नई दिल्ली। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए पांच में से चार विधानसभा चुनावों में जोरदार जीत से नरेंद्र मोदी सरकार को बड़े सुधारों के लिए एक बार फिर माकूल जमीन मिल गई है। 4 नए श्रम कानून हों या फिर दो बड़े सरकारी बैंकों का निजीकरण हो। अब इन सुधारों को जल्द ही रफ्तार मिल सकती है।
जानकारों के मुताबिक भाजपा को कोरोना काल में पेश की गई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत मुफ्त खाद्यान्न देने और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) योजना के माध्यम से गरीबों को नकद हस्तांतरण जैसी कई कल्याणकारी योजनाओं का काफी लाभ मिला। लेकिन चुनावी हवा को भांपते हुए सरकार ने करीब 6 महीनों से नए सुधारों पर विराम लगा दिया था। अब लग रहा है कि कोविड महामारी और फिर विधानसभा चुनावों में प्रचंड जीत के बाद सरकार को लंबित सुधारों को आगे बढ़ाने पर गौर कर सकती है। हालांकि साल के अंत में गुजरात और हिमाचल के चुनाव भी हैं। ऐसे में देखता है कि सुधारों की गाड़ी कितनी रफ्तार पकड़ती है।
अटके आर्थिक सुधार सरकार के कुछ लंबित फैसलों की बात करें तो बीते वित्त वर्ष में वित्त मंत्री ने दो सरकारी बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी। इसके साथ ही केंद्रीय बजट 2021-22 में सामान्य बीमा कंपनी के निजीकरण की भी बात हुई थी। इसके अलावा चार श्रम संहिताओं का कार्यान्वयन 2019 से ही अटका पड़ा है। साथ ही माल और सेवा कर (जीएसटी) स्लैब का युक्तिकरण, और जीएसटी के तहत रिवर्स फीस ढांचे को ठीक करना भी सरकार प्राथमिकता सूची में होना चाहिए।
मुश्किल है राह
केंद्र की मोदी सरकार के आगे सुधारों की लंबी फेहरिस्त है। लेकि अपनी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए भाजपा सरकार का रिस्पॉन्स चुनाव भविष्य में होने वाले राज्यों के चुनाव पर भी निर्भर करेगी। उदाहरण के लिए, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्य बहुत सुधार समर्थक हैं। वे ऐसे राज्य हैं जिन्होंने श्रम सुधारों को आगे बढ़ाया है। इसलिए इस साल के अंत में गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव और राजस्थान, मध्य प्रदेश सहित नौ राज्य पार्टी को अपनी सुधार पहलों को आगे बढ़ाने से रोकेंगे।
सरकार के अब तक के सुधार
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मोदी सरकार ने अपने सात वर्षों में कुछ बड़े सुधार के उपाय शुरू किए हैं, चाहे वह जीएसटी हो, दिवाला और दिवालियापन संहिता, श्रम संहिता आदि। वित्तीय बाजार सुधारों के संबंध में केंद्र द्वारा कुछ अच्छे प्रयास किए गए हैं ताकि एफडीआई सीमा की सीमा बढ़ाकर निवेश के प्रवाह को सक्षम बनाया जा सके। लेकिन परिणाम पर्याप्त नहीं हैं। सरकार की एक प्रमुख आलोचना यह रही है कि सुधारों को शुरू करने के बावजूद, यह उनमें से कई को उनके तार्किक निष्कर्ष तक नहीं ले गई।
श्रम कानून का फंसा पेंच
सरकार श्रम कानून में चार बदलाव करना चाहती है। सितंबर 2020 में संसद द्वारा वेज कोड 2019 और तीन अन्य (औद्योगिक संबंध कोड, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति कोड और सामाजिक सुरक्षा कोड) पारित करने के बावजूद, केंद्र ने अभी तक नियमों को इस आधार पर अधिसूचित नहीं किया है।
कृषि कानून ने दिया बुरा सबक
सरकार के सुधारों के पटरी से उतरने का एक और उदाहरण तीन कृषि कानून हैं जिन्हें मोदी सरकार ने 2020 में लागू किया था। पांच राज्यों के चुनावों से पहले "किसान विरोधी" के रूप में देखे जाने से सावधान, केंद्र ने दिसंबर 2021 में अपने रुख पर दृढ़ रहने के बावजूद उन्हें निरस्त कर दिया।
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