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Hindi News पैसा बिज़नेस भारत में कब से चलेगी हाई-स्पीड ‘हाइपरलूप’ ट्रेन? नीति आयोग ने साझा की यह अहम जानकारी

भारत में कब से चलेगी हाई-स्पीड ‘हाइपरलूप’ ट्रेन? नीति आयोग ने साझा की यह अहम जानकारी

हाइपरलूप एक हाई-स्पीड ट्रेन है, जो एक ट्यूब में चलती है। ‘हाइपरलूप’ ट्रेन चुंबकीय तकनीक से लैस पॉड (ट्रैक) पर चलती है। हाईपरलूप तकनीक में खंभों के ऊपर (एलीवेटेड) ट्रांसपेरेंट ट्यूब बिछाई जाती है। इसी के चलते इसकी स्पीड 1000 से 1300 किमी प्रति घंटे तक होती है।

‘हाइपरलूप’ ट्रेन- India TV Paisa Image Source : FILE ‘हाइपरलूप’ ट्रेन

भारत के लोगों के लिए बुलेट ट्रेन का सपना जल्द पूरा होने वाला है। इसके बाद ‘हाइपरलूप’ ट्रेन की उम्मीद की जा रही है। आपको बता दें कि बुलेट ट्रेन के मुकाबले ‘हाइपरलूप’ ट्रेन की स्पीड दोगुनी से भी अधिक होती है। आमतौर पर हाइपरलूप ट्रेन की रफ्तार 1,000-1,300 किलोमीटर प्रति घंटा मानी जाती है। अगर यह ट्रेन भारत में चलना शुरू हो तो आप कश्मीर से कन्याकुमारी तक का सफर सिर्फ दो घंटे में पूरा कर लेंगे। यानी हवाई जहाज की जरूरत ही नहीं होगी। आसान शब्दों में कहें तो हाइपरलूप एक हाई-स्पीड ट्रेन है, जो एक ट्यूब में चलती है। ऐसे में क्या आने वाले दिनों में हम सभी को ‘हाइपरलूप’ ट्रेन का सफर करने का मौका मिल सकता है। इस पर नीति आयोग के सदस्य वी के सारस्वत ने जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि भारत द्वारा निकट भविष्य में अत्यधिक द्रुत गति की ट्रेन के लिए हाइपरलूप प्रौद्योगिकी को अपनाने की संभावना नहीं है। यानी ‘हाइपरलूप’ ट्रेन का सपना जल्द पूरा होने की उम्मीद बिल्कुल नहीं है। 

टेक्नोलॉजी में बहुत ​कुछ किया जाना 

नीति आयोग के सदस्य वी के सारस्वत ने रविवार को कहा कि अभी ‘हाइपरलूप’ ट्रेन टेक्नोलॉजी परिपक्वता से काफी दूर है। फिलहाल यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य भी नहीं है। सारस्वत वर्जिन हाइपरलूप प्रौद्योगिकी की तकनीकी और व्यावसायिक व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए गठित एक समिति की अगुवाई कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ विदेशी कंपनियों ने भारत में यह प्रौद्योगिकी लाने में रुचि दिखाई है। सारस्वत ने कहा, जहां तक ​​हमारा सवाल है, हाइपरलूप प्रौद्योगिकी के बारे में हमने पाया कि विदेशों से जो प्रस्ताव आए थे, वे बहुत व्यवहार्य विकल्प नहीं हैं। वे प्रौद्योगिकी की परिपक्वता के बहुत निचले स्तर पर हैं।

आम ट्रेन से ‘हाइपरलूप’ ट्रेन कैसे अलग 

हाइपरलूप एक ‘हाई-स्पीड’ ट्रेन है, जो ट्यूब में वैक्यूम में चलती है। यह तकनीक इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला और अंतरिक्ष परिवहन कंपनी स्पेसएक्स का स्वामित्व रखने वाले एलन मस्क द्वारा प्रस्तावित है। सारस्वत ने कहा कि इसलिए हमने आज की तारीख तक इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया है। यह सिर्फ एक अध्ययन कार्यक्रम है। मुझे नहीं लगता कि निकट भविष्य में हाइपरलूप प्रौद्योगिकी हमारे परिवहन ढांचे में शामिल होगी। वर्जिन हाइपरलूप का परीक्षण नौ नवंबर, 2020 को अमेरिका के लास वेगास में 500 मीटर के ट्रैक पर एक पॉड के साथ आयोजित किया गया था। इसमें एक भारतीय और अन्य यात्री सवार थे। इसकी रफ्तार 161 किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक थी। सारस्वत के मुताबिक, अभी तक जो पेशकश आई हैं, उनमें प्रौद्योगिकी की परिपक्वता का स्तर काफी कम है। हम इस तरह की प्रौद्योगिकी में निवेश नहीं कर सकते। वर्जिन हाइपरलूप उन मुट्ठी भर कंपनियों में से है जो यात्री परिवहन के लिए ऐसी प्रणाली बनाने की कोशिश कर रही हैं। 

लिथियम के लिए चीन पर निर्भरता कम होगी 

चीन से लिथियम आयात पर भारत की निर्भरता संबंधी सवाल पर सारस्वत ने कहा कि आज की तारीख में भारत में लिथियम आयन बैटरी का उत्पादन बहुत कम है, इसलिए हम इसके लिए चीन और अन्य स्रोतों पर निर्भर हैं। उन्होंने कहा कि हमारी ज्यादा निर्भरता चीन पर है, क्योंकि चीन की बैटरियां सस्ती हैं। उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि भारत ने देश में बैटरी विनिर्माण सुविधाएं स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन दिया है। सारस्वत ने कहा कि उम्मीद है कि अगले साल आपके पास कुछ कारोबारी घराने होंगे जो देश में बड़े पैमान पर लिथियम-आयन बैटरी का निर्माण करने के लिए आगे आएंगे।

75 प्रतिशत आयात चीन से अभी 

लिथियम-आयन का लगभग 75 प्रतिशत आयात चीन से होता है। लिथियम खनन के लिए भारत द्वारा चिली और बोलिविया से बात करने की खबरों पर सारस्वत ने कहा कि एक सुझाव था कि भारत को चिली, अर्जेंटीना और अन्य स्थानों में कुछ खनन सुविधाओं के अधिग्रहण के लिए जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हुआ यह है कि सरकार इन देशों में खानों के अधिग्रहण के लिए जाती, उससे पहले ही हमारे निजी क्षेत्र ने इन देशों की कंपनियों से करार कर लिया। उन्होंने इन देशों से लिथियम के लिए के लिए आपूर्ति श्रृंखला का करार पहले ही कर लिया है।

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