नई दिल्ली। तिलहन किसानों को उनकी फसल का जायज भाव दिलाने के लिए केंद्र सरकार ने वनस्पति तेलों के आयात पर जो लगाम लगाई है उसका असर दिखने लगा है, जून के दौरान देश में खाद्य तेल आयात 25 महीने के निचले स्तर पर दर्ज किया गया है। तेल-तिलहन उद्योग के संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टक्स एसोसिएशन (SEA) की तरफ से जारी किए गए आंकड़ो से यह जानकारी निकलकर आई है।
25 महीने के निचले स्तर पर आयात
SEA की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक जून के दौरान देश में कुल 10.04 लाख टन खाद्य तेल का आयात हुआ है जो मई 2016 के बाद सबसे कम मासिक आयात है और जून 2017 में हुए आयात के मुकाबले 22 प्रतिशत कम है।
पाम ऑयल आयात 52 महीने के निचले स्तर पर
खाद्य तेल आयात में आई गिरावट के पीछे बड़ी वजह पाम ऑयल के आयात में आई गिरावट है, जून के दौरान देश में कुल 4.87 लाख टन पाम ऑयल का आयात हुआ है जो फरवरी 2014 के बाद सबसे कम मासिक आयात है और जून 2017 में हुए आयात के मुकाबले 41 प्रतिशत कम है। पिछले साल जून में 8.20 लाख टन पाम ऑयल का आयात हुआ है।
पाम ऑयल के बजाय अब अन्य तेलों का ज्यादा आयात
देश में खाने के तेल के लिए अब पाम ऑयल पर निर्भरता कम हो रही है जबकि अन्य वनस्पति तेलों पर निर्भरता बढ़ने लगी है। पिछले साल तक देश में आयात होने वाले कुल वनस्पति तेल में 60-65 प्रतिशत तक पाम ऑयल होता था और बाकी सॉफ्ट ऑयल (सोयाबीन, सरसों, सूरजमुखी का तेल) लेकिन इस साल जून के दौरान देश में जितना वनस्पति तेल आयात हुआ है उसमें 48 प्रतिशत पाम ऑयल है और बाकी 52 प्रतिशत सॉफ्ट ऑयल।
आयात शुल्क बढ़ने का असर
नवंबर में सभी वनस्पति तेलों पर आयात शुल्क में जोरदार बढ़ोतरी की गई थी और इस बढ़ोतरी से लगभग 4 महीने बाद सरकार ने फिर से पाम ऑयल पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है। आयात शुल्क के अलावा वनस्पति तेल आयात शुल्क पर 10 प्रतिशत अतीरिक्त सामाजिक कल्याण सेस भी चुकाना पड़ता है। सामाजिक कल्याण सेस को मिलाकर क्रूड पाम ऑयल पर कुल आयात शुल्क अब बढ़कर 48.4 प्रतिशत और रिफाइंड पाम ऑयल पर बढ़कर 59.4 प्रतिशत हो गया है। ज्यादा आयात शुल्क की वजह से अब उपभोक्ताओं को भी खाने के तेल के लिए ज्यादा कीमत चुकाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।
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