Explainer: आखिर अमेरिकी शेयर बाजार, भारतीय शेयर बाजार को कैसे प्रभावित करता है?
अमेरिकी बाजार सिर्फ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ही नहीं बल्कि दुनियाभर की अर्थव्यवस्था के लिए बैरोमीटर का काम करता है। अमेरिकी शेयर मार्केट एक्सचेंज- डॉव जोन्स, एसएंडपी 500, नैस्डैक और बॉन्ड यील्ड पर दुनियाभर के निवेशकों की पैनी नजर होती है।
पिछले हफ्ते अमेरिका में मंदी की आशंकाओं के बीच अमेरिकी शेयर बाजार में भारी गिरावट आई, जिसने भारत समेत दुनियाभर के शेयर बाजारों को भी चपेट में ले लिया। नतीजन, सोमवार 5 अगस्त को बीएसई सेंसेक्स 2222 अंकों की गिरावट के साथ 78,759 अंकों पर बंद हुआ और निफ्टी 660 अंकों की भारी गिरावट के साथ 24,055 बंद हुआ। 5 अगस्त की इस गिरावट में निवेशकों के 17 लाख करोड़ रुपये डूब गए।
निवेशकों के मन में उठा एक और बड़ा सवाल
आम निवेशकों को पहले तो इस गिरावट की असली वजह नहीं मालूम चल रही थी और जब मालूम चली तो उनके मन में एक और बड़ा सवाल खड़ा हो गया कि आखिर अमेरिकी शेयर बाजार, भारतीय शेयर बाजार को कैसे प्रभावित करते हैं या कैसे कंट्रोल करते हैं? यहां हम उन बड़े फैक्टर्स के बारे में जानेंगे, जिनकी वजह से अमेरिकी बाजार, भारतीय बाजार को प्रभावित करते हैं।
अमेरिकी मार्केट एक्सचेंज पर होती है पूरी दुनिया की नजरें
सबसे पहले आपको ये समझना चाहिए कि अमेरिकी बाजार सिर्फ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ही नहीं बल्कि दुनियाभर की अर्थव्यवस्था के लिए बैरोमीटर का काम करता है। अमेरिकी शेयर मार्केट एक्सचेंज- डॉव जोन्स, एसएंडपी 500, नैस्डैक और बॉन्ड यील्ड पर दुनियाभर के निवेशकों की पैनी नजर होती है। इन इंडिकेटर्स में होने वाले उतार-चढ़ाव पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण विकास को गति देने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली हैं, जिसमें भारत भी शामिल है।
काफी पुराना है भारतीय और अमेरिका बाजार का 'याराना'
ये सिर्फ आज या अभी हाल-फिलहाल की बात नहीं है। अमेरिकी और भारतीय शेयर बाजारों के बीच पुराने समय से काफी मजबूत तालमेल रहा है, जिसमें कोरेलेशन कोएफिशिएंट्स 0.6 से 0.7 के बीच था। हालांकि, बीते कुछ सालों में ये घटकर 0.4 से 0.5 के बीच पहुंच गया है।
ट्रेड पार्टनरशिप
वित्त वर्ष 2022-2023 में भारत के सबसे बड़े ट्रेड पार्टनर के रूप में, अमेरिका, भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है। अमेरिकी शेयर बाजार में होने वाली हलचल को भारत में आर्थिक रुझानों के पूर्वानुमान के रूप में देखा जाता है। उदाहरण के लिए, अगर अमेरिका में मंदी का डर है, तो भारतीय बाजार भी संभावित अस्थिरता के लिए तैयार रहते हैं।
अमेरिकी डॉलर
अगर अमेरिकी डॉलर मजबूत होता है तो ये एक महत्वपूर्ण ग्लोबल इकोनॉमिक इंडिकेटर है। ये सिर्फ एक करेंसी नहीं बल्कि अमेरिकन इकोनॉमी की हेल्थ की स्पष्ट तस्वीर है। यूएस डॉलर इंडेक्स की दशा और दिशा भारतीय करेंसी रुपये की स्थिति का एक प्रमुख निर्धारक है और इसका असर सिर्फ मल्टी नेशनल कंपनियों पर ही नहीं बल्कि पूरी इकोनॉमी पर बड़े पैमाने पर पड़ता है।
अर्थव्यवस्था का आकार
ग्लोबल फाइनेंशियल पोडियम पर अमेरिकी बाजार सबसे ऊपर हैं क्योंकि दुनिया की 10 सबसे बड़ी कंपनियों में से 9 कंपनियां अमेरिकी शेयर बाजार में ही लिस्ट हैं। लिहाजा, अमेरिकी शेयर बाजारों का आकार और दायरा भारत समेत पूरी दुनिया के बाजारों की दशा और दिशा तय करता है।
टैरिफ का प्रभाव
जब अमेरिका ट्रेड टैरिफ को बढ़ाने का फैसला करता है तो इससे अमेरिका में माल एक्सपोर्ट करने वाली भारतीय कंपनियों को बड़ा नुकसान हो सकता है। इसकी वजह से बिजनेस में होने वाले प्रॉफिट में बड़ी गिरावट आ सकती है। ऐसे में अमेरिका और भारत दोनों देशों में ही शेयर बाजार की वैल्यूएशन में गिरावट आ सकती है, क्योंकि इंवेस्टर ट्रेड और इनकम में होने वाली संभावित गिरावट पर रिएक्ट करते हैं।
अंत में ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि अमेरिकी शेयर बाजार पूरी दुनिया के बाजारों को प्रभावित करते हैं। लेकिन इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि देश की बेहतर अर्थव्यवस्था और प्रभावशाली भविष्य की बदौलत भारतीय शेयर बाजार अब अपने दम पर स्वतंत्र रूप से धीरे ही धीरे सही, लेकिन आगे बढ़ रहे हैं।