशावादी होते हैं। लेकिन जब जीडीपी के आंकड़े कमज़ोर होते हैं, तो हर कोई अपने पैसे बचाने में लग जाता है। लोग कम पैसा ख़र्च करते हैं और कम निवेश करते हैं। इससे आर्थिक ग्रोथ और सुस्त हो जाती है। भविष्य की योजनाएं बनाने के लिए इसे एक पैमाने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।