मोदी 2.0 की जीत के रंग में जीडीपी ने डाला भंग, सुस्ती से निपटने के लिए बनानी होगी नई रणनीत
राजीव सिंह ने कहा कि लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वापसी से निवेशकों में छायी खुशियों को सकल घरेलू उत्पाद (जीडपीपी) के चौथी तिमाही के आंकड़ों ने धूमिल कर दिया है।
नई दिल्ली। मोदी सरकार की प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की खुशियों को अर्थव्यवस्था के आंकड़ों ने धूमिल कर दिया है। आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती और बढ़ती बेरोजगारी सरकार के लिए खतरे घंटी है। इस समस्या से निपटने के लिए उसे अपनी रणनीति की समीक्षा करनी होगी। यह कहना है कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग के सीईओ राजीव सिंह का।
राजीव सिंह ने कहा कि लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वापसी से निवेशकों में छायी खुशियों को सकल घरेलू उत्पाद (जीडपीपी) के चौथी तिमाही के आंकड़ों ने धूमिल कर दिया है। हालांकि इस बात का अनुमान पहले से ही लगाया जा रहा था कि वैश्विक स्तर पर छायी सुस्ती के कारण चौथी तिमाही में घरेलू अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन कमजोर रहेगा। तमाम विशेषज्ञों की यह शंका सही साबित हुई। कृषि एवं विनिर्माण क्षेत्र में कमजोर प्रदर्शन के कारण वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर धीमी पड़कर पांच साल के न्यूनतम स्तर 5.8 प्रतिशत पर लुढ़क गई।
जीडीपी वृद्धि की यह दर वर्ष 2014-15 के बाद सबसे धीमी है। इससे पहले वित्त वर्ष 2013-14 में यह दर 6.4 प्रतिशत रही थी। मायूसी की एक और बड़ी वजह यह है कि चौथी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर चीन की आर्थिक वृद्धि की गति 6.4 प्रतिशत से भी कम रही है। इस लिहाज से चौथी तिमाही में भारत आर्थिक वृद्धि की तुलना में चीन से पिछड़ गया। मोदी सरकार अभी तक इस बात का डंका बजाती रही है कि आर्थिक विकास में भारत दुनिया में सबसे तेज रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। राष्ट्रीय आय के अनुसार समूचे वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान जीडीपी की वृद्धि दर भी घटकर पांच साल के न्यूनतम स्तर 6.8 प्रतिशत पर रही है। इससे पूर्व के वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत रही थी। अर्थव्यवस्था का यह आंकड़ा नई सरकार के लिए निश्चित तौर पर खुशियों में खलल डालने वाला साबित हुआ है।
सरकार की दलील है कि चौथी तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट एनबीएफसी क्षेत्र में दबाव जैसे अस्थायी कारकों की वजह से आई है और चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में आर्थिक गतिविधियां धीमी रह सकती हैं लेकिन उसके बाद इसमें तेजी आएगी। साथ ही सफाई दी है कि 6.8 प्रतिशत सालाना आर्थिक वृद्धि के आधार पर भी भारत दुनिया की तीव्र वृद्धि वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है। सरकार की इस सफाई को काफी हद तक सही माना जा सकता है लेकिन आर्थिक वृद्धि दर के जो आंकड़ों आए हैं उन्हें झुठलाया नहीं जा सकता।
इसमें कोई दोराय नहीं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के मुहाने पर खड़ी है। अमेरिका और चीन के बीच चल रहा व्यापार युद्ध और ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध जैसी घटनाएं इस संकट को आग में घी सरीखी साबित हो रही हैं। सरकार ने इसी आधार पर चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही की आर्थिक गतिविधियां कमजोर रहने के संकेत दिए हैं। ऐसे में भारत को दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के तमगे को बरकरार रखना आसान नहीं होगा। यदि मोदी सरकार इस उपलब्धि को बरकरार रखना चाहती है तो उसे आर्थिक मोर्चे पर नए सिरे से विचार करना होगा।
सरकारी आंकड़ों में वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) 6.6 प्रतिशत रहा जो इससे पूर्व वित्त वर्ष की इसी तिमाही में 6.9 प्रतिशत था। आर्थिक सुस्ती का मुख्य कारण कृषि और विनिर्माण क्षेत्रों का खराब प्रदर्शन रहा। इस दौरान कृषि, वानिकी और मत्स्य क्षेत्रों का जीवीए 0.1 प्रतिशत घटा, जबकि वर्ष 2017-18 की चौथी तिमाही में इसमें 6.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। विनिर्माण क्षेत्र में नरमी काफी तेज रही।