RBI ने अचानक ब्याज दरों में बढ़ोतरी का फैसला बहुत सारे लोगों को चौंका गया। अब इसकी वजह सामने आ गई है। दरअसल, महंगाई को काबू में लाने के लिए पेट्रोल और डीजल के उत्पाद शुल्क में कटौती जैसे आपूर्ति पक्ष के उपायों पर सरकार को सहमत नहीं कर पाने के कारण संभवत: भारतीय रिजर्व बैंक ने अचानक नीतिगत दर में बढ़ोतरी का फैसला किया। केंद्रीय बैंक से जुड़े सूत्रों ने गुरुवार को यह जानकारी दी। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 22 मार्च से 16 दिनों के भीतर रिकॉर्ड 10 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई, जिसने पहले ही बढ़ी हुई महंगाई को और बढ़ा दिया।
महंगाई बेकाबू होने से रोकने के लिए उठाया कदम
आरबीआई को दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ मुद्रास्फीति चार प्रतिशत पर रखने का लक्ष्य दिया गया है। उसने महंगाई को पूरी तरह बेकाबू होने से रोकने के लिए रेपो दर में 0. 40 प्रतिशत की वृद्धि की। एक सूत्र ने कहा, ‘‘आपको इस उपाय पर गौर करना चाहिए, क्योंकि यह काम तब और कठिन हो जाता है, जब आरबीआई अकेला खड़ा होता है। आरबीआई ने ईंधन पर उत्पाद शुल्क में कटौती जैसे उपायों के लिए सरकार से आग्रह किया, जिसका सीधा असर मुद्रास्फीति पर पड़ता। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। सूत्र ने कहा कि केंद्रीय बैंक ने राज्य सरकारों से भी शुल्क में कटौती के लिए कहा, लेकिन यहां भी सफलता नहीं मिली। उसने आगे कहा कि ऐसे में आरबीआई ने कहा ‘बस, बहुत हो गया’ और अब जबकि कार्रवाई करने का वक्त आ गया है, तो वह मुद्रास्फीति के खिलाफ अपनी लड़ाई अकेले लड़ेगा।
ब्याज दर में छोटी-छोटी बढ़ोतरी की तैयारी
रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भले ही नीतिगत ब्याज दर में अचानक वृद्धि कर दी है लेकिन वह एक सहज मौद्रिक नीतिगत कदम के पक्ष में है और दर में छोटी-छोटी बढ़ोतरी करना चाहता है। सूत्र ने आरबीआई के बड़े बदलावों के बजाय छोटे-छोटे कदमों के पक्ष में बताते हुए कहा, सोच एक सहज नीतिगत प्रतिक्रिया की है, न कि बड़े स्तर पर कदम उठाए जाएं। सूत्र ने कहा कि मार्च में महंगाई दर का सात फीसदी रहना रिजर्व बैंक के अनुमानों से अधिक रहा और यह सिलसिला अप्रैल में भी बने रहने की आशंका थी। कोविड महामारी के दो साल में आरबीआई ने मुद्रास्फीति के बजाय वृद्धि को अपने केंद्र में रखा था लेकिन अब उसकी प्राथमिकता बदल गई है।
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