खाने के तेल हो सकते हैं महंगे, फरवरी में 9% घटा आयात
देश में खाने के तेल की जरूरत आयात से पूरी होती है, ऐसे में आयात घटने की वजह से खाने के तेल की कीमतों में बढ़ोतरी की आशंका हो गई है
नई दिल्ली। देश के किसानों को उनके पैदा किए तिलहन का अच्छा भाव दिलाने के लिए सरकार की तरफ से पिछले कुछ दिनों से जो कदम उठाए गए हैं उनका असर दिखने लगा है। देश में तेल औ तिलहन उद्योग के संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (SEA) की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक फरवरी के दौरान देश में वनस्पति तेल आयात में 9 प्रतिशत की गिरावट आई है।
फरवरी में ऐसा रहा आयात
आंकड़ों के मुताबिक बीते फरवरी के दौरान देश में कुल 11.57 लाख टन वनस्पति तेल का आयात हुआ है जबकि पिछल साल फरवरी के दौरान 12.70 लाख टन तेल इंपोर्ट हुआ था। इस साल फरवरी से पहले जनवरी में भी 12.91 लाख टन वनस्पति तेल का आयात दर्ज किया गया था।
जरूरत का 65 प्रतिशत तेल आयात करना पड़ता है
देश में खपत होने वाले कुल वनस्पति तेल का 60-65 प्रतिशत हिस्सा आयात करना पड़ता है, ऐसे में आयात घटने से देश में खाने के तेल की कीमतें बढ़ने की आशंका भी बढ़ गई है। हालांकि सरकार का मकसद अभी किसानों को उनकी फसल का अच्छा भाव दिलाना है और इसी के लिए सरकार आयात शुल्क में बढ़ोतरी के कदम उठा रही है।
आयात शुल्क बढ़ने से महंगा हो सकता है खाने का तेल
नवंबर में सभी वनस्पति तेलों पर आयात शुल्क में जोरदार बढ़ोतरी की गई थी और इस बढ़ोतरी से लगभग 4 महीने बाद सरकार ने फिर से पाम ऑयल पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है। आयात शुल्क के अलावा वनस्पति तेल आयात शुल्क पर 10 प्रतिशत अतीरिक्त सामाजिक कल्याण सेस भी चुकाना पड़ता है। सामाजिक कल्याण सेस को मिलाकर क्रूड पाम ऑयल पर कुल आयात शुल्क अब बढ़कर 48.4 प्रतिशत और रिफाइंड पाम ऑयल पर बढ़कर 59.4 प्रतिशत हो गया है। ज्यादा आयात शुल्क की वजह से अब उपभोक्ताओं को भी खाने के तेल के लिए ज्यादा कीमत चुकाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।