SEBI ने जारी किया IPO को लेकर नया फरमान, इस काम की समयसीमा घटाकर 3 दिन कर दी
SEBI New Order IPO: SEBI हमेशा बाजार पर निगरानी रखता है और आवश्यकतानुसार शेयर मार्केट से जुड़े नियमों में बदलाव करता है। इस बार भी ऐसा ही देखने को मिला है। आइए पूरा मामला समझते हैं।
Deadline IPO Listing: SEBI ने बाजार के हित को ध्यान में रखते हुए एक और फरमान जारी किया है। इसकी मांग लंबे समय से निवेशक और कंपनियों के मालिक करते आ रहे थे। उनका मानना था कि लिस्टिंग के लिए इतना अधिक समय खर्च करना ठीक नहीं है। नियामक को काम में तेजी लानी चाहिए। यही एक कारण है कि नियामक ने इसमें बड़ा बदलाव किया है। पूंजी बाजार नियामक सेबी ने मंगलवार को आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (IPO) बंद होने के बाद कंपनी के शेयर सूचीबद्ध होने में लगने वाले समय को कम करने का प्रस्ताव किया है। सेबी ने इस समयसीमा को छह दिन से घटाकर तीन दिन करने की बात कही है। बता दें कि इससे यानि समयसीमा में प्रस्तावित कमी से आईपीओ लाने वाले पक्ष और निवेशकों, दोनों को फायदा होगा।
इस बदलाव के पीछे ये है वजह
सेबी ने अपने परामर्श पत्र में कहा कि आईपीओ लाने वाले पक्ष को जल्द पूंजी मिलेगी, जिससे व्यापार करने में आसानी होगी। दूसरी ओर निवेशकों को जल्दी शेयर मिलेंगे। बाजार नियामक ने नवंबर 2018 में निर्गम बंद होने के छह दिनों के भीतर शेयरों को सूचीबद्ध करने की समयसीमा तय की थी। इस व्यवस्था को 'टी+6' नाम दिया गया। इसमें 'टी' निर्गम बंद होने का दिन है। अब इसे टी+3 करने का प्रस्ताव है। बता दें कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने प्रस्ताव पर तीन जून तक हितधारकों और आम जनता से सुझाव मांगे हैं। बता दें कि हाल ही में बाजार नियामक सेबी ने सूचीबद्ध कंपनियों में संचालन व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ाने और जरूरी जानकारी का खुलासा समय पर सुनिश्चित करने के लिये नियमों में संशोधन का निर्णय लिया था।
एक नया नियम अक्टूबर 2023 से होगा लागू
बाजार पूंजीकरण के लिहाज से Top-100 कंपनियों के लिये यह व्यवस्था एक अक्टूबर 2023 से लागू होगी। वहीं बाजार पूंजीकरण के लिहाज से टॉप-250 लिस्टेड कंपनियों के लिये यह एक अप्रैल, 2024 से लागू होगी। लिस्टेड कंपनियों में संचालन व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिये सेबी ने कहा कि किसी लिस्टेड यूनिट के शेयरधारक को दिये गए किसी विशेष अधिकार के लिये समय-समय पर शेयरधारकों के अनुमोदन की आवश्यकता होगी ताकि विशेष अधिकारों के लंबे समय तक बने रहने के मुद्दे का समाधान किया जा सके। एक सूचीबद्ध इकाई के निदेशक मंडल में बने रहने के लिये शेयरधारकों की समय-समय पर मंजूरी की जरूरत होगी। इसका उद्देश्य निदेशक मंडल में स्थायी तौर पर बने रहने के चलन को समाप्त करना है।