कच्चे तेल के 90 डॉलर पार होने का भारत के लिए क्या है मतलब, कितना किस पर होगा असर
तेल उत्पादक देशों के समूह वाला ओपेक+ ब्लॉक द्वारा उत्पादन में कटौती को तीन और महीनों के लिए बढ़ाए जाने के बाद, ब्रेंट क्रूड 5 सितंबर को 90 डॉलर प्रति बैरल से पार हो गया।
भारत जैसी अर्थव्यवस्था में कच्चे तेल (crude oil) की बड़ी भूमिका है। मौजूदा समय में तेल की कीमत (crude oil price) में हुई बढ़ोतरी से हालांकि मैक्रो फंडामेंटल्स के लिए बड़ा रिस्क नहीं है, लेकिन अगर कीमत लगातार बढ़ती जाती है तब इसका आर्थिक विकास (Indian economy) पर असर देखने को मिल सकता है। तेल उत्पादक देशों के समूह वाला ओपेक+ ब्लॉक द्वारा उत्पादन में कटौती को तीन और महीनों के लिए बढ़ाए जाने के बाद, ब्रेंट क्रूड 5 सितंबर को 90 डॉलर प्रति बैरल से पार हो गया। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, कीमत का यह लेवल नवंबर 2023 के बाद सबसे ज्यादा है, जो अभी भी इसी के आस-पास है।
भारत के लिए चुनौती इसलिए है, क्योंकि यह कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा खरीदार है। क्रूड का महंगा इम्पोर्ट चालू खाते के घाटे का भार और बढ़ा सकता है जीडीपी की रफ्तार को सुस्त कर सकता है। बावजूद, कुछ ऐसे फैक्टर्स भी हैं जो इकोनॉमी को सपोर्ट करते हैं।
चालू खाते का घाटा
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक,बैंक ऑफ बड़ौदा की अर्थशास्त्री दीपान्विता मजूमदार का कहना है कि चूंकि भारत अपनी कुल तेल जरूरत का 80% से ज्यादा इम्पोर्ट करता है, तो ऐसे में चालू खाते के घाटे और रुपये पर असर पड़ने की संभावना है. चालू वित्त वर्ष में जुलाई तक आवक तेल शिपमेंट 55 अरब डॉलर था।
मजूमदार ने कहा कि हमारा अनुमान है कि 80-85 डॉलर प्रति बैरल के आधार पर तेल आयात में 15 बिलियन डॉलर या सकल घरेलू उत्पाद का 0.4% की ग्रोथ होने की संभावना है।
विदेशी मुद्रा भंडार
आईडीएफसी बैंक की इंडिया इकोनॉमिस्ट गौरा सेन गुप्ता ने कहा कि आने वाले समय में विदेशी मुद्रा भंडार, डॉलर की ताकत बनी रहने की उम्मीद है। सेन गुप्ता ने कहा कि कच्चे तेल में उछाल से रुपये जैसी तेल इम्पोर्ट करने वाली मुद्राओं पर भी मूल्यह्रास का दबाव बढ़ेगा। ऐसे में बहुत कुछ आरबीआई के विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप पर निर्भर करता है जिसका मकसद दोनों पक्षों में अस्थिरता को कम करना है। दिसंबर तक डॉलर-रुपये की जोड़ी 82-84 के बीच सीमित रहने की उम्मीद है।
महंगाई
कच्चे तेल की कीमतों (crude oil price) में बढ़ोतरी से महंगाई के जोखिम की संभावना फिलहाल नहीं है। इसकी वजह है कि कच्चे तेल में अस्थिरता के बावजूद मई 2022 से घरेलू पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं हुई है। उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2024 में खुदरा महंगाई दर औसतन 5.8% रहेगी। माना जा रहा है कि घरेलू खुदरा पेट्रोल और डीजल की कीमतों में मार्च 2024 तक बड़ा बदलाव होने की उम्मीद नहीं है। सीपीआई बास्केट में पेट्रोल और संबंधित उत्पादों का भार 2.4% है। कच्चे तेल में 10% बढ़ोतरी का सीधा अर्थ खुदरा महंगाई में 15 बेसिस प्वॉइंट की बढ़ोतरी से है।
जानकारों का कहना है कि कच्चे तेल (crude oil) की ऊंची कीमतें इम्पोर्ट पर दबाव बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी ग्रोथ को धीमा कर देती हैं। तेल की कीमतों में लगभग 10 डॉलर प्रति बैरल की लगातार वृद्धि से जीडीपी की ग्रोथ रेट लगभग 20 आधार अंकों तक कम हो जाती है।