बिड़ला ग्रुप की सफलता की कहानी आम आदमी की जुबानी
आदित्य बिड़ला ग्रुप के बैनर तले तमाम ब्रांड के कपड़े बाजार में मौजूद रहते हैं और सभी के सभी उतनी ही शिद्दत के साथ खरीदे जाते हैं।
नई दिल्ली: लोगों की सोच को भांपकर मार्केट में अपने पांव पसारने की कला जिस खिलाड़ी को आती है उसे मार्केट का किंग कहा जाता है। वो कहते हैं न कि बाजार की अपनी एक अलग खासियत होती है, यह उन्हीं खिलाड़ियों को पसंद करती है जो टी-20 के मौसम में सहवाग, 50-50 की पिच पर सचिन और लंबे फार्मेट में द्रविड जैसा टैलेंट रखता हो। अगर आप यह तय कर लें कि मार्केट में खरीदारों को जो कुछ भी भाता या पसंद आता हो आप उस चीज को हर किसी के लिए उपलब्ध कराने का प्रबंध कर देंगे तो मार्केट में आपका डंडा चलना तय है। आपको जानकर हैरानी होगी कि आदित्य बिड़ला ग्रुप के बैनर तले तमाम ब्रांड के कपड़े बाजार में मौजूद रहते हैं और सभी के सभी उतनी ही शिद्दत के साथ खरीदे जाते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है इसे समझने के लिए आपको थोड़ा धीरज धरना होगा। हम आपको एक ऐसी छोटी कहानी सुनाएंगे जो यूं तो टैक्सटाइल सेक्टर में बिड़ला ग्रुप की सफलता का आईनाभर है, लेकिन यह आपको बाजार के बाजारवाद को समझाने के लिए काफी है। इस कहानी के जरिए समझिए क्यों बिड़ला ग्रुप आज भी लोगों का पसंदीदा ब्रांड बना हुआ है।
बिजनेस में धीरे-धीरे पसारे पांव
कुछ सालों पहले किसी कस्बे में सुरेश की मिठाई की एक दुकान हुआ करती थी। दुकान में पेठा बेचा जाता था। बिजनेस अच्छा खासा चल रहा था और कस्बे के लोग तेजी से इस दुकान की और बढ़ रहे थे। दुकान पर बढ़ती भीड़ को थामने के लिए सुरेश ने इसी कस्बे में एक और मिठाई की दुकान खोल दी। इस दुकान ने उम्मीद से बेहतर काम किया और सुरेश ने दो साल बाद एक और दुकान खोलने की योजना बना ली। लेकिन इसी बीच सुरेश के दिमाग में गजब का आइडिया आया। उसने सोचा कि अगर कुछ लोग पेठे के 10 पैसे दे सकते हैं तो कुछ लोग ऐसे भी होंगे जो और अच्छे पेठे के लिए 15-20 पैसे देने को भी तैयार होंगे। ऐसे में अगर वो दुकान नहीं खोलेगा तो कोई और इस दुकान को खोल लेगा। सुरेश ने पूरी तैयारी कर ली थी और वो दुकान खोलने वाला ही था, लेकिन सुरेश के पिता ने बताया कि लोग पेठे के कारण तुम्हारी दुकान की तरफ आकर्षित हुए हैं और ये वाजिब दामों में उपलब्ध है। इसलिए नई दुकान में इस थोड़े महंगे पेठे के लिए अन्य ग्राहकों का आना थोड़ा मुश्किल लगता है। सुरेश के पिता ने सुझाव दिया कि बेटा तुम्हे विकास मिठाई नाम से एक दुकान खोलनी चाहिए। सुरेश ने बताया कि यह आइडिया काम कर गया और इसके बाद उसने इन दोनों ब्रांड्स की कई और दुकाने खोल दीं।
सुरेश ने बताया कि उसके पिता एक चतुर व्यापारी हैं और ठीक एक साल पहले उन्होंने यह भांपा कि जो लोग 10 पैसे का पेठा खरीदते हैं वो अपने बेहतर पेठे के लिए 15 पैसे देने को तो तैयार हैं लेकिन वो 20 पैसे हरगिज नहीं देंगे। दुकान पर 10 पैसे का पेठा लेने वालों की तादात हरदम बनी रहती है। इसी वक्त सुरेश के पिता को एक आइडिया सूझा और उन्होंने उन लोगों के लिए एक अलग से दुकान खोल दी जो पेठे के लिए 15 पैसे देने को तैयार हैं। इस नई चेन का नाम रखा गया आनंद मिठाई। इस तरह से सुरेश के परिवार ने मिठाई की तीन चेन खोल दीं। सुरेश ने बताया कि सालभर बीतने के बाद उसने युवाओं को आकर्षित करने के लिए चाकलेट और अन्य स्पेशल मिठाइयों को लेकर एक नई चेन खोलने की योजना बनाई। इस नई चेन का नाम रखा गया लक्जरियस स्वीट।
दरअसल यह पूरी लड़ाई टार्गेट ऑडियंस को लेकर है
पेठा कुछ भी नहीं है, लेकिन यह बाजार में मुख्यधारा के लोगों की पसंद बना हुआ है जिसका नाम Peter England
विकास मिठाई Van Heusen ब्रांड के जैसी है, जो आमतौर पर लक्जरी कपड़ों की डीलिंग करती है।
वहीं आनंद मिठाई Allen Solly के जैसी है, जो इन दोनों वर्ग के लोगों के इतर की पसंद है।
वहीं Louis Philippe बाजार की लक्जरियस स्वीट की दुकान है और लोगों को लक्जरी फॉर्मल और कैजुअल कपड़े उपलब्ध करा रही है।
लब्बोलुआब– सुरेश और उसके पिता की इस छोटी सी कहानी ने बाजार के पूरे गणित को समझा दिया।
(इस पूरी कहानी में उदाहरण के जरिए यह समझाने की कोशिश की गई है कि कैसे कैसे बिड़ला अपने एक एक ब्रांड को बाजार में लाकर उसके चर्चित बनाते रहे और हर वर्ग के बीच में उनके ब्रांड्स की मांग आम हो गई।)