दुनिया के इतने ताकतवर Bank क्यों डूब गए? सरकारें क्या कर रहीं? इससे India पर कितना असर पड़ेगा? यहां समझिए पूरी गणित
Bank Cirses: पिछले कुछ दिनों में एक के बाद एक दुनिया के कई बड़े बैंक डूब गए। सरकारें तमाशा देखती रहीं। अब दूसरे प्राइवेट बैंक आगे आकर उसे खरीद रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा है और इससे किसे फायदा होगा? भारत पर इसका क्या असर पड़ रहा है? पूरी गणित समझने के लिए यह रिपोर्ट पढ़ें।
Bank Crises: पिछले तीन साल से दुनिया कोरोना की चपेट में है। लोग अभी भी इससे पूरी तरह से उबर नहीं पाए हैं। इस साल यानी 2023 में ये उम्मीद की जा रही थी कि दुनिया इस महामारी से बाहर निकल जाएगी और विश्व की इकोनॉमी वापस से पटरी पर दौड़ने लगेगी। अनुमान लगाया जा रहा था कि लोगों को नौकरियां मिलेंगी, लेकिन तभी मंदी ने विश्व को अपने चपेट में ले लिया। कुछ देशों में इसका प्रभाव देखा जाने लगा है। आगे के हालात कैसे होंगे? ये समय तय करेगा, लेकिन आज के दौर में दुनिया भर के बाजार और बैंकिंग सेक्टर पर मंदी की जो मार पड़ी है, उससे हुए नुकसान की भरपाई करने में कई साल लग जाएंगे। अमेरिका के सिलिकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक के डूबने के बाद क्रेडिट सुईस के भी दिवालिया होने की खबर आ चुकी है। अब इन बैंकों को बचाने के लिए दूसरे प्राइवेट बैंक इसे खरीद रहे हैं या खरीदने की तैयारी में है। इसका इकोनॉमी पर क्या असर पड़ेगा? इन मामलों में सरकारें खुलकर क्यों नहीं सामने आ रही हैं? और अब तक किन बैंकों का सौदा दूसरे प्राइवेट बैंक कर चुके हैं? इन सबमें भी सबसे जरूरी बात कि ये बैंक डूबने के कगार पर कैसे पहुंच गए? इन सभी सवालों का जवाब आज की इस स्टोरी में जानने की कोशिश करेंगे।
क्यों आई ऐसी नौबत?
अमेरिका के बैंकों में वहां के स्टार्टअप ने पैसा जमा किया हुआ था। आर्थिक अस्थिरता के बीच स्टार्टअप्स ने पैसा निकालना शुरू कर दिया। बैंक के पास पैसे नहीं थे। इसके लिए उन बैंकों को अपने खरीदे हुए बॉन्ड्स बेचने पड़े। बॉन्ड को बेचने में करीब 15000 करोड़ रुपए का नुकसान हो गया। दरअसल, बैंक जमा किए गए पैसों से सरकार द्वारा जारी किए गए बॉन्ड खरीदते हैं। ताकि समय के साथ उन्हें उन पैसे से कमाई हो सके। अमेरिका की सरकार ने बॉन्ड पर दिए जाने वाले ब्याज दर में महंगाई और मंदी के चलते ब्याज दर कम कर दिया था, जिसके चलते बैंकों को बॉन्ड बेचने पर घाटा उठाना पड़ा। इसके बाद बैंकों ने 20,000 करोड़ का कैश इश्यू जारी किया। इससे बाजार में ये खबर फैल गई कि बैंकों के पास पैसे नहीं हैं और उसका असर उन बैंकों के शेयर पर पड़ा। देखते ही देखते ये बैंक दिवालिया घोषित हो गए। दिवालिया हुए बैंकों की लिस्ट में सिर्फ एक बैंक नहीं, बल्कि अब तक अमेरिका के दो और यूरोप के सबसे बड़े बैंक क्रेडिट सुईस भी शामिल हो चुका है।
डूबे हुए बैंकों को क्यों खरीद रहे बड़े प्राइवेट बैंक?
क्रेडिट सुइस को संकट से उबारने के लिए स्विट्जरलैंड के सबसे बड़े बैंक यूनियन बैंक ऑफ स्विट्जरलैंड (Union Bank of Switzerland) ने इसका अधिग्रहण करने की घोषणा की है। UBS ने क्रेडिट सुईस को 3.24 अरब डॉलर में खरीदने की घोषणा की है। अमेरिका में दिवालिया हो चुके सिग्नेचर बैंक को न्यूयॉर्क कम्युनिटी बैंक ने 2.7 अरब डॉलर में एक बड़ी हिस्सेदारी खरीदने का फैसला लिया है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सिलिकॉन वैली बैंक को भी एक दूसरे प्राइवेट बैंक फर्स्ट सिटीजन बैंक द्वारा खरीदने की प्लानिंग चल रही है। यह इसलिए हो रहा है ताकि उन्हें बचाया जा सके। इन बैंकों को बचाने के पीछे का मुख्य उद्देश्य बैंकिंग सेक्टर पर ग्राहकों का भरोसा कायम रखना है, ताकि वह अपना पैसा किसी दूसरे बैंक से ना निकालें। माना जाता है कि ग्राहकों को जब तक बैंक पर भरोसा होता है तभी तक वह उस बैंक में अपना पैसा जमा रखते हैं। अगर एक साथ सभी ग्राहक अपना पैसा निकालने लगेंगे तो बैंकिंग सिस्टम के साथ देश की इकोनॉमी बैठ जाएगी। हालांकि अमेरिकी सरकार ये आश्वासन दे चुकी है कि बैंक में जमा करने वाले डिपॉजिटर्स को पूरे पैसे मिलेंगे।
भारत में भी हो चुका है ऐसा
जब 2020 में भारत के तत्कालिन सबसे बड़े प्राइवेट बैंक में से एक यस बैंक के दिवालिया होने की खबर आई थी तब उसमें एसबीआई ने निवेश किया था। उस साल एसबीआई द्वारा यस बैंक के 49 फीसदी शेयर खरीदे गए थे। तब सरकार को सामने आकर यस बैंक में जमा पैसे की सुरक्षा की गारंटी देनी पड़ी थी। हालांकि अब यस बैंक में SBI का मात्र 26.14 फीसदी शेयर है। बता दें, उस समय यस बैंक को बचाने के लिए भारत के दूसरे प्राइवेट बैंक भी आगे आए थे, जिसमें एक्सिस बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, HDFC बैंक और IDFC बैंक शामिल थे।
इसका इकोनॉमी पर क्या असर पड़ेगा?
अमेरिका की इकोनॉमी दुनिया भर के किसी भी देश की तुलना में सबसे अधिक मजबूत है। दुनिया के कई सारे देश अमेरिकी डॉलर में कारोबार करते हैं। जब अमेरिकी स्टॉक मार्केट में कोई बड़ा फेरबदल होता है तो उसका असर विश्व के कई देशों पर पड़ता है। उसमें भारत भी शामिल है। अमेरिका समेत यूरोप के बैंकिंग सिस्टम फेल होने के चलते दुनिया भर के शेयर बाजार नुकसान में चल रहे हैं। अगर हम United States Stock Market Index के पिछले एक महीने का रिपोर्ट देखें तो पता चलता है कि बाजार 475 अंकों की गिरावट के साथ 32181.77 पर कारोबार कर रहा है। इसका असर भारतीय बाजार पर बड़े स्तर पर पड़ रहा है। पिछले एक महीने में भारतीय बाजार 3,043.77 अंकों की गिरावट के साथ 57,628.95 पर चला गया। जब शेयर बाजार में लगातार घाटा होने लगता है तो कंपनियां अपने घाटे को मैनेज करने के लिए अपने उत्पादों की कीमतों में बदलाव करती हैं, जिसका सीधा असर आम जनता की जेब पर पड़ता है। धीरे-धीरे यह इकोनॉमी को कमजोर करता जाता है और महंगाई बढ़ने लगती है, जिससे आम आदमी त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगता है।