UPI payment system: अगर आप एक स्मार्टफोन यूजर हैं और UPI Payment करना प्रीफर करते हैं। एक दिन जब अचानक से आपको फोन खो जाता है तो आप ऐसी स्थिति में अपने यूपीआई पेमेंट सिस्टम (UPI payment system) को कैसे डी- एक्टिवेट कर सकते हैं? आज की खबर हमें हम स्टेप बाय स्टेप जानने की कोशिश करेंगे।
सबसे पहले सिम को कराएं बंद
फोन चोरी होने की स्थिति में आप सबसे पहला काम यह करें कि अपने संबंधित सिम के कस्टमर एग्जीक्यूटिव को कॉल करें और उन्हें मोबाइल खो जाने की सूचना देते हुए सिम को ब्लॉक करने को कहें। दरअसल, जब आपके अकाउंट से कोई ट्रांजैक्शन करता है तो आपके फोन नंबर पर एक ओटीपी आता है। जब तक वह ओटीपी नहीं सबमिट करता है, पेमेंट सफल नहीं हो पाता है। जब सिम ब्लॉक हो जाएगा तो ओटीपी ही नहीं आएगा।
बैंक में कॉल कर यूपीआई सर्विस को बंद करने को बोलें
दूसरे स्टेप में आपको अपने संबंधित बैंक के कस्टमर एग्जीक्यूटिव को कॉल करना होगा, जहां आप उन्हें अकाउंट के यूपीआई सर्विस को बंद करने को बोलेंगे। साथ ही आप अपने अकाउंट से ट्रांजैक्शन की सेवाओं को भी बंद करने को बोल सकते हैं। इससे आपके खाते से कोई भी पैसा नहीं निकाल पाएगा।
आखिरी में दर्ज कराएं FIR
जब आप एक बार अपना सिम और यूपीआई ट्रांजैक्शन बंद करा लें। फिर नजदीकी थाने में जाकर FIR दर्ज कराएं कि आपका फोन चोरी हो गया है। उसके बाद पुलिस फोन ढूंढने में मदद करेगी।
क्या है यूपीआई पेमेंट सिस्टम
यूपीआई यानी यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस नेशनल पेमेंट ऑफ इंडिया (NPCI) ने विकसित किया है। इससे आप मोबाइल वॉलेट के जरिए किसी और के बैंक खाते में पैसे भेज सकते हैं। इस तकनीक से आप कहीं से भी किसी भी समय फाइनेंशियल ट्रांजैक्शन कर सकते हैं।
Positive Payment System को भी NPCI ने किया है विकसित?
इसकी शुरुआत 2020 में की गई थी। आरबीआई की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, Positive Payment System का इस्तेमाल तभी किया जा सकता है जब आपका अमाउंट 50 हजार से ज्यादा हो। लेकिन बैंको के पास ये सुविधा होती है कि अगर वो चाहे तो 5 लाख तक की राशि पर इस सिस्टम का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। लेकिन पांच लाख से अधिक रुपये होने पर इस सिस्टम को अनिवार्य रूप से लागू करना होता है। चेक जारी करने वाले व्यक्ति अगर मोबाइल ऐप, इंटरनेट बैंकिंग, SMS और ATM के माध्यम से बेसिक जानकारी दी जाती है, ताकि ये वेरिफाई किया जा सके कि दी गई जानकारी सही है। उसके बाद उसे Cheque Truncation System यानि CTS के द्वारा क्रॉसचेक किया जाता है। जानकारी वेरिफाई होने के बाद ही चेक की राशि का भुगतान होता है। इसे National Payments Corporation of India यानि NPCI ने विकसित किया है। उसी के देखरेख में ये काम भी करता है। देश के अधिकतर बैंक इस सिस्टम को लागू कर चुके हैं।
Latest Business News