भारत से मल्टीनेशनल कंपनियां क्यों बंद कर रही हैं अपना कारोबार? क्या है इसके मायने? यहां जानिए सबकुछ
पिछले कुछ सालों में भारत से कई मल्टीनेशनल कंपनियों ने अपना कारोबार बंद कर दिया है। इसके पीछे सरकार की ये दो योजनाएं हैं। दोनों का भारतीय बाजार पर क्या असर पड़ा है, आइए जानते हैं।
पिछले कुछ सालों में भारत से कई मल्टीनेशनल कंपनियों ने अपना कारोबार समेट लिया है। भारत सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 से 2021 के बीच 2,783 विदेशी और उनकी सहायक कंपनियों ने भारत में परिचालन बंद कर दिया है। क्या ये चिंता का विषय है? इससे भारतीय इकोनॉमी पर क्या असर पड़ रहा है? और सरकार का इसपर क्या कहती है? आज की इस स्टोरी में इन सभी विषयों पर बात करेंगे।
घरेलू कंपनियों की बढ़ती हिस्सेदारी
भारत में दिन-प्रतिदिन घरेलू कंपनियों की मार्केट हिस्सेदारी बढ़ती जा रही है। FMCG से लेकर मेडिसिन और ऑटो सेक्टर में भारतीय कंपनियों ने अपना दबदबा कायम किया हुआ है। हाल ही में भारत की सबसे बड़ी कंपनी में से एक रिलायंस इंडस्ट्री ने रिटेल बिजनेस में अपना कारोबार शुरू किया है। इंडिपेंडेंस नाम से पेश किए गए इस ब्रांड को आने वाले समय में FMCG सेक्टर की प्रतिद्वंदी कंपनी से कड़ी टक्कर मिलेगी और एक्सपर्ट का कहना है कि इसका मुकाबला करना उनके लिए ये एक बड़ी चुनौती हो सकती है।
सरकार का मेड इन इंडिया पर फोकस
भारत में जब से मोदी सरकार आई है, उसका मुख्य फोकस मेड इन इंडिया प्रोडक्ट को बढ़ावा देना रह गया है। सरकार का कहना है कि मेड इन इंडिया प्रोडक्ट से देश में रोजगार के संभावनाएं बढ़ेंगे। कंपनियों को भारत में अपने प्लांट बनाने पड़ेंगे। इसे भारत एक प्रोडक्शन हब के रुप में आने वाले समय में विकसित हो सकेगा, जो उपाधि इस समय चीन के पास है। इसका एक सबसे बड़ा उदाहरण ये है कि दुनिया की सबसे बड़ी इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी टेस्ला ने भारत में अपनी कार को बेचने के लिए सरकार से अनुमति मांगी थी तब भारत के सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि पहले वह अपनी कार का प्रोडक्शन भारत में शुरू कर फिर उसे बेचने की अनुमति दी जाएगी।
आत्मनिर्भर भारत अभियान का बढ़ता असर
12 मई 2020 को केंद्र सरकार के तरफ से शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य भारत को आत्मनिर्भर बनाना है। इस योजना के तहत सरकार अधिक से अधिक लोगों को रोजगार देने और छोटे व्यापारियों को बढ़ावा देने पर काम कर रही है। इसका असर भी मार्केट में देखने को मिल रहा है। लोग भारतीय प्रोडक्ट को प्रीफर करना पसंद कर रहे हैं। आस-पास के छोटे दुकानों से समाना खरीदना शुरु कर दिए हैं। इसने भारत के एक बड़े मार्केट को धीरे-धीरे अपनें कवर में लेना शुरू कर दिया है। इस योजना के तहत भारत सरकार बड़े लेवल पर स्वदेशी कंपनियों से प्रोडक्शन बढ़ाने को बोल रही है, जिसका असर रक्षा क्षेत्र से लेकर खाद्य और दवा क्षेत्र के निर्यात में आई रिकॉर्ड वृद्धि को देखकर लगाया जा सकता है। केंद्र सरकार ने 2021-22 में 14,000 करोड़ रुपये का रक्षा निर्यात किया है तो वहीं फार्मा सेक्टर में ये आंकड़ा 1.83 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया है। खाद्य क्षेत्र की बात करें तो वहां भी रिकॉर्ड काम हुआ है। सिर्फ 2021-22 में 50 अरब डॉलर का आंकड़ा पार हो गया है।
इन कंपनियों ने तोड़ा भारत से रिश्ता
अतीत में भारत छोड़ने वाली कंपनियों की लंबी सूची में केयर्न एनर्जी, हचिसन टेलीकॉम इंटरनेशनल, डोकोमो, लाफार्ज, कैरेफोर, दाइची सैंक्यो और हेंकेल शामिल हैं, जबकि सिटी, रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड और बार्कलेज जैसे विदेशी बैंक पूरी तरह से थोक बैंकिंग पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। पिछले पांच वर्षों के दौरान कम से कम पांच ऑटोमोबाइल एमएनसी- फोर्ड इंडिया, हार्ले डेविडसन, यूएम एंड लोहिया, मैन ट्रक्स और जनरल मोटर्स ने भारत से अपना कोरबार बंद करने का फैसला लिया है, जिसके कारण 2,485 करोड़ रुपये के डीलर निवेश में कमी आई है, जिसके चलते लगभग 64,000 नौकरियों का नुकसान हुआ है।
आईटी सेक्टर में भारतीय कंपनियों ने पहले से बना रखा है दबदबा
दुनिया भर की टॉप आईटी कंपनियों में भारत की इंफोसिस, एचसीएल और टीसीएस जैसी कंपनियां आती हैं। इन कंपनियों ने किसी दूसरी विदेशी कंपनियों के तुलना में भारत में अधिक पकड़ बना रखी है। भारत सरकार के स्टार्टअप्स इंडिया अभियान का असर आईटी फील्ड में सबसे अधिक देखने को मिल रहा है। इसके चलते कई नए स्टार्टअप्स मार्केट में लॉन्च हो रहे हैं और MNCs को कड़े टक्कर दे रहे हैं। उबर को भारतीय कंपनी ओला चैलेंज कर रही है। फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को शेयरचैट और ट्विटर जैसे माइक्रोब्लॉगिंग साइट को भारतीय ऐप कू ने पछाड़ने की कोशिश शुरू कर दी है। इसका असर इन कंपनियों के यूजरबेस पर पड़ रहा है। हालांकि ये कंपनियां भारत में बंद होने नहीं जा रही है।