नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने विमानन कंपनी स्पाइसजेट को स्विट्जरलैंड की कंपनी 'क्रेडिट सुइस एजी' के साथ जारी वित्तीय विवाद के समाधान के लिए शुक्रवार को तीन सप्ताह का समय देने के साथ ही मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के क्रियान्वयन पर भी तीन सप्ताह के लिए रोक लगा दी।
उच्चतम न्यायालय ने इसे एक गंभीर मामला बताते हुए कहा कि एयरलाइन यह नहीं कह सकती कि वह एक व्यस्त संगठन है और किसी को भुगतान नहीं करेगी। स्पाइसजेट ने अपनी याचिका में मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उसने परिसमापन याचिका स्वीकार करते हुए आधिकारिक परिसमापक को किफायती सेवाएं देने वाली एयरलाइन की संपत्तियों पर कब्जा लेने का निर्देश दिया था।
स्विट्जरलैंड की कंपनी क्रेडिट सुइस एजी ने उच्च न्यायालय में कहा था कि स्पाइसजेट विमान इंजनों के रखरखाव, मरम्मत और ओवरहॉलिंग के अपने 2.4 करोड़ डॉलर के बिलों का भुगतान करने में विफल रही है। उच्चतम न्यायालय ने स्पाइसजेट की याचिका की सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय के आदेश के प्रकाशन पर रोक लगा दी। लेकिन इसी के साथ स्पाइसजेट के रवैये पर सवाल भी खड़े किए।
मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की तीन सदस्यीय पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे की इस बात पर गौर किया कि स्पाइसजेट स्विस कंपनी के साथ मुद्दे का समाधान निकालने का प्रयास करेगी। पीठ ने कहा, ‘‘वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने मामला सुलझाने के लिए तीन हफ्ते का वक्त मांगा है और स्विस कंपनी की ओर से पेश के वी विश्वनाथन भी स्थगन के लिए सहमत हो गए हैं। इस बीच उच्च न्यायालय के आदेश पर तीन हफ्ते के लिए रोक लगाई जाती है।’’
सुनवाई शुरू होते ही साल्वे ने विवाद सुलझाने के लिए तीन हफ्ते का वक्त मांगा। स्विस कंपनी के अधिवक्ता ने स्थगन याचिका का विरोध नहीं किया लेकिन स्पाइसजेट के प्रस्ताव पर सवाल उठाए। विश्वनाथन ने कहा, ‘‘उनका (स्पाइसजेट) कहना है कि उन्होंने गंभीर प्रस्ताव रखा है। अब उनके पास तीन हफ्ते का वक्त है, जो प्रस्ताव उन्होंने दिया है वह जिक्र करने लायक भी नहीं है।’’ इस पर न्यायालय ने कहा, ‘‘यह एक गंभीर मामला है। अगर आप एयरलाइन का संचालन नहीं करना चाहते हैं तो हम आपको दिवालिया घोषित कर देंगे और परिसमापन के लिए जाएंगे।’’
स्पाइसजेट ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ के 11 जनवरी के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील की थी। खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश की पीठ के हालिया फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें एयरलाइन के परिसमापन का निर्देश दिया गया था। साथ ही उच्च न्यायालय से संबद्ध आधिकारिक परिसमापक को संपत्तियों की जब्ती का निर्देश दिया गया था।
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