Stock Market Next Week: शेयर बाजार में सोमवार से और गिरावट आने की आशंका है। दरअसल, अमेरिका में महंगाई रिकॉर्ड हाई पर है। America में महंगाई पर काबू करने के लिए अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की बहुप्रतीक्षित 75 आधार अंकों की ब्याज दर में वृद्धि की पूरी संभावना है। इससे निवेशकों में चिंता बढ़ी है। फेड की ब्याज दरों में बढ़ोतरी से दुनियाभर के शेयर बाजारों में बिकवाली देखने को मिल सकती है। भारतीय बाजार भी इससे अछूते नहीं रहेंगे। मार्केट एक्सपर्ट का कहना है कि NSE Nifty टूटकर 17,200 पर सपोर्ट ले सकता है। वहीं, तेजी आने पर निफ्टी का रेजिस्टेंस 17800 पर रहने का अनुमान है। विशेषज्ञों का कहना है कि छोटे निवेशकों को जल्दबाजी करने से बचना चाहिए। बाजार को स्थिर होने का इंतजार करना चाहिए। उसके बाद ही फ्रेश एंट्री करना बेहतर होगा।
विदेशी निवेशकों ने फिर बिकवाली शुरू की
शेयर बाजार की चाल इस सप्ताह ब्याज दर पर अमेरिकी फेडरल रिजर्व के फैसले से तय होगी। विश्लेषकों ने यह राय दी। इसके अलावा, शेयर बाजार में विदेशी पूंजी की आवक और कच्चे तेल के रुझान से भी प्रमुख शेयर सूचकांक प्रभावित होंगे। स्वास्तिका इंवेस्टमार्ट लिमिटेड के शोध प्रमुख संतोष मीणा ने कहा, '' बैंक ऑफ इंग्लैंड भी ब्याज दर पर फैसले की घोषणा करेगा। उन्होंने आगे कहा कि संस्थागत निवेशक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, क्योंकि विदेशी निवेशक भारतीय इक्विटी बाजार में विक्रेता बन गए हैं। अमेरिका में मुद्रास्फीति के आंकड़े के बाद वैश्विक बाजार घबराए हुए दिख रहे हैं। इस वजह से डॉलर सूचकांक 110 के आसपास पहुंच गया है।'' कारोबारियों की नजर अब अमेरिकी संघीय मुक्त बाजार समिति (एफओएमसी) की आगामी बैठक के नतीजे पर है।
सभी की नजर नजर अमेरिकी फेडरल रिजर्व की बैठक पर
रेलिगेयर ब्रोकिंग लिमिटेड के शोध उपाध्यक्ष अजीत मिश्रा ने कहा, ''किसी भी प्रमुख घरेलू डेटा और घटनाओं के अभाव में, प्रतिभागियों की नजर अमेरिकी फेडरल रिजर्व की बैठक पर होगी। इसके अलावा, विदेशी आवक पर भी उनकी नजर रहेगी।'' पिछले हफ्ते सेंसेक्स 952.35 अंक यानी 1.59 फीसदी टूटा, जबकि निफ्टी 302.50 अंक यानी 1.69 फीसदी टूटा। सेंसेक्स शुक्रवार को 1,093.22 अंक या 1.82 प्रतिशत की गिरावट के साथ 58,840.79 पर बंद हुआ था। जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख विनोद नायर ने कहा कि मजबूत व्यापक आर्थिक आंकड़ों के बावजूद घरेलू बाजार में बांड प्रतिफल और डॉलर सूचकांक की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण शेयर बाजारों में गिरावट हुई।
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